कुंजवाल ने घर से ही कर दी थीं सादे पेपर में सचिवालय में नियुक्तियां, भाजपा सरकार बचाव में क्यों ?
चोरों ने यह रास्ता अपनाया अपनों के लिए ,करोड़ो कमाए
- बड़ा सवाल तो यह उठता है कि आखिर ऐसा हो कैसे गया. दरअसल नियुक्तियों में तब तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष से लेकर कई विधायक और मंत्रियों के रिश्तेदार शामिल थे जिन्हें रातों-रात महत्वपूर्ण पदों पर नौकरियां दे दी गई थीं.
- गोविन्द सिंह कुंजवाल ने गरीब बच्चों को गला घोटा ,सबसे भ्रष्ट विधान सभा अध्यक्ष , नियमों को ताक पर रखकर की गई अंधाधुंध नियुक्तियां
* तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल के बेटे पंकज कुंजवाल को क्लास टू श्रेणी में विधानसभा रिपोर्टर के पद पर नियुक्ति दे दी गई. इस पद के लिए अंग्रेजी और हिंदी में शॉर्ट हैंड अनिवार्य है लेकिन, पंकज कुंजवाल को शॉर्ट हैंड आती ही नहीं है.
* कुंजवाल की बहु स्वाति कुंजवाल को भी 5400 ग्रेड पे पर उप प्रोटोकॉल अधिकारी में तदर्थ नियुक्ति दे दी गई.
कुंजवाल के भतीजे स्वपनिल कुंजवाल को सहायक समीक्षा अधिकारी के पद पर नियुक्ति दे दी गई. - विधायक हरीश धामी के भाई खजान धामी को विधानसभा रिपोर्टर के पद पर नियुक्ति दे दी गई. खजान धामी को भी शॉर्ट हैंड का ज्ञान नहीं है.
* विधायक हरीश धामी की बहू यानि कि खजान धामी की पत्नी लक्ष्मी चिराल को भी सहायक समीक्षा अधिकारी बना दिया गयाजो अस पद के लिए योग्यता नहीं रखती है। - तत्कालीन कैबिनेट मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी की पुत्री मोनिका को भी अपर सचिव पद पर तैनाती दे दी गई.
- पूर्व सीएम भुवनचंद्र खंडूरी के ओएसडी रहे जयदीप रावत की पत्नी सुमित्रा रावत को भी विधानसभा में नियुक्ति दे दी गई.
अंधेरगर्दी यह रही कि इन 158 लोगों ने नौकरी के लिए सादे पेपर पर आवेदन किया और एक भी आवेदन पत्र में आवेदन करने की तिथि तक अंकित नहीं है. सवाल यह कि क्या 158 में से सभी अभ्यर्थी आवेदन पत्र में आवेदन करने की तिथि लिखना भूल गए.
कुंजवाल के बाद विधानसभा अध्यक्ष बने प्रेमचंद अग्रवाल ने इस पूरे मामले पर जांच की बात कही थी, लेकिन कुछ दिनों बाद अग्रवाल भी खामेाश हो गए. नियुक्ति अधिकारी विधानसभा सचिव कुछ भी बोलने को तैयार नहीं. ज़ाहिर है भाजपा भी इस पूरे भ्रष्टाचार में लिप्त है तभी कुंजवाल को बचाने में लगी हुई है।
देहरादून । साल 2016 में नियमों को ताक पर रखते हुए उपनल के ज़रिए ही 158 लोगों को विधानसभा सचिवालय में तदर्थ नियुक्ति दे दी गई थी.
विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल के पुत्र की उपनल के माध्यम से हुई ऐसा पहला या अकेला मामला नहीं है जिसमें सैनिक या सैनिक आश्रित न होने के बावजूद किसी को नियुक्ति मिली हो. दरअसल, सत्ता जिसकी भी हो, रसूखदारों के लिए उपनल के माध्यम से ही चोर-रास्ता बनाया जाता रहा है. साल 2016 में नियमों को ताक पर रखते हुए उपनल के ज़रिए ही 158 लोगों को विधानसभा सचिवालय में तदर्थ नियुक्ति दे दी गई थी. शिकायतें हुई, बवाल हुआ लेकिन रिज़ल्ट आज तक भी कुछ नहीं निकला. उपनल के जरिए दस हज़ार की नौकरी करने वाले लोग आज 40 हज़ार से लेकर 75 हज़ार तक की तनख्वाह पा रहे हैं.
राज्य पूर्व सैनिक कल्याण निगम लिमिटेड यानि उपनल राज्य में राजनेताओं के लिए स्वार्थ पूर्ति का एक साधन मात्र बनकर रह गया.
2016 में चार जनवरी को विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लगने से पहले 16, 19 और 22 दिसंबर को उत्तराखंड विधानसभा में बैकडोर से ताबड़तोड़ 158 लोगों को तदर्थ नियुक्तियां दे दी गई थीं. छम्ॅै 18 के पास इस पूरे मामले के प्रमाण मौजूद हैं. इनमें नब्बे फीसदी लोग तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष से लेकर नेताओं के नाते-रिश्तेदार हैं.।
उत्तराखंड विधानसभा में उपनल के ज़रिए काम कर रहे 78 लोगों को पक्का करने के बहाने दिसंबर 2016 में 80 और लोगों को मिलाकर कुल 158 भर्तीयां कर दी गईं.।
यह भर्तियां इस तथ्य के बावजूद की गईं कि उत्तराखंड में 2003 से तदर्थ नियुक्तियों पर पूरी तरह रोक है. यदि विशेष परिस्थितियों में करनी ही पड़ें तो इसके लिए कैबिनेट के साथ ही कार्मिक विभाग की मंजूरी लेनी होगी. लेकिन 2016 में इन नियमों का पालन नहीं किया गया.
- सुप्रीम कोर्ट की गाइडलान के बावजूद इन भर्तियों के लिए किसी प्रकार का विज्ञापन प्रकाशित नहीं किया गया.
- उपनल में कुमाऊं मंडल के बेरोजगारों का हल्द्वानी में और गढ़वाल मंडल के बेरोजगारों का देहरादून में रजिस्ट्रेशन होता है. लेकिन, विधानसभा में हुई इन नियुक्तियों में सारे रजिस्ट्रेशन देहरादून कार्यालय में हुए.
- 4 जुलाई, 2016 को सचिव समिति ने निर्णय लिया था कि कोई भी गैर सैनिक आश्रित उपनल के माध्यम से भर्ती नहीं किया जाएगा.
- 25 मई 2012 को कैबिनेट ने निर्णय लिया था कि सभी प्रकार की भर्तियों में क्षैतिज और लंबवत आरक्षण लागू होगा. लेकिन, विधानसभा सचिवालय ने इस नियम को भी दरकिनार कर दिया.
- विधानसभा में रक्षक पद पर 44 भर्तियां की गई, इनके लिए शारीरिक परीक्षण ज़रूरी है, लेकिन किसी भी अभ्यर्थी का शारीरिक परीक्षण नहीं कराया गया.
- छठे वेतन आयोग के बाद 2006 में चतुथ श्रेणी पदों को डेथ कैडर मानते हुए व्यवस्था की गई कि ये सभी पद आउटसोर्स से भरे जाएंगे. उत्तराखंड विधानसभा में चतुर्थ श्रेणी के 17 पद हैं, इनके विपरीत 23 लोग सीधी भर्ती से अंदर कर लिए गए. ऐसे में पदों के विपरीत छह लोग पिछले डेढ़ साल से बिना पद के तनख्वाह ले रहे हैँ. इसमें वित्त विभाग भी सवाल के घेरे में है.