प्रदेश में खनन नीति खनन माफियाओं की सलाह से बनायी जाती हे

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नदियों में पुल के दोनों ओर डेढ़ से लेकर एक किमी तक अधिक खनन का खेल

हल्द्वानी । उत्तराखंड में खनन को बढ़ावा देने के नाम पर खनन माफिया के लिए सरकार और शासन वह सब कुछ करने को तैयार है, भले ही इससे नदियों पर बने पुलों की सुरक्षा को खतरा पैदा होगा और हजारों हजार उत्तराखंडियों की जान भी दांव पर लग जाएगी। लोक निर्माण विभाग ने प्रदेश की नदियों से रेत, बजरी और पत्थर सहित दूसरे खनिजों के खनन के लिए पुल के एक किलोमीटर के दायरे में खनन पर प्रतिबंध के नियम को रातोरात पलट दिया ।
अब पुल के दोनों ओर तीन और पांच सौ मीटर के दायरे में खनन किया जा सकेगा। हालांकि, इससे पहले भी खनन माफिया एक किलोमीटर के दायरे की सीमा का लगातार उल्लंघन कर रहा था और खनन कराने वाले सभी विभागों के अधिकारी कुछ संरक्षक नेता और नौकरशाह उसकी मलाई खा रहे थे। अब जब सरकार ने प्रतिबंध के दायरे को 300-500 मीटर कर दिया है, तो पुल की नींव के आसपास की खुदाई भी उन मशीनों से की जाएगी, जो पूरी नींव को ही हिला डालेंगे। वैसे भी उत्तराखंड पुलों के गिरने के लिए पहले से ही बदनाम है।
उत्तराखंड के नदियों में पुलों के आसपास खनन के लिए शासन ने जो खेल किया है, वह बिना खनन माफिया की सलाह के संभव ही नहीं है। जहां हार्डरॉक है, उस पुल के डाउन स्ट्रीम और अप स्ट्रीम दोनों ओर सात-सात सौ मीटर खनन करने की छूट दे दी गई है। इस तरह लगभग डेढ़ किलोमीटर का इलाका पूरी नदी में पुल के दोनों ओर सरकार ने खनन करने वाले ठेकेदारों के हवाले कर दिया है।
वहीं, ऐसे पुल जो रिवर बेड में बने हैं, वहां पांच-पांच सौ मीटर पुल के दोनों ओर खनन का अधिकार ठेकेदारों के पास होगा। साफ है कि ठेकेदार एक किलोमीटर के दायरे में अधिक खनन कर सकेंगे। इसमें खनन कौन कराएगा, कैसे होगा, यह सब खनन नीति के ऊपर छोड़कर गोलमाल रखा गया है। वर्तमान में हालात यह हैं कि हरिद्वार जैसे तीर्थ स्थल पर खनन माफिया ने पोकलैंड और डिच मशीनों से इतने गहरे गड्ढे कर दिए हैं कि आए दिन वहां डूबने से मौत की खबरें आम हो चुकी हैं। इसे लेकर कई आंदोलन और अनशन भी हो चुके हैं। हरीश रावत की सरकार रहते हुए भारतीय जनता पार्टी का आरोप खनन माफिया से मिलीभगत कर नदियों के पाट को खोखला करने का था। भाजपा सरकार के गठन के एक साल के भीतर ही राजस्व बढ़ाने के तर्क पर खनन का दायरा इतना अधिक बढ़ा दिया गया है कि पुलों के लिए गंभीर खतरा पैदा हो जाएगा। क्योंकि जब हरिद्वार जैसे तीर्थ में आंखों के सामने माफिया मशीनों से खुदाई करता है, तो पहाड़ी इलाकों में पुल की नींव के आसपास पहुंचने में उसे कौन रोकेगा। शासनादेश में यह भी स्पष्ट नहीं है कि अगर खनन के चलते पुल गिरा, पुल की नींव कमजोर हुई, तो किन लोगों को जिम्मेदार माना जाएगा। उनके खिलाफ कैसी कार्रवाई होगी। साफ है कि सरकार और शासन खनन माफिया के इशारे पर खेल रहा है

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