23 साल बाद भी बदहाल हैं हल्द्वानी की स्वास्थ्य सेवाएं, इलाज के लिए उ0 प्र0 व दिल्ली जाने भटकने को मजबूर मरीज
बेस अस्पताल हल्द्वानी में पिछले 17 साल से एक भी कार्डियोलॉंजिस्ट का अकाल पड़ा हुआ है , बेस अस्पताल के कार्डियोलॉंजिस्ट विभाग के उपकरण जंग खा रहे है वही भवन जर्जर हालत में है । प्रदेश के मुखिया को सब पता है लेकिन पहाड़ की जनता को प्राईवेट अस्पतालों को लूटने के लिए मजबूर कर रहे है। प्रचार- प्रसार में करोड़ो खर्च कर रहे लेकिन प्रदेश की जनता को स्वास्थ सुविधाएं मुहैया कराने में असमर्थ है।मजबूरन मरीज अपनी जिन्दगी बचाने के लिए उ0 प्र0 व दिल्ली के अस्पतालों की तरफ रूख कर रहे है गरीब जाए तो कहॉं जाए ।
हल्द्वानी । नौ नवंबर 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड नया राज्य बना था। उम्मीद थी कि राज्य की स्थिति बेहतर होगी। हालांकि प्रदेश में आज भी समय के अनुरूप परिवर्तन नहीं हुआ है।
उत्तराखंड में सरकारी अस्पतालों में एक भी कार्डियोलॉजिस्ट नहीं है हल्द्वानी के बेस अस्पताल में 17 साल से कार्डियोलांजिस्ट का अकाल है। वहां के उपकरण व भवन जंग खा रहा है। उत्तराखंड बने हुए 23 साल हो गए हैं, लेकिन प्रदेश में अबतक स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल हैं। पहाड़ों पर सीएचसी और पीएचसी में डॉक्टरों की कमी है। ऐसे में मरीजों को इलाज के लिए मुश्किल होती है। प्रदेश के अन्य जिलों समेेत राजधानी देहरादून का भी हाल ऐसा ही है। हल्द्वानी बेस अस्पताल में आज भी अलग-अलग बीमारियों के विशेषज्ञों की कमी बनी हुई है। जबकि यहां पर दूर दराज के मरीज इलाज के लिए आते हैं।
मरीजों को इलाज के नाम पर भटकना पड़ रहा है। गंभीर मरीजों के इलाज को सिर्फ ऋषिकेश एम्स है या फिर बरेली , लेकिन यहां पर भी जगह फुल हो जाने की वजह से मरीजों को दिल्ली के लिए रेफर करना पड़ता है। यहां सुशीला तिवारी अस्पताल तो रामभरोसे है यहां पर मरीज ईलाज कराने के लिए डरता है क्यों यहां पर केवल प्रैक्टीस करने वाले मेडिकल छात्र ही होते है।
पहाड़ों पर एएनएम करती हैं मरीजों का इलाज
डिप्लोमा फार्मासिस्ट एसोसिएशन की जिला मंत्री उर्मिला द्विवेदी ने बताया कि पहाड़ों पर बने स्वास्थ्य उपकेंद्रों पर फार्मासिस्ट के करीब 500 पद ही खत्म कर दिए गए हैं। यहां पर एएनएम मरीजों को दवाएं देती हैं। वहां पर गर्भवती महिलाओं को खून की जांच कराने के लिए 50 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ रहा है। पहाड़ के सभी अस्पताल अब रिफर सेंटर बन गए है। मरीज अब सुशीला तिवारी अस्पताल जाने के बजाय बरेली ,लखनऊ व दिल्ली जाना बेहतर मान रहा है।