बच्चें डिप्रेशन में क्यों जाते है जानें
डिप्रेशन के लक्षण
कई तरीके हैं जिससे बच्चों में इसका आसानी से पता लगाया जा सकता है.
मनोवैज्ञानिक अरुणा ब्रूटा के मुताबिक शुरूआती लक्षण कुछ ऐसे होते हैं –
स्कूल न जाने की लगातार ज़िद करना
दोस्त न बना पाना
खाना नहीं खाना
हमेशा लो फ़ील करना
हर बात के लिए इनकार करना
पैनिक अटैक आना
डिप्रेशन का कारण
ब्रिटेन की हेल्थ बेवसाइट एनएचएस चॉइस के मुताबिक बच्चों में डिप्रेशन के कई वजह हो सकते हैं.
परिवार में कलह
स्कूल में मारपीट
शारीरिक, मानसिक या यौन शोषण
या फिर परिवार में पहले से किसी को डिप्रेशन होना
दिल्ली । मनोवैज्ञानिक डॉ अरुणा ब्रूटा के मुताबिक जब बच्चों को फ़्लू और बड़ों की बाकी बीमारियां हो सकती हैं, तो फिर डिप्रेशन क्यों नहीं हो सकता? उनके मुताबिक ये बीमारी किसी भी उम्र में किसी को भी हो सकती है.
ब्रिटेन की जानी मानी हेल्थ बेवसाइट एनएचएस च्वाइस के मुताबिक 19 साल के होने से पहले हर चार में से एक बच्चे को डिप्रेशन होता है.
इस बेवसाइट के मुताबिक बच्चों में जितनी जल्द डिप्रेशन का पता चल जाए उतना बेहतर होता है. अगर लंबा खिंचता है तो इससे उबरने मे ज्यादा वक़्त लगता है.डॉ ब्रूटा के मुताबिक अगर बच्चा बहुत ज्यादा ग़ुस्से में रहता है और हमेशा कही जाने वाली बात का उल्टा करे तो ये भी डिप्रेशन का एक प्रकार होता है. लोग अकसर उत्तेजित बच्चों को डिप्रेस्ड नहीं मानते हैं, लेकिन ऐसा नहीं होता.
डॉ ब्रूटा कहती हैं, ऐसे बच्चों में ओपोजिशनल डिसऑर्डर होता है. ये भी चाइल्डहुड डिप्रेशन का एक प्रकार होता है.
पैनिक अटैक
डॉ ब्रूटा के मुताबिक पैनिक अटैक को एंग्जाइटी अटैक भी कहते है. कई लोगों में ये डिप्रेशन का शुरूआती दौर होता है. कई बार पैनिक अटैक और डिप्रेशन साथ-साथ भी आ सकते हैं. कई बार एंग्जाइटी अटैक, सिर्फ एंग्जाइटी अटैक बन कर ही रह जाता है, डिप्रेशन तक की नौबत नहीं आती है. ऐसी स्थिति में हमेशा नकारत्मकता बीमार लोगों पर हावी रहती है.। डॉ ब्रूटा के मुताबिक एक साथ बहुत अटेंशन मिलने के बाद एकाएक अटेंशन नहीं मिलने की वजह से कई बार लोग डिप्रेशन में चले जाते है. इसलिए कम उम्र में शोहरत पाने वाले बच्चों को इसका ख़तरा ज्यादा रहता है।
बच्चे ले रहे हैं डिप्रेशन की दवा
विश्व स्वास्थ्य संगठन कहा है कि बच्चों में डिप्रेशन यानी अवसाद के इलाज के लिए एंटी डिप्रेशन दवाओं का इस्तेमाल 50 फ़ीसदी बढ़ गया है। संगठन का कहना है कि यह चलन ख़तरनाक है क्योंकि ये दवाएं बच्चों को ध्यान में रखकर नहीं बनाई गई थीं.,लेकिन जब डिप्रेशन का फ़ेज चरम पर होता है तो काउंसिलिंग से बात नहीं बनती. उस समय इंजेक्शन और दवाइंयों से पहले इलाज कर डिप्रेशन को कंट्रोल में लाया जाता है फिर बाद में थेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है.। कई मामलो में मनोचिकित्सक और मनोवैज्ञानिक दोनों का एक साथ सहारा लेने की जरूरत पड़ती है। (स्त्रोत बीबीसी)