कांग्रेस तय नहीं कर पा रही प्रदेश अध्यक्ष और नेता विपक्ष

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उत्तराखंड कांग्रेस के प्रभारी देवेंद्र यादव दिल्ली में हाईकमान से बात कर चुके हैं और कांग्रेस का दावा है कि दोनों अहम नामों की घोषणा जल्द होगी. लेकिन कब? और अब तक क्यों नहीं हुई? इस बात का कोई जवाब नहीं है. क्या लॉबिंग चल रही है? क्या रणनीति चल रही है।

देहारादून. उत्तराखंड चुनाव के रिज़ल्ट आए पूरा महीना होने को है और कांग्रेस अहम फैसलों में पिछड़ गई है. पुष्कर धामी की सरकार बन गई, मंत्रिमंडल का गठन हो गया और विधानसभा का एक सत्र भी, लेकिन राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के पास न तो प्रदेश अध्यक्ष है और न ही विधानसभा में नेता विपक्षी दल. सवाल ये है कि पेच फंसा कहां है और हल कब तक निकलेगा? पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल दिल्ली से लौटकर कह रहे हैं कि जल्द ऐलान होगा. हालांकि लॉबिंग से पार्टी कन्फ्यूज़ है, एक दूसरे के खिलाफ बयानबाज़ी पर उतारू कांग्रेसी ये मानने को तैयार नहीं हैं.
उत्तराखंड कांग्रेस बिना सेनापति के बेचौन है और पार्टी आगे की रणनीति नहीं तय कर पा रही. चुनाव के दौरान पार्टी अध्यक्ष रहे और चुनाव परिणाम आने के बाद इस्तीफा देने वालों में सबसे आगे रहे गणेश गोदियाल दिल्ली में तमाम नेताओं से मुलाकात के बाद लौटकर आश्वस्त हैं कि उनके लिए आगे अच्छा ही होगा. पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कैंप के माने जाने वाले गोदियाल को दोबारा प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की पैरवी कांग्रेस का एक धड़ा कर रहा है और इसके लिए तर्क भी दे रहा है.
प्रदेश अध्यक्ष के लिए नेताओं में मची होड़
गोदियाल के पक्ष में तर्क यह है कि बतौर प्रदेश अध्यक्ष उन्हें बहुत कम समय मिला. वह खुद अपनी सीट बहुत कम वोटों से हारे और उनके कार्यकाल में कांग्रेस चुनाव जीत न हो, लेकिन वोट परसेंट और सीटें लगभग दोगुनी करने में सफल रही. लेकिन कांग्रेस का दूसरा धड़ा युवा नेता भुवनचंद्र कापड़ी की पैरवी कर रहा है, जो सिटिंग सीएम और विधायक पुष्कर धामी को खटीमा से चुनाव हराने में सफल रहे. खास बात है कि गोदियाल और कापड़ी दोनों ब्राह्मण हैं.
क्षेत्रीय और जातीय संतुलन होंगे अहम
उत्तराखंड में कांग्रेस और बीजेपी एक फॉर्मूले को बहुत शिद्दत से फॉलो करती आई हैं और वो है ब्राह्मण-राजपूत के बीच और कुमाऊं-गढ़वाल क्षेत्र के बीच बेलेंस. प्रदेश अध्यक्ष के लिए आगे की पंक्ति में दौड़ रहे गोदियाल और कापड़ी ब्राह्मण तो हैं लेकिन गोदियाल गढ़वाल क्षेत्र से आते हैं तो कापड़ी कुमाऊं से. अगर पार्टी कापड़ी को अध्यक्ष बनाती है तो ऐसी सूरत में गढ़वाल क्षेत्र से किसी राजपूत को नेता विपक्षी दल की ज़िम्मेदारी दी जाएगी. इसके उलट अगर गोदियाल को प्रदेश अध्यक्ष की कमान दोबारा मिली तो नेता विपक्षी दल कुमाऊं से होना तय है.
कौन हो सकता है नेता प्रतिपक्ष?
6 बार के विधायक प्रीतम सिंह जो इस पद पर रह चुके हैं, उनका कहना है कि वह दावेदार नहीं और फैसला पार्टी पर है. कांग्रेस के केंद्रीय नेता अश्वनी पांडे उत्तराखंड आकर नेताओं की नब्ज़ टटोल चुके हैं. सूत्रों के अनुसार कोई ताज्जुब नहीं होना चाहिए कि प्रदेश अध्यक्ष या नेता विपक्षी दल में से किसी एक पद पर किसी दलित विधायक की भी ताजपोशी हो जाए. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य का नाम भी चर्चा में चल रहा है.
गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 19 सीटों पर आकर अटक गई लेकिन उसका वोट शेयर 2017 का मुकाबले करीब 4 फ़ीसदी बढ़ा. ये कंडीशन पंजाब और दूसरे राज्यों में नहीं रही, जहां कांग्रेस का वोट प्रतिशत भी घटा और सीटें भी. फिर भी, पंजाब की तरह उत्तराखंड में भी नेता तय न हो पाने के सवालों पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मथुरा दत्त जोशी का कहना है कि फैसला तो पार्टी को ही करना है, लेकिन कांग्रेस में नेताओं की कमी नहीं है.।

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