10 माह में पार करनी होगी चुनौतियों की कठिन डगर
देहरादून । त्रिवेंद्र सिंह रावत की विदाई के बाद अब उत्तराखंड में नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की ताजपोशी हो गई है, लेकिन उनकी डगर आसान भी नहीं है। एक तो वक्त कम और उस पर चुनौतियों का अंबार। तीरथ को कामकाज के लिए महज 10 माह का ही वक्त मिलेगा। लिहाजा, उन्हें इसी अवधि में खुद को साबित करने के साथ ही चुनौतियों की राह भी पार करनी होगी। वजह यह कि अगले साल पार्टी को विधानसभा चुनाव में जनता की चौखट पर जाना है। हालांकि, इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता तो रहेगी ही, मगर राज्य का चेहरा तो तीरथ ही रहेंगे। ऐसे में उनके सियासी कौशल की परीक्षा का यह कालखंड रहेगा।
उत्तराखंड के सियासी नजरिये से देखें तो यहां वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से भाजपा विजय रथ पर सवार है। तब से अब तक हुए सभी चुनावों में भाजपा ने राज्य में अपना परचम फहराया है। 2017 के विधानसभा चुनावों में तो पार्टी ने प्रचंड बहुमत हासिल किया। विधानसभा की 70 में से 57 सीटें उसकी झोली में आईं। अब 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में ऐसा ही प्रदर्शन दोहराने की चुनौती पार्टी के सामने है। हालांकि, पार्टी ने विधानसभा चुनाव से सालभर पहले ही नेतृत्व परिवर्तन कर दिया है। इसे भी चुनाव के नजरिये से ही देखा जा रहा है। नए मुख्यमंत्री के रूप में गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत की ताजपोशी हो गई है, मगर उनके सामने एक नहीं अनेक चुनौतियां मुंहबाए खड़ी हैं। साथ ही पिछली सरकार का यश-अपयश भी उन्हें अपने सिर लेना होगा।
प्रमुख चुनौतियां
मिशन-2022 रू-भाजपा की त्रिवेंद्र सरकार ने 18 मार्च 2017 को शपथ ली थी। अब नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को कामकाज के लिए करीब 10 माह का ही वक्त ही मिलेगा। फरवरी तक चुनाव हो सकते हैं। यही, तीरथ की असल परीक्षा भी होगी। विधानसभा चुनाव में पिछला प्रदर्शन दोहराने की चुनौती उनके सामने रहेगी। यदि सीटें कम हुई तो इसका ठीकरा भी उनके सिर फूटेगा।
नौकरशाही – राज्य में बेलगाम नौकरशाही की कारगुजारियां अक्सर सुर्खियां बनती हैं। हालांकि, तीरथ इसके लिए नए सिरे से पत्ते फेंटेंगे, मगर नौकरशाही के पेच कसने के लिए उन्हें सख्त कदम भी उठाने होंगे। नौकरशाही को अहसास दिलाना होगा कि जनता की सेवा उसके लिए सर्वाेपरि होनी चाहिए।
विकास की गति -कोरोना संकट के बीच अगले 10 माह में राज्य के विकास की रफ्तार बढ़ाने के लिए तीरथ को नई रणनीति से काम करना होगा। इसमें गढ़वाल और कुमाऊं दोनों मंडलों के मध्य संतुलन साधते हुए राज्य के सर्वांगीण विकास का खाका तैयार कर इसे धरातल पर आकार देने की चुनौती उनके सामने रहेगी।
विधायकों में असंतोष – पिछली सरकार के चार साल के कार्यकाल में सत्ता पक्ष के विधायक भी अपने-अपने क्षेत्रों में कार्य न होने को लेकर मुखर रहे हैं। कई मर्तबा उनका असंतोष सतह पर भी उभरा है। चुनावी वर्ष होने के मद्देनजर नए मुख्यमंत्री को सभी पार्टी विधायकों को विश्वास में लेकर चलना होगा, ताकि असंतोष के सुर न उभरें।
सरकार-संगठन में तालमेल – नए मुख्यमंत्री के सामने सरकार और पार्टी संगठन के मध्य बेहतर तालमेल बैठाने की चुनौती होगी। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि क्योंकि अगले वर्ष पार्टी को चुनाव मैदान में उतरना है। इसके साथ ही तीरथ को भाजपा के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी साथ लेकर चलना होगा।
गैरसैंण का पेच -ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण के सुनियोजित विकास की राह प्रशस्त करने की चुनौती तो नई सरकार के सामने रहेगी, मगर असल मसला गैरसैंण कमिश्नरी के पेच को सुलझाने का है। गैरसैंण कमिश्नरी का कुमाऊं क्षेत्र में विरोध हो रहा है। पार्टी के भीतर भी इसके सुर उठे हैं।
विपक्ष से मुकाबला – यह ठीक है कि संख्या बल के आधार पर विपक्ष की संख्या 11 सदस्यों तक सिमटी है, मगर वह तमाम मसलों पर सरकार को घेरता आया है। और तो और,त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में विधानसभा सत्रों के दौरान सोमवार हमेशा चर्चा का विषय बनता आया है।