टाटा सन्स के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा का मुंबई में निधन
पारसी धर्म में आसमान को सौंपा जाता है शव, रतन टाटा के निधन पर बदल गई परंपरा
नई दिल्ली । टाटा सन्स के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा का बुधवार की देर रात मुंबई में निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार मुबई में हुआ। रतन टाटा पारसी धर्म से ताल्लुक रखते हैं। लेकिन उनका अंतिम संस्कार पारसियों के पारंपरिक तरीके से इतर हुआ। उनका अंतिम संस्कार विद्युत शवदाह गृह में किया गया। इससे पहले करीब 45 मिनट तक उनके लिए प्रार्थना की गई। अंतिम संस्कार से पहले रतन टाटा को राज्य सरकार की ओर से गार्ड ऑफ ऑनर भी दिया गया।
हालांकि, पारसी रीति-रिवाज में अंतिम संस्कार की परंपरा अलग और काफी कठिन होती है। हिंदू धर्म में शव को अग्नि या जल को सौंपा जाता है, मुस्लिम और ईसाई समुदाय में शव को दफन कर दिया जाता है, लेकिन पारसी समुदाय में ऐसा नहीं होता है। पारसी लोग शव को आसमान को सौंप देते हैं, जिसे गिद्ध, चील, कौए खा जाते हैं।
पारसी आसमान को क्यों सौंप देते हैं शव?
हिंदू धर्म में शव को अग्नि या जल को सौंपते हैं। मतलब शव को जलाया या जल में प्रवाहित कर दिया जाता है। कुछ जगहों पर शव को दफन करने की परंपरा भी है। वहीं, मुस्लिम व ईसाई धर्म में शव को धरती को सौंप दिया जाता है। मतलब दफन कर दिया जाता है। लेकिन, पारसी संप्रदाय में अंतिम संस्कार बिल्कुल अलग होता है। पारसी लोग अग्नि को देवता मानते हैं। इसी तरह जल और धरती को भी पवित्र मानते हैं। जबकि शव को अपवित्र माना जाता है। पारसी समुदाय का मानना है कि शव को जलाने, प्रवाहित करने या दफन करने से अग्नि, जल या धरती अपवित्र हो जाती है। ऐसा करने से ईश्वर की संरचना प्रदूषित होती है। इसलिए पारसी समुदाय में शव को आसमान को सौंप दिया जाता है। इसके लिए एक खास स्थान का चयन किया गया है।
फिर शव का क्या होता है? क्या है
अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर पारसी लोग कैसे शव को आसमान को सौंपते हैं? दरअसल इसके लिए एक खास जगह का चयन किया गया है। उसे टावर ऑफ साइलेंस कहा जाता है। इसे दखमा भी कहते हैं। ये एक बड़ा सा गोलाकार कढ़ाईनुमा कूप होता है। इसमें शव को सूरज की रोशनी में पारसी लोग ले जाकर छोड़ देते हैं। जिसे बाद में गिद्ध, चील, कौए खा जाते हैं। दुनियाभर में पारसी समुदाय से जुड़े लोगों की आबादी करीब डेढ़ लाख है। इनमें से ज्यादातर मुंबई में रहते हैं। यही कारण है कि मुंबई के बाहरी इलाके में टावर ऑफ साइलेंस बनाया गया है।
अब क्यों पारसी समुदाय में बदली परंपरा?
दरअसल दखमा में रखे शव को ज्यादातर गिद्ध ही खाते हैं। पिछले कुछ सालों में गिद्धों की संख्या तेजी से घट गई है। अब ज्यादा गिद्ध नहीं दिखते हैं। पारसी समुदाय के लिए यही चिंता का सबब है। अब पारसी लोगों को इस पद्धति से अंतिम संस्कार करने में दिक्कत आ रही है। क्योंकि, शव को खाने के लिए गिद्ध नहीं पहुंचते तो यह सड़ जाता है। इसके चलते दूर-दूर तक बदबू फैल जाती है और बीमारी फैलने का भी डर होता है।
कोरोना काल में भी पारसियों के अंतिम संस्कार पर उठा था विवाद?
कोरोनाकाल के दौरान भी ये मुद्दा उठा था। उस दौरान भी पारसी धर्म गुरु चाहते थे कि इसी पद्धति से शवों का अंतिम संस्कार किया जाए, लेकिन ये कोविड नियमों के अनुरूप नहीं था। विशेषज्ञों ने इसके लिए तर्क दिया कि इस तरह से संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाएगा। पक्षियों में भी संक्रमण फैल सकता है। ऐसे में यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा। अब बहुत पारसी समुदाय के बहुत से लोग विद्युत शवदाहगृह में अंतिम संस्कार करा रहे हैं। यही कारण है रतन टाटा का अंतिम संस्कार भी बदली हुई परंपरा के अनुसार होगा।
रतन टाटा ने मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में ली अंतिम सांस
रतन टाटा के निधन पर देशभर में शोक की लहर है। उन्होंने 86 साल की आयु में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली। टाटा के निधन पर टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन ने समूह की तरफ से संदेश जारी किया। चंद्रशेखरन ने पद्मविभूषण रतन टाटा योगदान को अतुल्य बताया। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा है कि टाटा का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।