नववर्ष पर हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं। आशा है कि नया साल आपके जीवन में सुख, शांति एवं समृद्धि लाएगा और सामाजिक सद्भावना की हमारी महान एवं गौरवशाली परम्परा को आगे बढ़ाने वाला वर्ष होगा
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ आपके साथ ं
( राजेन्द्र सिंह गड़िया ) । इस साल हमने बहुत सोचा विचारा यहाँ तक कि अपना सर तक दीवार पे दे मारा बहुतों से पूछा बहुतों ने बताया फिर भी यह रहस्य समझ में नहीं आया कि कल और आज में अंतर क्या है ।
आखिर इस नए साल में क्या नया है वही रोज़ की मारामारी जीवन जीने की लाचारी बढ़ती हुई महँगाई सरकार की सफ़ाई राशन की लाइन ट्रैफ़िक का फाइन गृहस्थी की किचकिच आफ़िस की खिचखिच सड़कों के गढ्ढे नेताओं के फड्डे लेफ्ट की चाल बेटी की ससुराल मुर्गी या अंडा अमरीका का फंडा खून का स्वाद धर्म का उन्माद एक सा अख़बार फिर मर गए चार राष्ट्रगान का अपमान
मेरा भारत महान आज भी है वही जूता लात न हम बदले हैं न हालात सिर्फ़ सफ़ेद हो गए चार बाल
क्या इस लिए मनाएँ नया साल अभी हमारा मन इस चक्कर से नहीं था निकल पाया तभी हमारा बेटा हमारे पास आया बोला पापा क्या आप इस साल भी रोज़ आफ़िस से लेट आओगे हमारे साथ बिल्कुल टाइम नहीं बिताओगे और आ के सारा टाइम सिर्फ़ टीवी निहारोगे आफ़िस का सारा गुस्सा भी घर पर उतारोगे सच कहूँ जो साथ ले के चलते हैं दुनिया के ग़म उनकी उम्र हो जाती है ।
क्या होगा कल खुश रहो आज जियो हर पल जानते हैं मैंने ये पिटारा क्यों खोला है क्योंकि चार दिन हो गए आपने मुझे अभी तक हैप्पी न्यू इयर नहीं बोला है तब हमें ये समझ में आया कि कुछ बदलने के लिए हर पल मनाना बहुत ज़रूरी है और हर खुशी बिना अपनों के साथ के अधूरी है
सो इस लिए आप को विश करता हूँ डियर नव वर्ष की शुभकामनाएँ हैप्पी न्यू इयर। आप खुशियाँ मनाएँ नए साल में बस हँसे, मुस्कुराएँ नए साल में गीत गाते रहें, गुनगुनाते रहें हैं ये शुभ-कामनाएं नए साल में रेत, मिटटी के घर में बहुत रह लिए घर दिलों में बनायें नए साल में अब न बातें दिलों की दिलों में रहें कुछ सुने, कुछ सुनाएँ नए साल में जान देते हैं जो देश के वास्ते गीत उनके ही गायें नए साल में भूल हमको गए हैं
जो पिछले बरस हम उन्हें याद आयें नए साल में नये वर्ष की नयी सुबह नयी कलम और नयी डायरी काश ! लिखूँ कुछ ऐसा कि मुग्ध हो जाएँ दुनिया सारी खामोश जुबां के शब्द बनूं टूटे सपनो के टुकड़े चुनूं काश ! लिखूँ कुछ ऐसा कि भटके अपनो की राह बुनूं दीन-दुखी जन की पीड़ा हर दिल तक पहुँचा पाऊँ काश ! लिखूँ कुछ ऐसा कि सबके दिल को छू जाऊँ निर्बल का मान बचा पाऊँ निर्धन की जान बचा पाऊँ काश ! लिखूँ कुछ ऐसा कि हर दिल को रोशन कर जाऊँ जंग लगे दिल के दरवाजों के तालों को तोड़ सकूँ काश ! लिखूँ कुछ ऐसा कि सबके दिलों को जोड़ सकूँ झूठ का पर्दाफाश करूँ और सच का मैं आगाज़ करूँ काश ! लिखूँ कुछ ऐसा कि सबके दिलों में राज करूँ प्रकाश की सविता बन जाऊँ आस की सरिता बन आऊँ काश ! लिखूँ कुछ ऐसा कि खुद ही कविता बन जाऊँ