सीएम तीरथ सिंह रावत के प्रमुख सलाहकार आरबीएस रावत की नियुक्ति पर बबाल

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ग्राम पंचायत विकास अधिकारी के 298 पदों की परीक्षा में धांधली से जुड़ा घटनाक्रम

पूर्व आईएफएस आरबीएस रावत की मुख्यमंत्री के प्रमुख सलाहकार के पद पर नियुक्ति की गयी, लेकिन वर्ष 2016 में सब ऑर्डिनेट सर्विस कमीशन की 298 ग्राम पंचायत विकास अधिकारीयों की भर्ती परीक्षा में धांधली पाई गयी,. एक ही गांव के 22 अभ्यर्थी चयनित हुए तब संदेह हुआ जो पढाई लिखाई में अक्षम थे और मेधावी युवा चयनित नहीं हुए. इससे उपजे विरोध के बाद कमीशन के चेयरमैन आरबीएस रावत को अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था. आईपीसी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की गंभीर धाराओं में मुकदमा लिखने के बाद विजिलेंस आज भी इस मामले की जांच कर रही है, जांच खत्म नहीं हुई और रावत प्रमुख सलाहकार बन गए । आरबीएस रावत पूर्व सीएम हरीश रावत के करीबी मानें जाते है।

देहरादून। तीरथ सरकार एक और चूक कर गयी है तीरथ सरकार फिर सवालों के घेरे में आ गई है। आरएसएस के प्रांतीय और केंद्रीय टीम के पदाधिकारियों की सिफारिश से पूर्व आईएफएस आरबीएस रावत की मुख्यमंत्री के प्रमुख सलाहकार के पद पर नियुक्ति की गयी, उन पर कई भ्रष्चार के आरोपों की जांच अभी पूरी नहीं हो पायी है।
आपको बता दें कि वर्ष 2016 में सब ऑर्डिनेट सर्विस कमीशन की 298 ग्राम पंचायत विकास अधिकारीयों की भर्ती परीक्षा में धांधली पाई गयी. इससे उपजे विरोध के बाद कमीशन के चेयरमैन आरबीएस रावत को अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था. आईपीसी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की गंभीर धाराओं में मुकदमा लिखने के बाद विजिलेंस आज भी इस मामले की जांच कर रही है, जांच खत्म नहीं हुई और रावत प्रमुख सलाहकार बन गए ।

सबसे बड़ी बात तो यह है कि जब तक जांच में आरोप साबित न हो जाय तब तक किसी को दोषी नहीं कह सकते लेकिन जांच पूरी होने से पहले किसी को निर्दाेष मान लेने की इजाज़त भी कानून नहीं देता है.ऐसे हाई प्रोफाइल पर सरकार के फैसले पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं.।
आपको यह भी बता दें कि कांग्रेस सरकार में प्रभावशाली रहा एक अफसर रिटायर होने के बाद कैसे संघ में प्रान्त पर्यावरण प्रमुख बन गया? वह प्रभावशाली इसलिए भी था, क्योंकि सेवा निवृति के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उन्हें आयोग का चेयरमैन बनाया था. प्रभावशाली इसलिए भी था कि, उनका इस्तीफ़ा छह महीने बाद सितम्बर 2016 में स्वीकार गया.

अब वो भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री के प्रमुख सलाहकार बन गए हैं. यह एक प्रभावशाली पद होता है । आरबीएस रावत अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके विजिलेंस की उस मामले की जांच को प्रभावित नहीं करेंगे, जिसकी वजह से उन्हें कमीशन के पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था. अब रावत को संघ के केंद्रीय और प्रान्त के बड़े पदाधिकारियों का संरक्षण प्राप्त है. जब धांधली सामने आई थी तब विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने सड़क तक इस मामले की जाँच कर दोषियों कार्रवाई करने के लिए हरीश सरकार पर हमला बोला था और आज भाजपा की ही सरकार में ताजपोशी हो गयी. इतना दोष आरबीएस रावत का नहीं है, जितना कि भाजपा सरकार और संघ के कुछ बड़े लोगों का है जिन्होंने जानते हुए भी यह नियुक्ति करवाई. वरिष्ठ आईएएस डॉक्टर रणवीर सिंह की अध्यक्षता वाली समिति की जाँच में गड़बड़ी पाई थी. उसके बाद विजिलेंस जाँच शुरू हुई ।

