सीमांत क्षेत्र के गांवो में बाहरी लोगों के बसावत, अतंराष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में

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चीन और नेपाल सीमा से सटे धारचूला तहसील में वर्ष 1998 तक बाहरी लोगों के लिए प्रवेश आसान नहीं था। नोटिफाइड एरिया और इनर लाइन उस समय जौलजीबी में थी यहां जाने के लिए पास जरूरी होता था। वोट बैंक की राजनीति के चलते अब सीमांत के लोगों की मांग पर इनर लाइन और नोटिफाइड एरिया को जौलजीबी से हटाकर छियालेख कर दिया है इसका परिणाम यह हुआ कि बड़ी संख्या में बाहरी लोग यहां पहुंचकर तमाम काम-धंधों के बहाने बस गए। जिसे अब अतंराष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।

धारचूला । असुविधाओं के पहाड़ से जिस तेजी से यहां के लोग शहरी क्षेत्रों के लिए पलायन कर रहे हैं उसी अनुपात में बाहर के लोग सीमांत के हर कस्बे तक पहुंचने लगे हैं। इनमें मजदूर से लेकर व्यापारी तक शामिल हैं।
पहाड़ से शहरी क्षेत्रों के लिए हो रहे पलायन ने सीमांत के बाशिंदों की चिंता बढ़ा दी है। देश के कई राज्यों के साथ ही नेपाल से आकर छोटा-बड़ा कारोबार शुरू कर रहे वर्ग विशेष के अपरिचित चेहरों के कारण चीन और नेपाल से लगे इस सीमांत जिले की संवेदनशीलता बढ़ गई है। इस डेमोग्राफिक चेंज से चिंतित सीमांत के लोगों ने नोटिफाइड एरिया फिर से जौलजीबी करने की मांग मुखर कर दी है।

असुविधाओं के पहाड़ से जिस तेजी से यहां के लोग शहरी क्षेत्रों के लिए पलायन कर रहे हैं उसी अनुपात में बाहर के लोग सीमांत के हर कस्बे तक पहुंचने लगे हैं। इनमें मजदूर से लेकर व्यापारी तक शामिल हैं। खुफिया एजेंसियां भी मानती हैं कि पिछले कुछ सालों में कारीगर, बारबर, सब्जी, मांस, फेरी व्यवसाय सहित अन्य छोटे-मोटे व्यापार में बाहर से आए लोगों का दबदबा बढ़ा है। यहां तक कि कबाड़ बीनने वालों की संख्या भी नगर और कस्बों में तेजी से बढ़ी है।

बाहरी लोगों का पुलिस सत्यापन कर रही है। मकान मालिकों और व्यापारियों को भी नौकरों का सत्यापन करने के निर्देश दिए गए हैं। इसके बावजूद अधिकांश लोग बिना सत्यापन के घूमते नजर आते हैं। सीमांत के शहर से लेकर गांवों तक नेपाली नागरिकों की संख्या में भी काफी बढ़ोतरी हुई है। नेपाल के यह नागरिक पलायन के कारण खाली हो चुके घरों में रह रहे हैं। जो लोग जा चुके हैं उनकी रजामंदी से खेती और पशुपालन भी कर रहे हैं। इनमें से ज्यादातर के पास आधार कार्ड भी हैं।

चीन और नेपाल सीमा से सटे धारचूला तहसील में वर्ष 1998 तक बाहरी लोगों के लिए प्रवेश आसान नहीं था। नोटिफाइड एरिया और इनर लाइन उस समय जौलजीबी में थी। यहां जाने के लिए पास जरूरी होता था। सीमांत के लोगों की मांग पर इनर लाइन और नोटिफाइड एरिया को जौलजीबी से हटाकर छियालेख कर दिया गया।इसका परिणाम यह हुआ कि बड़ी संख्या में बाहरी लोग यहां पहुंचकर तमाम काम-धंधों के बहाने बस गए। डेमोग्राफिक चेंज पर सुरक्षा एजेंसियां भी नजर रख रहीं हैं। इंटेलीजेंस एजेंसियां भी मानती हैं कि हाल के वर्षों में बाहरी लोगों की आवक काफी बढ़ी है।

धारचूला बचाओ समिति के अध्यक्ष वीरेंद्र नबियाल कहते हैं कि जब से जौलजीबी से नोटिफाइड एरिया हटाकर छियालेख किया गया है तब से अशांति हो गई है। तमाम तरह की आपराधिक घटनाएं सीमांत में बढ़ रही हैं। महिलाओं को बहलाने फुसलाने और भगाकर ले जाने जैसी घटनाओं में भी बढ़ोतरी हुई है। उनका कहना है सरकार को फिर से नोटिफाइड एरिया जौलजीबी में बनाना चाहिए। ऐसा न होने पर राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ ही सीमांत की संस्कृति पर भी खतरा बढ़ सकता है।

नेपाल सीमा से लगे चंपावत जिले का भूगोल खास है। पहाड़ और मैदान से मिलकर बने चंपावत जिले की 90 किलोमीटर सीमा नेपाल से लगी होने से संवेदनशील भी है। प्रदेश में रुद्रप्रयाग के बाद सबसे कम आबादी वाले चंपावत जिले की आबादी तीन लाख से भी कम है। राज्य बनने के बाद इस जिले में जनसांख्यिकी बदलाव (डेमोग्राफिक चेंज) में तेजी जरूर आई है,

कोरोना काल में मार्च 2020 से इस बदलाव में कमी आई है। चंपावत जिले में बाहरी लोगों द्वारा जमीन खरीदने की गति तो कम है, लेकिन निर्माण क्षेत्र में मजदूर, ऑटोमोबाइल मिस्त्री, दर्जी, मीट कारोबार, बारबर, फेरी आदि क्षेत्रों में मुख्य रूप से बाहरी लोगों और एक वर्ग विशेष का कब्जा है। दूरदराज के छोटे कस्बों में भी यही स्थिति है। इससे पहाड़ में तेजी से जनसांख्यिकीय बदलाव हुआ है।

लोगों का कहना है कि इससे सुरक्षा के साथ ही सामाजिक संरचना भी चुनौती बन रही है। एसपी देवेंद्र पींचा का कहना है कि किसी भी बाहरी और संदिग्ध लोगों का पुलिस सत्यापन करती है। शासन से ऐसे कोई निर्देश प्राप्त नहीं हुए हैं। जिले में अप्रत्याशित जनसांख्यिकी बदलाव की रिपोर्ट भी नहीं है। वैसे हर तरह की संदिग्ध गतिविधियों पर पुलिस और प्रशासन नजर रखे हुए है। नए और अजनबी लोगों का पुलिस के जरिये नियमित रूप से सत्यापन भी कराया जाता है।

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