प्रवासियों से पहाड़ के गांव फिर हुए गुलजार

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कोरोना की दूसरी लहर ने पहाड़ से पलायन हुए लोगों को अपनी जन्मभूमि की याद दिला दी

कहते हैं सपने अपनों से बड़े होते हैं। ..और हम हैं कि सपनों के लिए अपनों और अपनी जमीन को छोड़ने में पलभर भी नहीं सोचते। अब जब संकट सिर पर खड़ा है तो कौन पनाह दे रहा है? कोरोना संक्रमण के बीच जब काम-धंधा ठप्प है तो लोग क्यों उन पहाड़ों की तरफ लौटने को आतुर हैं, जिन्हें दुर्गम बताकर पीछे छोड़ आए थे। अब परिस्थितियां विषम हई तो बड़ी संख्या में लोग पहाड़ लौट गए हैं। आगे बढ़ने में गुरेज नहीं है, पर अपनी जड़ों को भूल जाना भी गलत है। रोज नहीं, कुछ महीने नहीं, साल में एक बार तो अपने मूल स्थान की सुध लेनी चाहिए। क्या पता लोगों की हलचल पाकर सरकार भी इन गांवों की सुध ले ले। क्या पता कुछ का प्रेम भी जाग जाए पहाड़ के प्रति। रिवर्स माइग्रेशन का मतलब पीछे हटना नहीं, अपनी जड़ों को और मजबूत बनाना भी होता है।युवा पीढ़ी रोजगार पाने के लिए शहर की तरफ पलायन कर रही है। ऐसा भी नहीं कि सरकार ग्रामीण युवाओं के रोजगार की ओर ध्यान नही देती वह इसके लिए कई योजनाएं चला रही है ग्रामीण रोजगार गारंटी, एमआरवाई, पीजीआरवाई व एसआरवाई योजना शामिल है। इसके तहत ग्रामीण युवक जो मजदूर के रूप में कार्य करते है को वर्ष में नब्बे दिन कार्य मिलता है वाकि दिन खाली बेराजगार बैठना पड़ता हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में उद्योग न होने से पलायन होना उनकी मजबूरी हैं अगर यरकार चाहे तो कृषि व कुटीर उद्योग लगाकर गांव के लोगों को रोजगार दे सकती हैं जेम जैली, टोकरी, मोमबत्ती, फलो कि जूस, अचार अनेक कुटीर उद्योग खोलकर महिलाओं व युवाओं को रोजगार दिलाया जा सकता हैं ओर युवाओं के पलायन की प्रवृति पर रोक लगाया जा सकता हैं।
शहर में भी परेशानी-गांवो में बीस पच्चीस साल तक रहने वाले युवक रोजगार के तलाश में शहर तो आ जाते हैं। लेकिन यहॉ भी उन्हें मुसीबतों का सामना करना पड़ता हैं। यहॉ की आबोहवा व रहन सहन में काफि दिक्कत होती हैं उन्हे अपनी रोजी रोटी की तलाश करने के लिए कई समझौते भी करने पड़ते हैं शहरो में भी प्रशिक्षित युवको को ही रोजगार के अवसर प्राप्त हो पाते है। जो किसी ट्रेड में प्रशिक्षित नहीं होते उन्हें हर तरफ से समझौता करना पड़ता है।ऐसी स्थिति में पढ़े लिखे युवकों को भी रिक्शा चलाकर अपनी रोजी रोटी कमाते हुए देखा हैं। अगर किसी फैक्ट्री या आफिस में रोजगार मिल भी गया तो उन्हें वेतन, मजदूरी बहुत कम मिलती हैं। स्पष्ट दृष्टिकोण ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं की असफलता का एक प्रमुख कारण उनमें स्पष्ट दृष्टिकोण का अभाव हैं प्रतियोगिता के इस दौर में कैरियर का चयन आपके पूरे जीवन को प्रभावित करने वाला होता है।सत्ता में जो भी राजनैतिक पार्टी विराजमान होती है वह यही कहती आयी है कि पहाड़ से पलायन रोकना हमारी पहली प्राथमिकता है। यह सीलसिला तब से चला आ रहा है जब से उत्तराखंड का जनम हुआ है। आज 20 साल पूरे हो चुके है इन 20 सालों में पहाड़ से 80 प्रतिशत से लोग पलायन हो चुके है स्थिति भयावह है। गांव के गांव विरान पड़ गये है। पलायन के नाम पर प्रदेश की सरकार ने पलायन आयोग गइित भी किया है लेकिन ढाक के तीन पात और ज्यादा पलायन हो गया है हां कोरोनाकाल में पलायन हुए लोगों को पहाड़ की अपनी जड़े याद हा ही गई लेकिन तब तक उनके घर उजड़ चुके है।
सिडकुल में पहाड़ के युवाओं को 70 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने का प्राविधान सत्ता में बैठे मंत्रियों ने उजाड़ दिया आज सिडकुल में 90 प्रतिशत बाहरी लोगों को रोजगार मिला हुआ है। यह सब सत्ता में बैठे मंत्रियों की कृपा है। अपने स्वार्थ के लिए ये कुछ भी कर सकते है।

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