आखिर क्यों हुआ उक्रांद में बिखराव

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उत्तराखएड में तीसरा विकल्प होगा तभी पहाड़ का विकास होगा

अल्मोड़ा । (दिनेश सिंह सुरकाली )। जिन नेताओं और चेहरों पर उक्रांद को मजबूत करने का जिम्मा था, उन्होंने व्यक्तिगत स्वार्थों की लड़ाई में उलझकर इसको गर्त में धकेल दिया।
ैसत्ता के आकर्षण और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते दल में कई बार फूट और बिखराव के हालात बने। उक्रांद सत्ता में भागीदार बना लेकिन हर बार सिंबल पर जीतने वाला अंत में खुद को अलग कर लेता। मौजूदा समय में भी यही हाल हैं। पार्टी के सिंबल पर जीते एकमात्र विधायक प्रीतम पंवार कैबिनेट मंत्री बनने के बाद से दल से पूरी तरह अलग हैं।इससे संगठन मजबूत होने के बाद कमजोर होता चला गया। पार्टी अब तक कई विभाजन झेल चुकी है। सबसे विस्फोटक स्थिति 2011 में हुई जब भाजपा से गठबंधन तोड़ने के लिए तत्कालीन कैबिनेट मंत्री दिवाकर भट्ट और विधायक ओमगोपाल को निष्कासित कर दिया। वर्ष 2012 के चुनाव के बाद दल की बतौर क्षेत्रीय दल निर्वाचन आयोग से मान्यता तक चली गई। अब दल के दो खेमे आपस में चुनाव चिन्ह को लेकर भिड़ रहे हैं।वर्ष 2002 में चार विधायक जीतेवर्ष 2007 में तीन विधायक जीते वर्ष 2012 में एक विधायक निर्धारित मत प्रतिशत हासिल न होने से क्षेत्रीय दल की मान्यता समाप्त
दल का जन्म केवल राज्य गठन के लिए हुआ था। राज्य बना तो राजनीतिक अपरिपक्वता और व्यक्तिगत स्वार्थों ने दल को कमजोर किया। एक तरफ हम सरकार में शामिल हुए और दूसरी तरफ बिना वार्ता समर्थन वापसी की घोषणा कर ली। आपस में तक चर्चा नहीं की गई। दिवाकर भट्ट का कहना है कि दल में एक गुट होता तो हम भी साथ रहकर उसे मजबूत करते लेकिन यहां कई गुट बन गए। उक्रांद का कमजोर होना इस राज्य के लिए बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
पुष्पेश त्रिपाठी, केंद्रीय अध्यक्ष (ऐरी गुट) का कहना है कि उक्रांद में अलग उत्तराखंड राज्य की लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाया। उस दौर में भाजपा और कांग्रेस अलग उत्तराखंड का पुरजोर विरोध करते थे। लेकिन सांगठनिक रूप से हम मजबूत नहीं हो पाए। जब उक्रांद के लिए माहौल था, तब चुनाव ना लड़ने का फैसला भी हमारे विपरीत गया। हमने राज्य हित में फैसले लिए जो राजनीतिक रूप से दल के खिलाफ गए। दल में बिखराव और टूट केवल व्यक्तिवाद का परिणाम है।त्रिवेंद्र पंवार, केंद्रीय अध्यक्ष (पंवार गुट) का कहना है कि उक्रांद को गर्त में धकेलने में उन लोगों का सबसे अहम रोल है जिन्होंने पार्टी के सिंबल पर जीत हासिल की और बाद में व्यक्तिगत स्वार्थों के चलते दल को छोड़ दिया। सत्ता के मोह में अंधे होकर दल के नेता भाजपा और कांग्रेस के हाथ की कठपुतली बने रहे। राज्य हित के मुद्दों पर उनकी चुप्पी ने ही जनता के विश्वास को तोड़ने का काम किया है।काशी सिंह ऐरी को पुनः अध्यक्ष बनाये जाने पर ऐसा लगता है कि अब एक बार फिर उक्रांद को खड़ा कर राज्य को बचाने की लड़ाई लड़ सकें यही उक्रांद का सपना है।

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