चारधाम यात्रा, उच्च हिमालयी क्षेत्र बन रहा है कूड़े व कचरे का ढेर

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चारधाम यात्रा में बढ़ते श्रद्धालुओं की संख्या के साथ ही कूड़ा निस्तारण का मामला भी गंभीर होता जा रहा है. बढ़ते कूड़े से उत्तराखंड की आबोहवा और नदियां प्रदूषित हो रही हैं. इसके साथ ही चारधाम यात्रा में वेस्ट को सही तरीके से मैनेज नहीं किए जाने से हिमालय पर भी खतरा बढ़ता जा रहा है.

अगर सरकार अभी भी नहीं जागी तो फिर से एक बड़ी तबाही हो सकती है

़ऋषिकेश । उच्च हिमालयी क्षेत्रों में इस तरीके के प्लास्टिक और अन्य कूड़े के अंबार पर वैज्ञानिकों ने चिंता व्यक्त की है. हिमालयी क्षेत्रों पर शोध करने वाले वाले गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो एमएस नेगी का कहना है कि केदारनाथ में लगे कूड़े के ये ढेर भविष्य के लिये बहुत बड़ा खतरा है.
बुग्यालों में प्लास्टिक लैंडस्लाइड का एक बड़ा कारण है. जिससे उच्च हिमालयी क्षेत्रों की भौगोलिक दशा बदल सकती है. जिससे आने वाले दिनों में इस जगह पर बड़ी तबाही मच सकती है. जिससे भविष्य में रैणी और केदारनाथ जैसी आपदाएं होनें की संभानाएं हैं. प्रो एमएस नेगी, विभागाध्यक्ष,भूगोल विभाग,गढ़वाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय
वहीं, पर्यटन विभाग से जुड़े लोगों का भी कहना है कि केदारनाथ यात्रा आर्थिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है. लेकिन यहां की जलवायु को बचाए रखना उससे भी ज्यादा जरूरी है. इसके लिये यात्रियों को खुद ही जिम्मेदारी लेनी होगी. यात्रियों को खुद से कूड़े के निस्तारण के लिए काम करता होगा. उन्हें पर्यावरण को लेकर खुद से चिंता करनी होगी.
बीते कई वर्षों से उच्च हिमालयी क्षेत्रों की जलवायु, जड़ी-बूटियों पर रिर्सच करने वाले उच्च पादपीय हिमालयी शोध संस्थान (हैप्रेक) के डायरेक्टर का कहना है कि केदारनाथ में बढ़ती मानवीय गतिविधि व हेलीकॉप्टर के प्रयोग से यहां ब्लैक कार्बन जमा हो रहा है. ये ब्लैक कार्बन ग्लेशियरों को पिघलाने के लिए काफी है.।
अगर ऐसे ही हिमालयी क्षेत्रों में मानवीय क्रियाकलाप बढ़ता रहा तो एक बार फिर 2013 की जैसी तबाही देखने को मिल सकती है. प्रो एमसी नौटियाल, डायरेक्टर हैप्रेक
उन्होंने कहा केदारनाथ क्षेत्र में कूड़े के ढेर यहां की बहुमूल्य जड़ी-बूटियों को भी नष्ट कर रहे हैं. जहां पर यह प्लास्टिक पड़ा रहता है, वहां वर्षों तक कुछ उग नहीं पाता. विलुप्त होती जड़ी-बूटियों में जटामासी, अतीश, बरमला, काकोली समेत अन्य जड़ी बूटियां शामिल हैं. लंबे समय से गढ़वाल विवि के पर्यटन विभाग में कार्यरत डॉ सर्वेश उनियाल का कहना है कि केदारनाथ यात्रा आर्थिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है. मगर यहां की जलवायु को लेकर सभी को सोचने की जरुरत है.
यात्रियों, पर्यटकों को चाहिए की वे केदारनाथ को लेकर संवेदनशील बने. वे अपने साथ ले जाने वाले कूड़े को वापस लाने की जिम्मेदारी लें. इससे पर्यावरण को बचाया जा सकता है. साथ ही केदारनाथ की सुंदरता के साथ भी इससे खिलवाड़ नहीं होगा1

.केदारनाथ में लगातार बढ़ रही मानव गतिविधियों से भविष्य के लिये एक बड़ा संकट खड़ा हो रहा है. हिमालय को कई नदियों, झरनों और प्राकृतिक जल स्रोतों का भंडार माना जाता है. यहां से कई जलधाराएं अविरल बहती हैं. मौजूदा दौर में यहां के हालात बदल रहे हैं. उच्च हिमालय में स्थित केदारनाथ धाम में बड़ी संख्या में यात्री पहुंच रहे हैं, जो अहने साथ कूड़ा-करकट, प्लास्टिक आदि ले जा रहे हैं. ये कूड़ा केदारनाथ धाम के चारों तरफ देखने को मिल रहे हैं.

कुल मिलाकर कहे तो चारधाम यात्रा से भले ही राज्य के पर्यटन के साथ ही आर्थिकी को गति मिल रही हो, मगर इसमें हो रही अनियमितता का खामियाजा हिमालय को भुगतना पड़ रहा है. केदारनाथ यात्रा मार्गों पर ही रोजाना करीब 10 क्विंटल कूड़ा निकल रहा है. इसमें से आठ क्विंटल तक कूड़े का उठान हो पा रहा है. बाकी दो क्विंटल कूड़े का उठान अभी भी चुनौती बना है.

कूड़ा प्रबंधन के लिए नगर पंचायत व जिला प्रशासन ने अपनी तरफ से भरपूर इंतजाम किए हैं. यात्रा मार्गों पर जगह-जगह कूड़ेदान भी लगाए हैं. लेकिन, यात्रियों के सहयोग न करने के चलते कूड़ा जगह-जगह बिखरा पड़ा है. जगह-जगह प्लास्टिक की बोतलें, रेनकोट, कुरकुरे, चिप्स आदि के पैकेट बिखरे पाए जा रहे हैं. जो या तो नदियों में जा रहे हैं या फिर रास्तों में ही पड़ा रह रहा है. यही हाल अन्य धामों का भी है.

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