2010 के कुंभ में पकड़े गए जासूसी के आरोपी पाकिस्तानी नागरिक की जमानत निरस्त ,पुनः गिरफ्तार करने के आदेश दिए

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पाकिस्तानी जासूज मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में कई महिनों से रह रहा था बाद में अपना नाम बदलकर आबिद अली उर्फ असद अली उर्फ अजीत सिंह जासूजी करने के लिए अलग से किराये पर लिया वहीं से पुलिस को सुराग मिले थे उसके खिलाफ पुलिस के पास कई ठोस सबूत है जिसे वह भारत की सुरक्षा को खतरे में डालना चाहता था । सात साल बाद निचली अदालत ने उसे रिहा करने के आदेश जारी कर दिए थे लेकिन उत्तराखंड हाईकोर्ट नैनीताल ने पुनः हिरासत में लेने के आदेश दिए है।

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने पाकिस्तान के लिए भारत की जासूसी करने के आरोपी पाकिस्तानी नागरिक आबिद अली उर्फ असद अली उर्फ अजीत सिंह निवासी लाहौर, पाकिस्तान की सजा को बरकरार रखा हैं। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए हैं कि उसकी जमानत के बांड को निरस्त करे और उसे हिरासत में लें। वर्तमान में वह रुड़की में रह रहा है।

बुधवार को न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। कोर्ट ने कहा कि उसके खिलाफ जासूसी के आरोप में तमाम सबूत हैं। उसने पासपोर्ट एक्ट का भी दुरुपयोग किया है। मामले में पूर्व में हुई सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था।
मामले के अनुसार 25 जनवरी 2010 को महाकुंभ के दौरान गंगनहर, हरिद्वार पुलिस ने आबिद अली को ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट, विदेशी नागरिक एक्ट और पासपोर्ट एक्ट में रुड़की से गिरफ्तार किया था। उसके पास से मेरठ, देहरादून, रुड़की सहित अनेक स्थानों पर स्थित सैन्य संस्थानों के नक्शे, अनेक संदिग्ध और गोपनीय दस्तावेज, पेन ड्राइव आदि सामग्री बरामद हुई थी। रुड़की में उसके निवास स्थान पर पुलिस के छापे में बिजली की फिटिंग के बोर्ड और पंखे में छिपाकर रखे गए एक दर्जन सिमकार्ड भी मिले थे।

मामले में एफआईआर दर्ज होने और मुकदमे के बाद दिसंबर 2012 में निचली अदालत ने उसे दोषी मानते हुए सात साल की सजा सुनाई थी। सजा के विरुद्ध अभियुक्त की ओर से अपील दायर की गई थी जिस पर सुनवाई के बाद जुलाई 2013 में अपर जिला जज (द्वितीय) हरिद्वार ने उसे बरी करने के आदेश पारित किए। इस पर जेल अधीक्षक ने कोर्ट तथा एसएसपी को सूचित किया कि अभियुक्त के विदेशी नागरिक होने के चलते उसकी रिहाई से पूर्व उसका व्यक्तिगत जमानत बांड व अन्य औपचारिकताएं पूरी करनी आवश्यक हैं।

अभियोजन पक्ष के मुताबिक अपर जिला जज ने जेल अधीक्षक की सूचना के संदर्भ में स्पष्ट किया कि इसके लिए किसी प्रथक आदेश की आवश्यकता नहीं है। जबकि अभियोजन के अनुसार एसएसपी ने मामले में आवश्यक गंभीरता नहीं दिखाई और वह रिहा हो गया। हांलांकि पासपोर्ट संबंधी व अन्य औपचारिकताओं के कारण वह पाकिस्तान नहीं जा पाया। वहीं मामले में निचली अदालत के आदेश को सरकार ने हाइकोर्ट में चुनौती देते हुए कहा था कि अदालत ने वादी की बेगुनाही के सबूत के बगैर ही संदिग्ध पाकिस्तानी नागरिक की रिहाई के आदेश दिए हैं, जबकि उसके खिलाफ जासूसी के आरोप में अनेक सबूत हैं। जिस पर आज बुधवार को सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने उसके जमानत के बांड निरस्त करने और उसे हिरासत में लेने के आदेश दिए।

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