उत्तराखंड सब ऑर्डिनेट सर्विस कमीशन ने 29 मार्च 2016 को इस परीक्षा का परिणाम घोषित किया तो एक ही परिवार के कई कई सदस्यों का चयनित हो जाना. ऐसे लोग चयनित ही नहीं हुए, बल्कि टॉपर्स भी बन गए थे. पड़ोस के कई ऐसे बच्चे चयनित हो गए जो पढाई लिखाई में अक्षम थे और मेधावी युवा चयनित नहीं हुए. नाकामयाब रहे क़ाबिल युवाओं ने सूची के आधार पर गांव गांव जाकर आंकड़ा जुटाना शुरू किया तो धांधली का खेल खुल गया और बड़ी संख्या में युवाओ ने आंदोलन शुरू कर दिया. उधमसिंह नगर के पास के अकेले महुवा डाबरा गांव से 22 युवाओं का चयन हुआ.था ।
सरकार ने जांच कमेटी गठित की तो कार्मिक विभाग ने कहा कि कोई भ्रसब ठीक है करके रिपोर्ट भेजी और तत्कालीन राज्यपाल ने रिपोर्ट देख करके फाइल वापस भेज दी. लेकिन विपक्ष का दबाव बढ़ रहा था तो तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने जाँच बैठा दी. जांच के लिए एक तत्कालीन प्रमुख सचिव डॉ रणवीर सिंह के नेतृत्व में कमेटी गठित कर दी, जिसमे तत्कालीन आईजी पुलिस जीएस मर्ताेलिया और तत्कालीन अपर सचिव न्याय सयन सिंह को बतौर सदस्य शामिल किया गया. जब विरोध रुकने का नाम नहीं ले रहा था तो उत्तराखंड सब ऑर्डिनेट सर्विस कमीशन के चेयरमैन के पद से आरबीएस रावत को इस्तीफ़ा देना पड़ा. इसमें भी खास बात यह रही कि तत्कालीन सरकार ने छह महीने बाद सितम्बर 2016 में इस्तीफा स्वीकार किया, इसे लेकर सरकार की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ रहे थे ।

जांच समिति ने ओएमआर शीट मंगवाकर देखी और पाया कॉपियों में टेम्परिंग की गयी है, समिति ने यह भी सिफारिश की कि, परीक्षा रद्द करके नए सिरे से कराइ जाय. इसी बीच आयोग के नए चेयरमैन के पद पर अपर मुख्य सचिव के पद से सेवा निवृत हुए एस राजू को नियुक्त कर दिया गया. राजू ने फॉरेंसिक जाँच की सिफारिश भी की और जब लखनऊ से जांच होकर रिपोर्ट आई तो उसमें साफ़ उल्लेख था कि धांधली सुनियोजित तरीके से ओएमआर शीट खाली छुड़वा दी गयी, टेम्परिंग की गयी ।
2018 में इन्हीं पदों के लिए पुनः परीक्षा करवाई गयी तो हैरत में डालने वाले नतीजे सामने आये. कई वो अभ्यर्थी पास हुए जो पहले चयनित नहीं हुए थे और कई वो अभ्यर्थी धराशायी हो गए जो टॉपर बन गए थे.
मामले की विजिलेंस जांच के आदेश
विपक्ष ने जब इस मामले को लेकर हंगामा जारी रखा तो तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री प्रकाश पंत को सदन में विजिलेंस जाँच करवाने का आश्वासन देना पड़ा. इस तरह से जनवरी 2020 में विजिलेंस ने एफआईआर संख्या 1/2020 न/े 420, 468, 471, 120-बी, आईपीसी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के सेक्शन 13 (1) व (2) के तहत मुकदमा कायम करके विवेचना शुरू की गयी. लेकिन यह विवेचना आज तक आगे नहीं बढ़ी ,स्पष्ट है कि प्रभावशाली होने से जांच आगे नहीं बढ़ रही है। सबकुछ आयने तरह साफ है कि भ्रष्टाचार हुआ है तो क्यों फिर जांच को मरोड़ रहे है। अब तो वे सीएम तीरथ सिंह रावत के प्रमुख सलाहाकर बन बैठे है । अब क्या होगा वक्त ही बतायेगा ।

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