इस बार जन्माष्टमी पर द्वापर युग जैसा संयोग, छह तत्वों का एक साथ मिलना बहुत ही दुर्लभ योग

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( डॉ पंडित गणेश शर्मा ज्योतिषाचार्य )। इस वर्ष जन्माष्टमी पर विशेष संयोग बन रहा है जो बेहद दुलभ योग है श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र वृषभ राशि का चंद्रमा में मध्य रात्रि को हुआ था। स्वर्ण पदक प्राप्त ज्योतिषाचार्य डॉ पंडित गणेश शर्मा के अनुसार यह संयोग इस वर्ष जन्माष्टमी पर बन रहा है।

इस जन्माष्टमी पर छह तत्वों का एक साथ मिलना बहुत ही दुर्लभ योग बना रहा है। यह संयोग भगवान श्री कृष्ण के जन्म के समय द्वापर युग में बना था। यह छह तत्व है भाद्र कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र वृषभ राशि में चंद्रमा इसके साथ सोमवार का होना। सभी तत्व 30 अगस्त सोमवार को जन्माष्टमी पर रहेंगे सूर्याेदय से अष्टमी तिथि है जो कि सोमवार रात को 1रू57 बजे तक अष्टमी तिथि रहेगी। इसलिए इस वर्ष जन्माष्टमी को बहुत उत्तम मान रहे हैं।

शर्मा के अनुसार 29 अगस्त रविवार को 11रू27 से अष्टमी तिथि शुरू होगी जो 30 अगस्त सोमवार रात को 1रू57 तक रहेगी। सोमवार को अष्टमी तिथि उदया तिथि के साथ मध्य रात्रि को 12रू00 बजे तक भी रहेगी। इसके चलते स्घ्मार्त और वैष्णव दोनों मतों को मानने वाले एक ही दिन जन्माष्टमी मनाएंगे। इसके पहले वर्ष 2014 में भी ऐसा संयोग आया था। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी होने के कारण इस योग की महत्ता बढ़ गई है। जो लोग जन्माष्टमी व्रत नहीं करते उनके लिए इस वर्ष व्रत करना बहुत सुखकारी रहेगा। निर्णय निर्णय सिंधु ग्रंथ के अनुसार ऐसा

संयोग जन्माष्टमी पर आया है तो इस अवसर को हाथ से जाने नहीं देना चाहिए। इस संयोग में जन्माष्टमी व्रत करने से तीन जन्मों के जाने अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही प्रेत योनि में जो पितर भटक रहे हैं, पूर्वजों को व्रत करने से शांति मिलती है।
इस दिन भगवान श्री कृष्ण के जन्म के साथ ही दही मटकी गोविंदा द्वारा फोड़ी जाती है। जन्माष्टमी का उपवास रखने वाले लोग भगवान को सुंदर नवीन वस्त्र आदि से श्रृंगार करते हैं। इस व्रत में भोजन नहीं किया जाता है। रात को 12 बजे पूजा करने के बाद उपवास खोला जाता है।

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