प्रकृति से छेड़छाड़ कर इंसान खुद आपदाओं को दे रहा न्योता

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उत्तराखंड को हर साल प्राकृतिक आपदाएं झकझोर रही हैं। बादल फटने, बाढ़, भूस्खलन जैसी आपदाओं से भारी नुकसान झेलने के बाद भी हम सबक नहीं ले रहे हैं। पर्यावरणविदों की मानें तो प्रकृति से छेड़छाड़ कर इंसान खुद आपदाओं को न्योता दे रहा है। हिमालयी क्षेत्रों में नदियों, गाड़-गदेरों की राह में बड़े व भारी निर्माण नहीं रुक रहे हैं।

इन आपदाओं से सबक लेकर इंसानी आपदा को रोकने की जरूरत है। नहीं तो आने वाले समय में और भयानक परिणाम सामने आएंगे। पद्मभूषण पर्यावरणविद् डॉ. अनिल जोशी का कहना है आपदाओं के लिए सिर्फ उत्तराखंड ही नहीं, पूरी दुनिया की गलती है। जो नियंत्रण से बाहर जा रही है। इसी वजह से ग्लोबल वार्मिंग से हिमखंड तेजी से पिघल रहे हैं। बढ़ते तापक्रम से समुद्र भी तप रहा है। इसके कारण बारिश का चक्र भी बदल रहा है। कहीं कम बारिश तो कहीं ज्यादा हो रही है।

ग्लेशियर पिघलने से पानी इक्ट्ठा होने से झीलें बन रही हैं। ज्यादा बारिश से झीलों की श्रृखंला टूटने से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो रही है। नदियों, गाड़ गदेरों के रास्ते रोकना इंसानी गलती है। जोशी के मुताबिक बसावटों व हिमखंडों के बीच वैज्ञानिक अध्ययन होना चाहिए। यदि हिमखंडों में झीलें बन रही है तो आपदा से बचने के लिए निचले क्षेत्रों में पानी निकलने को रास्ता साफ होना चाहिए।

पर्यावरणविद् सुरेश भाई का मानना है कि प्रकृति से छेड़छाड़ का परिणाम आपदा के रूप में सामने आ रही है। अभी नहीं चेते तो आने वाले समय में और भयावह स्थिति का सामना करना पड़ेगा। हिमालयी क्षेत्रों में विकास का बुनियादी ढांचा आपदाओं के अनुकूल नहीं है। आपदाओं को रोकने के लिए इंसानी आपदा को रोकने की जरूरत है। हिमालयी राज्यों के लिए अलग से विकास नीति बनाने की आवश्यकता है। आपदा की दृष्टि से भागीरथी जोन संवेदनशील है। इसके बाद भी सड़क निर्माण के लिए पेड़ों का कटान किया जा रहा है।

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