बागेश्वर विधान सभा में बड़े मुद्दे धरे के धरे रह गये
2007 से लगातार चन्दन राम दास विधायक जीतते आ रहे है ,आजतक बागेश्वर में कोई बड़ी योजना नहीं बनी , बागेश्वर की जिला मुख्यालय में लोग पानी के लिए तरस रहे है लगातार 15 साल तक विधायक रहते हुए भी चन्दनराम दास विकास के नाम पर कुछ नही कर पाए
बागेश्वर। चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है ,प्रत्याशियों की धड़कने तेज होती जा रही है। वही आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति के बीच कोई भी जनमुछ्दो की बात नहीं कर रहे है। बागेश्वर विधान सभा आरक्षित होने से चन्दन राम दास 2007 से लगातार विधायक बने हुए है। आजत कोई बड़ी योजना लाने में कामयाब नहीं हो पाए ।
बागेश्वर नगर की मूल समस्या पेयजल और सीवरेज है। इसके साथ ही स्टेडियम की मांग भी काफी समय से चल रही है लेकिन किसी भी पार्टी ने अब तक इन समस्याओं के हल की दिशा में पत्ते नहीं खोले हैं। प्रत्याशी प्रचार के दौरान भी इन मुद्दों पर कोई चर्चा नहीं करते दिख रहे।
जिला गठन के 25 साल बाद भी बागेश्वर में सीवर लाइन का निर्माण नहीं हुआ है। दो-दो नदियां होने के बाद भी पानी का संकट है। जिला बनने के 25 साल बाद भी खेल स्टेडियम जिला मुख्यालय में नहीं है। पानी की कमी के कारण लोग प्राकृतिक स्रोत, हैंडपंपों पर निर्भर हैं। सदानीरा सरयू और गोमती के संगम पर बसे बागेश्वर के लोगों को जरूरत का आधा पानी भी नहीं मिल पा रहा है। जिला मुख्यालय को हर रोज करीब आठ एमएलडी (मिलियन लीटर पर डे) पानी की आवश्यकता है जबकि आपूर्ति मात्र साढ़े तीन एमएलडी की ही होती है।
इसी तरह जिला मुख्यालय के सबसे बड़े मुद्दों में सीवरेज लाइन का मुद्दा भी शामिल है। हर चुनाव में नेताओं की जुबान पर सीवरेज सिस्टम पुख्ता करने की बात होती है, लेकिन चुनाव गुजरते ही यह अहम मुद्दा गौण हो जाता है। इसके साथ ही रोहित दानू जैसे फुटबॉलर देने वाले बागेश्वर के खिलाड़ी एक अदद खेल स्टेडियम के लिए तरस रहे हैं। खेल स्टेडियम न होने से खेल गतिविधियों के लिए डिग्री कॉलेज के खेल मैदान पर ही निर्भर रहना पड़ता है। 15 सितंबर 2022 को जिला 25 साल का हो जाएगा लेकिन इन तीन अहम मुद्दों का समाधान राजनीतिक दल, जनप्रतिनिधि और सरकार अब तक नहीं कर पाए हैं।
डपो के नाम पर सिर्फ मिला भवन
बागेश्वर। उत्तराखंड परिवहन निगम ने बागेश्वर डिपो में तीन करोड़ की लागत से बिलौना में भवन तो बना दिया लेकिन अब तक यहां से आंतरिक मार्गों में बसों का संचालन नहीं होता है। लंबी दूरी की भी मात्र छह बसें संचालित होती हैं। दो साल पहले शुरू हुए इस डिपो में भी कर्मचारियों की कमी समेत तमाम समस्याएं मौजूद हैं। संवाद