शांतिपूर्ण चल रहा मतदान, चार बजे तक हुई 55 फीसदी वोटिंग

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चुनावी रंजिशों ने गांवों में बढ़ाया तनाव, ताड़ीखेत ब्लॉक की कई सीटों पर भाजपा-कांग्रेस आमने-सामने

अल्मोड़ । त्तराखंड में पंचायती राज व्यवस्था को मजबूत करने के लिए हो रहे चुनावों का पहला चरण आज संपन्न होने जा रहा है। ताड़ीखेत सहित कई विकासखंडों में मतदान को लेकर तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। प्रशासन से लेकर ग्रामीणों तक, हर कोई इस लोकतांत्रिक पर्व के लिए तैयार है। इस बार पंचायत चुनाव की सरगर्मियां सिर्फ लोकतंत्र के उत्सव तक सीमित नहीं रह गई हैं, यह चुनाव अब गांवों में आपसी रिश्तों की कसौटी भी बनते जा रहे हैं। गांव-गांव में चुनावी जंग पूरे जोर पर है। यह जंग अब सिर्फ ग्राम प्रधान या क्षेत्र पंचायत सदस्य बनने की नहीं रह गई, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों में खटास की वजह बनती जा रही है। खासकर छोटे गांवों में जहां मतदाताओं की संख्या 150 से भी कम है, वहां एक-एक वोट के लिए जोड़-तोड़ और आपसी रंजिश खुले तौर पर देखने को मिल रही है।

छोटे गांव, बड़ी टक्कर
कई ऐसे गांव हैं जहां कुल मतदाता 180 से भी कम हैं, लेकिन वहां भी 3 से 4 प्रत्याशी मैदान में डटे हुए हैं। इतने कम मतदाताओं के बावजूद चुनावी मुकाबला काफी दिलचस्प होता जा रहा है। गांवों में अब विकास से ज्यादा व्यक्तिगत रंजिश और प्रतिष्ठा की लड़ाई देखने को मिल रही है।

रिश्ते भी आ रहे दरार की चपेट में
इन चुनावी घमासानों में कई जगहों पर पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों में भी खटास आने लगी है। आपसी बातचीत बंद हो गई है और गांवों में गुटबाजी का माहौल बनता जा रहा है। पंचायत चुनाव का यह स्वरूप गांव की पारंपरिक एकता और सौहार्द पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहा है।

चुनावी वादों और पुराने कामों का जोर, प्रत्याशी मतदाताओं को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे
ताड़ीखेत ब्लॉक में पंचायत चुनाव की सरगर्मियां चरम पर हैं और मतदान गुरुवार को होना है, ऐसे में प्रत्याशी मतदाताओं को लुभाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। कोई बीते कार्यकाल में किए गए विकास कार्यों की फेहरिस्त गिनवा रहा है। इनमें सड़क निर्माण, पानी की पाइपलाइन और बिजली के ट्रांसफार्मर लगवाना, तो कोई रात में मरीज को अस्पताल पहुंचाने या सामाजिक आयोजनों में सहयोग जैसे व्यक्तिगत मदद का हवाला देकर भावनात्मक जुड़ाव बनाने की कोशिश कर रहा है।

कई उम्मीदवार तो अब रिश्तेदारी और सामाजिक समीकरणों को भी चुनावी हथियार बना चुके हैं, और हम तो आपके ही परिवार से हैं जैसे संवादों से जनसमर्थन जुटा रहे हैं। गांव-गांव में चुनावी बहस अब तर्क और तथ्यों से ज़्यादा भावनाओं के सहारे चल रही है, लेकिन इस बार मतदाता पहले जैसा सीधा नहीं है, वह हर वादे और दावे को परख रहा है। ऐसे में गुरुवार को होने वाले मतदान में यह देखना रोचक होगा कि ग्रामीण मतदाता भावनाओं के प्रभाव में आता है या फिर विकास और पारदर्शिता को प्राथमिकता देता है।

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