न सड़क, न मेडिकल सुविधा, कोरोना के खौफ से पुश्तैनी घर छोड़ने को मजबूर हुए लोग

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मुन्नी कहती है हमारा परिवार इसी घर में पीढ़ी दर 100 साल से रहता आ रहा था अब यहां रहना मुमकीन है।कोई गंभीर बीमार है तो कैसे दुर्गम पहाड़ी रास्ते ले जायेगें सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि कोई बीमार भी है तो उसे पक्की सड़क तक ले जाने वाले कोई नहीं है। सभी पलायन हो चुके है । सड़क तक पहुंचने के लिए ही 5 किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ता है

अल्मोड़ा । उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में बिनसर से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ‘सीमा’ गांव के लोगों को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा है. इस गांव तक पहुंचने के लिए 3 किलोमीटर पुरानी टूटी-फूटी सड़क तय करना पड़ता है। इस गांव में 50 परिवार रहते थे जिसमें से आधे से अधिक परिवार पलायन हो चुके है। कोविड-19 की दूसरी लहर का प्रकोप इतना व्यापक है कि इससे पहाड़ भी अछूते नहीं रहे. महामारी की दस्तक दरवाजे-दरवाजे पर हो रही है. इसी से बचने के लिए बिनसर केसीमा गांव के परिवार अपने पुस्तैनी घरों को छोड़ने के लिए मजबूर हो गये है। दरअसल, उत्तराखंड के दूरस्थ गांवों में स्वास्थ सड़क ,पानी बिजली की कोई सुविधा न होने से वैक्सीन का इंतजाम नही होने ने लोगों में कोविड-19 के खौफ का बढ़ावा है । 33 साल के सुशील कुमार कांडपाल भरी आंखों से बताते हैं कि उन्हें 100 साल पुराना पुश्तैनी घर छोड़ना पड़ा है सुशील ने आगे बताया “जब कुछ साल पहले मेरे पिता बीमार हुए तो मैंने कुछ लोगों से मदद के लिए कहा और फिर हम पिता को कंधों पर उठाकर नीचे पक्की सड़क में लाएं जब हमने कोविड-19 की दूसरी लहर और मौतों के बढ़ते आंकड़ों के बारे में सुनना शुरू किया तो हम गांव से निकल आए. ऐसा इसलिए किया क्योंकि किसी कोरोना संक्रमित कोरोना संक्रमित मरीज को अस्पताल तक पहुंचाने में जितनी देर लगती तब तक वो दम तोड़ देता. गांव का सड़क से संपर्क नहीं जुड़ा है

सुशील की मां मुन्नी कांडपाल अपने घर से जुड़ी यादों को लेकर भावुक हो जाती हैं. वे कहती हैं- “ये मेरा पुश्तैनी घर है. हमारा परिवार इसी घर में पीढ़ी दर 100 साल से रहता आ रहा था अब यहां रहना मुमकीन है।कोई गंभीर बीमार है तो कैसे दुर्गम पहाड़ी रास्ते ले जायेगें सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि कोई बीमार भी है तो उसे पक्की सड़क तक ले जाने वाले कोई नहीं है। सभी पलायन हो चुके है केवल कुछ ही लोग बचे हुए है जो बूढ़ापे की ओर है। मुन्नी कहती हैं कि कोविड में क्या होता है. जिनमें गंभीर लक्षण दिखते हैं उन्हें तत्काल मेडिकल की जरूवत होती है। हम सड़क तक पहुंचने के लिए ही 5 किलोमीटर का रास्ता तय करते हैं. जब तक अस्पताल पहुंचेंगे, तब तक वह आधे रास्ते में ही दम तोड़ देगा ।

सीमा गांव के लोगों का आरोप है कि भाजपा ,कांग्रेस सरकारों ने वादे तो बहुत किए लेकिन पूरे नहीं किए. गांव वालों के कई बार गुहार लगाने के बाद भी इसे मुख्य सड़क से नहीं जोड़ा गया । ये लोग केवल वोट के लिए गांव में आते है फिर कभी लौटकर नहीं आते है। उनका कहना है पक्की सड़क तक पहुंचने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है । सुशील जैसा गांव के कई और लोग भी अपना रहे हैं. कोविड-19 के खौफ की वजह से गांव से पलायन की रफ्तार में तेजी आ गई है। कोई गंभीर अवस्था में होगा तो उसे कैसे मेडिकल सुविधा देगें अस्पताल पहुंचने तक काफि देर हो जायेगी । गाव में कई दशक से रहते आ रहे लोगों के लिए पुश्तैनी घरों को छोड़ना आसान नहीं है. लेकिन उन्हें अपनी और परिवार के बाकी सदस्यों की जान बचाने के लिए यही रास्ता चुना है, नहीं तो इन शांत वादियों को छोड़कर किसका मन करेगा ।

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