25 साल बाद भी रामपुर तिराहा कांड के दोषियों पर नहीं हुई सजा

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नैनीताल। राज्य आंदोलन के दौरान देश के सबसे जघन्य कांडों में शामिल रामपुर तिराहा कांड में पांच आंदोलनकारियों की मौत, सात महिला आंदोलनकारियों के साथ दुष्कर्म तथा 17 महिला आंदोलनकारियों के साथ अत्याचार के मामले में राज्य बनने के बाद 25 साल बाद भी न्याय का इंतजार है।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर देहरादून सीबीआइ कोर्ट ने मुजफ्फरनगर के तत्कालीन जिलाधिकारी अनंत कुमार सिंह सहित सात अन्य के मामलों को मुजफ्फरनगर की कोर्ट स्थानांतरित कर दिया। तब से इन मामलों में आज तक सुनवाई नहीं हो सकी। इस मामले में राज्य आंदोलनकारी सुप्रीम कोर्ट तक गए, वहां से मामला नैनीताल हाई कोर्ट भेज दिया। अब इस मामले में नैनीताल हाई कोर्ट चार अगस्त को फाइनल सुनवाई करेगा।

अलग राज्य आंदोलन के दौरान दो अक्टूबर 1994 को दिल्ली जा रहे राज्य आंदोलनकारियों को उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सरकार के निर्देश पर मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर रोक दिया गया। इस दौरान आंदोलनकारियों पर पुलिस टूट पड़ी। महिला आंदोलनकारियों के साथ दुष्कर्म व अत्याचार किए गए। जिसमें सात आंदोलनकारियों की पुलिसिया जुल्म में मौत हो गई। इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्देश पर इस मामले की सीबीआइ जांच के आदेश हुए थे।

मुजफ्फरनगर के तत्कालीन डीएम ने 2003 में नैनीताल हाई कोर्ट में याचिका दायर की तो कोर्ट ने राज्यपाल से मुकदमे की अनुमति नहीं मिलने के आधार पर उन्हें राहत दे दी

दरअसल, नौ फरवरी 1996 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राज्य आंदोलन के दौरान पहली सितंबर को खटीमा में सात आंदोलनकारियों की मौत, रामपुर तिराहा में पांच आंदोलनकारियों की मौत, सात दुराचार के केस तथा 17 महिला आंदोलनकारियों के साथ अत्याचार के मामलों की सीबीआइ जांच के आदेश दिए थे।

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