वन विभाग की सबसे बड़ी लापरवाही ,पिंडर घाटी के ग्लेशियरों की सैर पर जाने वालों का वन विभाग पंजीकरण नहीं कराता है

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वन विभाग के कर्मचारी हो या अधिकारी अपनी जिम्मेदारी कभी भी पूरी तरह से नहीं निभाते है चाहे अग्नि कांड हो या फिर पिंडारी ग्लेशियर जाने वाले देशी व विदेशी पर्यटकों का पंजीकरण, यह तो आपदा आ गई तब वन विभाग की असली पोल खुली, इससे पहिले वन विभाग किसी का रिकार्ड आजतक नहीं रखा है। ऐसे लापरवाह अधिकारियों पर सख्त कार्यवाही होनी चाहिए ,अगर रिकार्ड रखा होता तो सही जानकारी हासिल हो जाती ।

बागेश्वर । पिंडर घाटी के ग्लेशियरों की सैर पर जाने के लिए वन विभाग कपकोट में पंजीकरण कराता है, जिसका डाटा पर्यटन विभाग को भेजा जाता है।
उत्तराखंड में तीन दिन की भारी बारिश ने जहां ग्लेशियरों की सैर पर गए पर्यटकों की जान सांसत में डाल दी है, वहीं बागेश्वर जिला प्रशासन की भी कलई खोलकर रख दी है। रेस्क्यू कार्य चलने के बावजूद प्रशासन को ग्लेशियर में फंसे हुए लोगों की सही जानकारी नहीं है। पिंडारी, कफनी और सुंदरढूंगा जाने के लिए वन विभाग में पंजीकरण कराना जरूरी है लेकिन 73 लोग ग्लेशियर पहुंच गए और वहां फंस गए, लेकिन उनका पंजीकरण करना तो दूर प्रशासन को उनके जाने तक की भनक नहीं लगी।

पिंडर घाटी के ग्लेशियरों की सैर पर जाने के लिए वन विभाग कपकोट में पंजीकरण कराता है, जिसका डाटा पर्यटन विभाग को भेजा जाता है। पर्यटन विभाग इसी डाटा के आधार पर वर्षभर में जिले में आने वाले विदेशी और देशी सैलानियों के आंकड़े जारी करता है। वन विभाग के कपकोट कार्यालय में पंजीकरण कराने के बाद पर्यटकों से कुछ शुल्क लेकर पर्ची काटी जाती है, जिसकी जांच ग्लेशियर रेंज में कराने के बाद ही पर्यटक ग्लेशियरों की सैर कर सकते हैं। पंजीकरण के आधार पर प्रशासन को पिंडारी, कफनी, सुंदरढूंगा आदि स्थानों पर गए पर्यटकों की सटीक जानकारी रहती है। वहीं प्रशासन को भी पर्यटकों से राजस्व प्राप्त होता है।

पर्यटकों की जानकारी रखने के लिए अपनाई जाने वाली उक्त प्रक्रिया बेहद सरल है, बावजूद इसके संबंधित विभाग इसके लिए गंभीर नजर नहीं रहा, जिसका परिणाम अब दिखाई दे रहा है। तीन दिन से प्रशासनिक अमला सुंदरढूंगा में हताहत लोगों को रेस्क्यू करना तो दूर उनकी लोकेशन तक नहीं तलाश सका है। कफनी ग्लेशियर में भी फंसे पर्यटकों को रेस्क्यू नहीं किया जा सका है। द्वाली में 34 लोगों के फंसने की बात की जा रही थी, लेकिन रेस्क्यू के समय संख्या 42 पहुंच गई।

अगर वन विभाग अपने पास आने जाने वाले पर्यटकों का पंजीकरण किया होता तो ऐसी नौबत नहीं आती ।

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