उत्तराखंड में मिला चार सिंह वाला खाडू? नंदादेवी राजजात यात्रा से जुड़ी है अद्भुत परंपरा

नंदादेवी राजजात यात्रा आयोजन में अभी सालभर का समय शेष है। ऐसे में यात्रा के मुख्य और दुर्गम पड़ावों पर आवश्यक सुविधाओं के साथ यात्रा को पर्यटन की दृष्टि से विश्व मानचित्र पर लाने के साथ ही यात्रा को जीवंत रखने के लिए दस्तावेज तैयार करने को लेकर नंदादेवी राजजात यात्रा समिति द्वारा सरकार से मांग की जा रही है। इस दौरान इंटरनेट पर वायरल पोस्ट से आयोजकों में नाराजगी है।
अगले साल 2026 में एशिया की सबसे बड़ी नंदादेवी राजजात पैदल यात्रा की अगुवाई करने वाले चौसिंग्या खाडू (चार सिंग वाला मेंढ़ा) कर्णप्रयाग के कांसुवा गांव में पैदा हो गया है जो यात्रा का पांचवा पड़ाव है।
यात्रा के दौरान राजवंशियों को ग्रामीणों द्वारा ऐसे चौसिंग्या खाडू की जानकारी दी जाने का विधान है। जिसपर उसका पूजन होता है और वह देवी को समर्पित माना जाता है। इस दौरान राजवंशियों द्वारा देवी को अर्पित होने वाले चौसिंग्या को जरूरी दिशा-निर्देश दिए जाते हैंं, जिससे आने वाले समय में आयोजित होने वाले देव अनुष्ठान में कोई अनहोनी न हो
।नंदा का देव रथ
ऐसे में धार्मिक मान्यता के अनुसार चौसिंग्या खाडू को मां नंदा का देव रथ माना जाता है। यह 12 वर्ष में नंदा देवी के मायके के क्षेत्र में पैदा होता है और यात्रा में खाडू की पीठ पर मां नंदा को कलेऊ सहित श्रंगार सामग्री भेंट कर सजाने के बाद कैलाश विदा करने की परंपरा होती है। खाडू को पूजा-अर्चना के बाद कैलाश के लिए अकेले ही रवाना कर दिया जाता है।