हल्द्वानी के वनभूलपुरा में 4 हजार मकानों पर अभी नहीं चलेगा बुलडोजर, सुप्रीम कोर्ट में आया यह फैसला
हल्द्वानी । ( महेश सिंह ) । उत्तराखंड के नैनीताल जिले के हल्द्वानी शहर में रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने पर बवाल मचा हुआ है। भीषण सर्दी के बीच लोग सड़क पर प्रदर्शन कर अपना आशियाना बचाने की गुहार लगा रह हैं। पूरे मामले पर सुप्रीम कोर्ट में आज गुरुवार को सुनवाई होनी है। सभी पक्षों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार, और भारतीय रेल को नोटिस जारी किया है। ऐसे में अब लोगों के लिए राहत भरी खबर है।वनभूलपुरा में रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने पर नैनीताल हाईकोर्ट अपना फैसला पहले ही सुना चुकी है।
हल्द्वानी में 4365 परिवारों को 29 एकड़ रेलवे भूमि पर बने अपने घर खाली करने होंगे। रेलवे भूमि पर अतिक्रमण के मामले में हाईकोर्ट ने पिछले साल दिसंबर को अपना निर्णय सुनाया। न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने रेलवे से अतिक्रमणकारियों को एक हफ्ते का नोटिस देकर अतिक्रमण ध्वस्त करने के आदेश दिए थे।
वनभूलपुरा में रेलवे भूमि से अतिक्रमण हटाने पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार, और भारतीय रेलवे को नोटिस जारी किया है। ऐसे में अब तीन दिन बुलडोजर एक्शन पर फिलहाल ब्रेक लग गया है। नैनीताल हाईकोर्ट अपना फैसला पहले ही सुना चुकी है।
रेलवे स्टेशन हल्द्वानी से लगी रेलवे भूमि में अतिक्रमण पर कोर्ट के आदेश के बाद स्कूल, अस्पताल समेत कई धार्मिक स्थल हटाए जाएंगे। जानकारी के अनुसार इंदिरा नगर पूर्वी, इंदिरा नगर पश्चिमी, लाइन नंबर 17 से 20 तक, किदवई नगर, गफ्फूर बस्ती, ढोलक बस्ती, नई बस्ती, गोपाल मंदिर के आसपास का इलाका खाली कराया जाएगा। इस क्षेत्र में 5 सरकारी स्कूल, एक अस्पताल, दो ट्यूबवेल, आधा दर्जन से ज्यादा मस्जिद, दो मंदिर, दो बैंक समेत कुछ प्राइवेट व सरकारी संस्थान स्थित हैं।
स्कूलों में इंदिरा नगर प्राइमरी पाठशाला, राजकीय बालक इंटर कॉलेज इंदिरानगर, राजकीय बालिका इंटर कॉलेज वनभूलपुरा लाइन नंबर-17 और जूनियर हाईस्कूल हैं। इसके अलावा आठ धार्मिक स्थल भी इस क्षेत्र में हैं। राजकीय चिकित्सालय
वनभूलपुरा, लाइन नंबर 17 स्थित ट्यूबवेल भी हटाने की बात कही जा रही है। बैंक ऑफ बड़ौदा और सहकारी ग्रामीण बैंक भी प्रभावित होंगे।2016 के वक्त प्रदेश में मौजूद 63 निकायों में विस्तृत सर्वे कर बस्तियों की संख्या, जमीन का प्रकार, आबादी का पता लगाया गया। उस सर्वे में प्रदेश में 582 बस्तियों की जानकारी सामने आई। लेकिन ज्यादातर मलिन बस्तियां नदी- नाले और वनभूमि पर बसी होने के कारण इनका नियमितीकरण नहीं हो पाया। 2018 में अवैध निर्माण पर हाईकोर्ट की सख्ती के बाद इन बस्तियों पर संकट गहराने लगा तो तत्कालीन भाजपा सरकार ने कानून बनाकर इन बस्तियों को तीन साल के लिए राहत प्रदान करते हुए, तात्कालिक समाधान निकाला।