करोड़ों रूपये बहाये, फिर भी पहाड़वासी पेयजल के लिए तरसे
बागेश्वर/ अल्मोड़ा । जहां सरयू ,गोमती कोसी व रामगंगा सदानीरा नदियां बहती है। पहाड़ में अंधाधुध जंगलों के कटान से हजारों गांवों में पेयजल संकट पैदा हो गया हैं स्त्रोतों का बेहतर संरक्षण न हो पाने से लोगों को कई मील दूर से पानी ढोना पड़ रहा हैं।अब तो पहाड़ में यह आलम है कि शराब बड़ी आसानी से प्राप्त हो जायेगी लेकिन पीने के लिए पानी नसीब नहीं होगा। आने वाली गर्मी में जो श्रोत बचें हुए है वह भी अब सूखने के कगार में है ,नदियों में पानी का स्तर अनुमान से पहिले ही काफि कम हो गया है। अभी गर्मी अपने पायदान में नहीं पहुंच पायी है। यानि कि गर्मी आने के शुरू में ही ये लक्षण दिख रहे है तो चरम गर्मी के आने तक लोग पानी के लिए तरस जायेगें ।
उत्तराखंड राज्य आन्दोलनकारी विनोद घड़ियाल का कहना है कि पहाडो में पानी का सूखा व शराब के तालाब बने हुए हैं ।पेयजल निगम ,जल संस्थान जलागम, वन विभाग एवं उद्यान जल संरक्षण के लिए करोड़ो रूपये गवां रहे है इसके बाबजूद हालात सुधरने के बाबजूद और ज्यादा खराब होते जा रही हैं । कुमांऊ में 125 ऐसे गांव है जहां पानी के श्रोत बिल्कुल सूख गये है।इसके अलावा 132 गांव के लोग पीने का पानी 5 किलोमी. दूर से ढों रहे है। जलसंस्थान व जल निगम ने आपदा में लाखों की क्षति दिखाकर योजनाए पुनः बनाई लेकिन उनमें पानी की बूंद आजतक नहीं टपका हैं । अधिकतर योजनाएं प्राकृतिक स्त्रोंतो पर निर्भर है। लेकिन स्त्रोंतों में पानी सूखते आ रहा हैं इसका प्रमुख कारण वनों का क्षेत्रफल कम होना बताया गया हैं वन विभाग को प्रतिवर्ष करोड़ों रूपये वृक्षारोपण में मिल रहे हैं लेकिन विभाग ने कभी भी अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह नहीं किया । जानकार सूत्रों से ज्ञात हुआ कि अगर किसी क्षेत्र में 20 हजार का वृखारोपाण होना है तो उसमें 4 हजार पौधों का वृक्षारोपण ही होगा वांकि 16 हजार पौधे कागजों में लगाये जाते है जिसके फर्जी बिल बनकर उच्चस्तर तक बंदरबांट होती है। इसके अलावा जल संस्थान व जल निगम ने आपदा राहत में करोड़ों रूपये की मांग योजनाओं को ठीक कराने के लिए की गई जिसमें से सरकार ने प्राथमिकता से धन उपलब्ध कराया लेकिन जनप्रतिनिधियों व अधिकारीयों की सांठगांठ से आजतक कोई भी योजना जनपद में सफल नहीं हो पाई है जिसका खामजियां पहाड़ के लोग भुगत रहे है।