आग पर नियंत्रण के लिए मास्टर प्लान जरूरी

ख़बर शेयर करें

वन विभाग वर्षो से वृक्षारोण कर रही है जितना वन क्षेत्र नहीं होगा उससे कई अधिक का वृक्षारोपण कर दिया होगा और अरबों रूपये खर्च दिखाकर छोटे कर्मचारी से बड़े अधिकारी मालामाल हो गये अगर सरकार इसकी सीबीआई जांच कराए तो बड़ी से बड़ी मछली जाल में फंस जायेगी।चीड़ के जंगल नष्ट करके इसकी जगह अन्य पहाड़ अनुकूल पत्तीदार वृक्ष लगाकर ही स्थाई विकल्प मिल सकता है, इस वर्ष इन्द्र देव की कृपा से पहाड़ के जंगल आग से बच गए

बागेश्वर /अल्मोड़ा । पहाड़ों में आजकल चीड़ के जंगलों में भयंकर आग लगी है। संरक्षित वन क्षेत्रों, राष्ट्रीय पार्कों और वन्यजीव अभ्यारण्य भी आग की चपेट में हैं,एक महीने में आग लगने की एक हज़ार से ज़््यादा घटनाएं हो चुकी हैं. । पूरा पहाड़ भयंकर दम घोटू धुंवे की चपेट में है, दमा श्वांस के मरीज परेशान हैं, हरे भरी वादियों में अब धुआं ही धुआ है पहाड़ का पर्यावरण खतरे में है इसमें सरका गंभीर नहीं है। वर्षे से जंगल जलते आ रहे है इसके लिए कोई ठोस कार्ययोजना नहीं बनाई गई केवल भारी भरकम बजट विभाग को दिया जाता है जिसे वे नोंच-नोच कर डकार जाते हैं । आग नियंत्रण के लिए मास्टर प्लान बनना बहुत ही जरूरी है। भीषण आग को बुझाने के लिए जैसी तैयारी होनी चाहिए, वैसी तैयारी नहीं करते हैं.
पहाड़ों के हरे भरे जंगलों में आग लगने का सबसे बड़ा कारण है चीड़ का पेड़ है,.उत्तराखंड के जंगलों में करीब 60 फीसदी हिस्से में चीड़ के पेड़ हैं।पर्यटन व्यवसाय चौपट है , वन संपदा नष्ट हो गई है, लोगों को धुएं से घुटन और बेचौनी हो रही है, इस वक्त पहाडों का जीवन दम घोटू बना हुआ है। चारों तरफ धुंध ही धुध है । पहाड़ों के लिए ये पेड़ किसी अभिशाप से कम नहीं। चीड़ का पेड़ पिरुल बेहद जल्दी आग पकड़ता है, चीड़ के जंगलों में फैली यही सूखी पिरूल इन दिनों प्रचंड रूप से धधक रही है। पहले से संकट में घिरे जंगली जानवरों का अस्तित्व खतरे में आ गया है। जंगली वनस्पति, बेशकीमती जड़ी-बूटी स्वाहा हो चुकी है…पानी के स्रोत प्रभावित हो गये हैं।अब यही पेड़ जी का जंजाल बन गया है।चीड़ जमीन से बड़ी तादात में पानी खींचता है, इसीलिए चीड़ के जंगल सूखे होते हैं और पानी के प्राकृतिक स्रोत चीड़ के जंगलों में पनप ही नहीं पाते, चीड़ अपने आसपास अन्य प्रजाति के पेड़ नहीं उगने देता है ।
यहां वन प्रबंधन भी बहुत बुरा है. चीड़ जैसे पेड़ों की प्रजातियां मध्य हिमालय में होती हैं, यह निचले इलाक़ों में नहीं होनी चाहिए, क्योंकि ये तेज़ी से आग पकड़ती हैं.गर्मी ज़्यादा पड़ने से आग पकड़ती है और हवा चलने से यह आग फैलती है.अगर चीड की जगह अन्य छायादार पेड़,पत्तीदार ,देवदार और बांज के जंगल अपेक्षाकृत घने होते हैं। इन पेड़ों में पानी को जड़ों में जमाए रखने की असाधारण क्षमता होती है। देवदार और बांज के जंगलों में पानी के असीमित स्रोत इसलिए भी पनपते हैं क्योंकि चौड़ी पत्तियां होने की वजह से धूप जमीन तक नहीं आ पाती और जमीन का तापमान हर वक्त कम बना रहता है। देवदार और बांज के जंगल नम होने की वजह से यहां आग लगने की खबरें नगण्य हैं। वन विभाग वर्षो से वृक्षारोण कर रही है जितना वन क्षेत्र नहीं होगा उससे कई अधिक का वृक्षारोपण कर दिया होगा और अरबों रूपये खर्च दिखाकर छोटे कर्मचारी से बड़े अधिकारी मालामाल हो गये अगर सरकार इसकी सीबीआई जांच कराए तो बड़ी से बड़ी मछली जाल में फंस जायेगी । चीड़ के जंगल नष्ट करके इसकी जगह अन्य पहाड़ अनुकूल पत्तीदार वृक्ष लगाकर ही स्थाई विकल्प मिल सकता है।

You cannot copy content of this page