138 वर्षाे में कई बार सर्वे हुआ पर पहाड़ न चढ़ सकी ट्रेन

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बागेश्वर-टनकपुर रेल लाईन का प्रस्ताव ब्रिटिश शासनकाल में वर्ष 1882 में दिया गया था। हकीकत यह है कि वर्ष 1912 से लेकर 2010 तक पांच बार सर्वे हो चुका है।

बागेश्वर । ब्रिटिश शासन काल से जिस ट्रेन को चलाने की तैयारी चल रही थी, उसका संचालन 138 वर्ष बाद भी नहीं हो सका। आजादी के 72 साल बाद भी बागेश्वर-टनकपुर रेल लाइन हर वर्ष सर्वे की फाइलों में छुकछुक करती है, लेकिन जमीन पर नहीं उतरती। अब तक देश में कई रेल योजनाएं बनी। इसके बावजूद बागेश्वर के लोगों की उम्मीदें घुंधली होती दिखाई दे रही है क्योंकि क्षेत्रीय सांसद ने इस तरफ मुंह मोड लिया है। इसके अलावा भाजपा के नेता कोई भी समर्थन नहीं कर रहे है न ही कोई बयानबाजी कर रहे है।
जिले में रेल लाइन के लिए संघर्ष समिति का क्रमिक अनशन किए, आन्दोलन हुए। लंबे समय से रेल लाइन की मांग कर रहे आंदोलनकारियों का कहना है कि सरकार को जनता की सुध नहीं ले रही है।
दरअसल, जिले को रेल लाइन से जोड़ने के लिए बीते 42 सालों से आंदोलन किया जा रहा है। जबकि रेल के लिए ब्रिटिश हुकूमत से अब तक पांच बार सर्वे भी किया जा चुका है। पहली बार बागेश्वर-टनकपुर रेल लाईन का प्रस्ताव ब्रिटिश शासनकाल में वर्ष 1882 में दिया गया था। हकीकत यह है कि वर्ष 1912 से लेकर 2010 तक पांच बार सर्वे हो चुका है। 2010 में इस परियोजना में अनुमानित 2800 करोड़ की लागत आने की बात रेलवे अधिकारी ने बतायी थी। जानकरी मुताबिक 2010 में अंतिम सर्वे हुई थी जिसकी कुल लम्बाई 155 किलोमीटर होगी जिसकी रिपोर्ट रेलवे बोर्ड को भेज दी थी । उस वक्त क्षेत्रीय सांसद ,विधायक ने कोई पहल नहीं की जिसे मामला लटक गया । रेल लाईन संधर्ष समिति के जिलाध्यक्ष दीपा दफोटी ने कहा कि बागेश्वर में रेल लाईन की वर्षो से मांग की जा रही है आजतक किसी ने भी इसे गंभीरता नहीं लिया उनका कहना है कि जब तक हमारी मांगे पूरी नहीं हो जाती आन्दोलन जारी रहेगा ।गोविन्द सिंह धपोला ने कहा कि अगर पहाड़ में रेल लाईन आ जायेगी तो पहाड़ का पलायन रूक जायेगा ,सबसे बड़ी बात उन्होनें कही कि हमारा पहाड़ चारो तरफ से चीन व नेपाल सीमा से घिरा हुआ है सुरक्षा के लिहाज से काफि संवेदनशील है। अगर रेल लाईन आयेगी तो यहां का पयर्टन को काफि बढ़वा मिलेगा रोजगार के साधन बढ़गे ।

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