ज्ञानवापी प्रकरण में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएगा मुस्लिम पक्ष

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लखनऊ। (विनोद तिवारी ) । इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वे के वाराणसी जिला जज के फैसले के खिलाफ दायर अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी की याचिका खारिज करते हुए सर्वे कराए जाने का आदेश दिया है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण करने की अनुमति देने के बाद इस मामले में आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि मुस्लिम पक्ष इस आदेश को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने पर विचार करेगा।
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि हमें उम्मीद है कि न्याय होगा क्योंकि यह मस्जिद करीब 600 साल पुरानी है और मुसलमान पिछले 600 सालों से वहां नमाज अदा करते आ रहे हैं। हम भी चाहते हैं कि देश के सभी पूजा स्थलों पर प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट लागू हो।
क्या है इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला
चीफ जस्टिस ने कहा कि सर्वे पर लगी रोक समाप्त की जाती है। कोर्ट ने एएसआई सर्वे को लेकर एएसआई की तरफ से दिए हलफनामे पर टिप्पणी की कि उस हलफनामा पर अविश्वास करने का कोई आधार नहीं है। हलफनामा में एएसआई ने कहा था कि उनके सर्वे से ज्ञानवापी परिसर में किसी भी प्रकार का इंच भर भी नुकसान नहीं होगा। हाईकोर्ट ने वाराणसी जघ्लिा कोर्ट के सर्वे कराने के आदेश को भी सही माना है। मुस्लिम पक्ष ने सर्वे से ढांचे को नुकसान होने का अंदेशा जताया था।
क्या है ज्ञानवापी परिसर विवाद

1-ज्ञानवापी मस्जिद वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी हुई है। इस मस्जिद को लेकर दावा किया जाता है कि इसे मंदिर को तोड़कर बनाया गया था।
2-हिंदू पक्ष का दावा है कि इस ढ़ाचे के नीचे 100 फीट ऊंची विशेश्वर का स्वयम्भू ज्योतिर्लिंग स्थापित है। पूरा ज्ञानवापी इलाका एक बीघा, नौ बिस्वा और छह धूर में फैला है।
3-कोर्ट में याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करीब 2,050 साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने करवाया था, लेकिन मुगल सम्राट औरंगजेब ने सन् 1664 में मंदिर को नष्ट कर दिया था।
4-दावा किया गया कि इसके अवशेषों का उपयोग मस्जिद बनाने के लिए किया था, जिसे मंदिर भूमि पर निर्मित ज्ञानवापी मस्जिद के रूप में जाना जाता है।
वर्ष 1585 में राजा टोडरमल ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था। वह अकबर के नौ रत्नों में से एक माने जाते हैं, लेकिन वर्ष 1669 में औरंगजेब के आदेश पर इस मंदिर को पूरी तरह तोड़ दिया गया और वहां पर एक मस्जिद बना दी गई। बाद में मालवा की रानी अहिल्याबाई ने ज्ञानवापी परिसर के बगल में नया मंदिर बनवाया, जिसे आज हम काशी विश्वनाथ मंदिर के रूप में जानते हैं। ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर हिंदू पक्ष का दावा है कि इस विवादित ढांचे के नीचे ज्योतिर्लिंग है। यही नहीं ढांचे की दीवारों पर देवी देवताओं के चित्र भी प्रदर्शित है।
1991 में वाराणसी कोर्ट में मुकदमा दाखिलकर मांगी गई थी ज्ञानवापी में पूजा करने की अनुमति

काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी केस का वर्ष 1991 में वाराणसी कोर्ट में मुकदमा दाखिल किया गया था। इस याचिका के जरिए ज्ञानवापी में पूजा करने की अनुमति मांगी गई थी। प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विशेश्वर की ओर से सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय बतौर वादी इसमें शामिल हैं। मुकदमा दाखिल होने के कुछ दिनों बाद ही मस्जिद कमिटी ने केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट, 1991 का हवाला देकर हाई कोर्ट में चुनौती दी।इसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 1993 में स्टे लगाकर यथास्थिति कायम रखने का आदेश जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद स्टे आर्डर की वैधता पर 2019 को वाराणसी कोर्ट में फिर से सुनवाई की गई थी। कई तारीख मिलने के बाद वाराणसी की सिविल जज सीनियर डिविजन फास्ट ट्रैक कोर्ट से ज्ञानवापी मस्जिद की पुरातात्विक सर्वेश्रण की मंजूरी दी गई थी। मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर सर्वे पर रोक लगाने की मांग की थी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एएसआई सर्वे करने का आदेश जारी किया
इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस प्रकरण में क्रमशः 25, 26 और 27 जुलाई को सुनवाई हुई थी। वाराणसी के जिला जज ने 21 जुलाई को फैसला दिया था। मस्जिद पक्ष 24 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में गया। सुप्रीम कोर्ट ने सर्वे पर अंतरिम रोक लगाते हुए याचिकाकर्ता को इलाहाबाद हाई कोर्ट जाने के लिए निर्देशित किया। इलाहाबाद हाईकोर्ट में तीन दिनों में लगभग सात घंटे सुनवाई चली थी। जिसके बाद आज हाईकोर्ट ने इस मामले में ज्ञानवापी परिसर का एएसआई सर्वे करने का आदेश दघ्यिा है।

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