कोरोना को हराने के लिए एआइआइएमएस विशेषज्ञों की राय, कैसे होगा बचाव

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ऋषिकेश। एम्स ऋषिकेश के विशेषज्ञों का कहना है कि रेमडेसिविर इंजेक्शन कोरोना के इलाज की रामबाण दवा नहीं है और न ही यह जीवनरक्षक दवा है। यह ठीक उसी तरह से कोविड के लक्षणों को कम करने का काम आती है, जिस प्रकार पैरासिटामोल दवा बुखार कम करने के काम आती है। एम्स ऋषिकेश में कोराना के नोडल अधिकारी डॉ. पीके पांडा ने लोगों को सलाह दी है कि रेमडेसिविर की उपलब्धता नहीं होने पर परेशान होने की कतई जरूरत नहीं है। कोविड के उपचार का यह अंतिम विकल्प नहीं है। कोविड पॉजिटिव रोगी को सबसे पहले को-मोर्बिलिटीज डिसीज का समय रहते उपचार करने पर ध्यान देना चाहिए।

14 दिनों के बाद ये करेंरूलांग कोविड सिंड्रोम (पोस्ट-कोविड स्थिति) ऐसे लक्षणों की एक सीमा होती है, जो कोरोना वायरस के संक्रमण के बाद, आमतौर पर संक्रमण के चार सप्ताह बाद तक रह सकता है। कोविड लंबे समय तक किसी को भी हो सकता है। इसके लक्षण न्यूनतम भी हो सकते हैं और यह बिना लक्षणों के भी लंबे समय तक रह सकता है। अच्छी बात यह है कि यह लक्षण समय के साथ बेहतर हो रहे हैं। हालांकि, इन लक्षणों से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति को कम से कम 1 से 3 महीने के लिए अलग रहकर पृथकवास का पालन करना होगा। इस दौरान जल्दी ठीक होने के लिए रोगी को सांस लेने के व्यायाम और शारीरिक व्यायाम पर ध्यान देने की बहुत जरूरत होती है।

पहले 7 दिनों के दौरान ये करें
अगले 15 दिनों के लिए प्रतिदिन टेबलेट विटामिन-सी 500 मिलीग्राम दिन में दो बार लेना शुरू करें। बुखार की शिकायत होने पर टेबलेट पैरासिटामोल-650 एमजी का दिन में 4 से 6 बार 2 से 3 दिनों तक सेवन करें। कोल्ड संबंधी दिक्कत होने पर टेबलेट मॉन्टेलुकास्ट-लेवो-सिट्रीजिन का दैनिक उपयोग करें। संक्रमित होने की स्थिति में पूरी तरह बेड रेस्ट आवश्यक है। मानसिक तनाव और भय से पूरी तरह मुक्त रहें। ज्यादा से ज्यादा पानी का इस्तेमाल करें और आसानी से पचने वाले तरल खाद्य पदार्थों का सेवन करें। छाती के बल लेटने (प्रोनिंग पोजिशन) से इसमें आराम मिलता है।

अगले सात दिनों के दौरान ये करें
इस चरण को जीवनरक्षक (लाइफ सेविंग) ट्रीटमेंट कहा जाता है। इस चरण में चिकित्सकीय सलाह के अनुसार अगले सात दिन (इम्योनालोजिकल फेज) साईटोकाईन स्ट्रोन के दौरान समय रहते चेस्ट एक्सरे/ चेस्ट सीटी स्कैन, कम्लीट ब्लड काउंट टेस्ट, किडनी फंक्शन टेस्ट (केएफटी), लीवर फंक्शन टेस्ट (एलएफटी), सीआरपी, डी-डायमर, एलडीएच टेस्ट अनिवार्य रूप से कराए जाने चाहिए। इन तमाम परीक्षणों से शरीर में वायरस की घातकता का पता चलता है। इसके अलावा रोगी के शरीर का कौन-कौन सा अंग किस स्तर पर संक्रमित हो चुका है, इसका भी पता चल जाता है। एम्स के नोडल ऑफिसर कोविड डा. पीके पण्डा ने बताया कि यदि सही समय पर रोगी को ऑक्सीजन, डेक्सोना, हेपारिन और प्रोनिंग लग जाए तो उसका जीवन बचाया जा सकता है।

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