21 सालों में सिर्फ एक बार जीत पाई कांग्रेस, क्या इस उप चुनाव में भी कायम रहेगा बीजेपी का दबदबा?
उत्तराखंड की बागेश्वर विधानसभा सीट पर 5 सितंबर को उपचुनाव होगा। उत्तराखंड राज्य का गठन होने के बाद पहली बार यहां 2002 में चुनाव हुआ था। पहले चुनाव में कांग्रेस के रामप्रसाद टम्टा ने जीत हासिल की थी। उसके बाद से कांग्रेस इस विधान सभा से जीत के लिए तरस गई ।
बागेश्वर । ( आर0 एस0 गढ़िया ) । उत्तराखंड में बागेश्वर विधानसभा सीट पर उपचुनाव के लिए आज नामांकन होने जा रहा है। पूर्व कैबिनेट मंत्री चंदन रामदास का इस साल अप्रैल में निधन हो गया था। उसके बाद से यह सीट खाली चल रही थी। बीजेपी ने रामदास की पत्नी पार्वती दास को चुनाव मैदान में उतारा है। बीजेपी जहां सहानुभूति कार्ड खेलकर चुनाव जीतने का दावा कर रही है, वही कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी से हाल ही में आए बसंत कुमार को चुनाव मैदान में उतारा है। उपचुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के प्रत्याशियों के बीच जोरदार टक्कर है।
बागेश्वर को कुमाऊं मंडल की काशी के नाम से भी जाना जाता है। यहां बागेश्वर नाथ का प्राचीन मंदिर है जिसे लोग बागनाथ के नाम से भी जानते हैं। मंदिर के नाम से ही जिले का नाम बागेश्वर पड़ा है। बागेश्वर निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है। वर्ष 2002 में यहां पहली बार हुए चुनाव हुए। तब कांग्रेस के रामप्रसाद टम्टा ने इस सीट से जीत हासिल की थी। दूसरे विधानसभा चुनाव में भाजपा के चंदन रामदास खासे अंतर से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। 2012, 2017 और 2022 के चुनाव में भी चंदन रामदास ने इस सीट पर जीत हासिल की थी।
चंदन रामदास के व्यवहार व कार्यप्रणाली से बागेश्वर विधान सभा की जनता ने तीन बार जीत हासिल कर विधान सभा पहुंचकर कैबीनैट मंत्री बने ।
कांग्रेस और बीजेपी में टक्कर
लोकसभा चुनाव 2024 से पहले बागेश्वर उपचुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खुद बागेश्वर चुनाव को काफी महत्वपूर्ण मान रहे हैं. वहीं, कांग्रेस भी पूरी कोशिश में है कि किसी तरह से बागेश्वर उपचुनाव जीता जाए ताकि 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस भी पूरी तैयारी के साथ उतर सकेi
इस सीट पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच एक बार फिर से जबरदस्त टक्कर देखने को मिलेगी. 665 वर्ग किलोमीटर में फैला ये निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित सीट है, जहां 1 लाख 18 हजार 225 मतदाता हैं. बागेश्वर सीट से चंदनराम दास लगातार चार बार चुनाव जीते थे.
आपको बता दें कि वर्ष 2022 के चुनाव में एक बार फिर भाजपा प्रत्याशी चंदन रामदास ने 12,141 वोटों के बड़े अंतर से जीत हासिल की थी। चंदन रामदास को 32,211 वोट मिले थे जबकि कांग्रेस के उम्मीदवार रंजीत दास को 20,070 वोटों पर ही संतोष करना पड़ा था। आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी वसंत कुमार तीसरे नंबर पर रहे थे। अप्रैल 2023 को कैबिनेट मंत्री चंदन रामदास के निधन के बाद से सीट खाली चल रही थी। कैबिनेट मंत्री चंदन रामदास के सौम्य व्यवहार के कारण बागेश्वर की जनता उनकी काफी नजदीक रही है। यह भी कहा जाता है कि यहां 5ः प्रत्याशी का वोट होता है जबकि 95ः वोट पार्टी को पड़ते हैं। अब इनमें से कितने वोट कांग्रेस को और कितने बीजेपी को जाते हैं, यह तो मतगणना के बाद ही पता चलेगा। हालांकि लगातार पांच बार बीजेपी विधायक की जीत ने पार्टी को बागेश्वर में मजबूत किया है। अब महिला प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारने से महिलाओं के वोटों में भी और अंतर आ सकता है।
बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा दांव पर
इस उपचुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पूरे दमखम के साथ मैदान में उतरे हैं। यह उपचुनाव सत्ताधारी बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। बागेश्वर में 1 लाख 18 हजार 225 मतदाता है। इन में 60,045 पुरुष और 58, 180 महिलाएं हैं। सर्विस मतदाताओं की संख्या 2,207 है जिनमें से महिला मतदाता 57 है। उपचुनाव के लिए यहां 172 मतदान केंद्र और 188 मतदेय स्थल बनाए गए हैं। जिला निर्वाचन अधिकारी अनुराधा पाल के अनुसार, विधानसभा क्षेत्र को 28 सेक्टर में बांटा गया है। चुनाव की तैयारियां पूरी कर ली गई है और जल्द ही कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा।
सहानुभूति फैक्टर पर नजर
इस सीट पर लंबे समय से बीजेपी जीतती आ रही है। ऐसे में पार्टी उपचुनाव में भी जीत को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त है। फिर भी बीजेपी ने किसी तरह का रिस्क ना लेते हुए चंदन राम दास की पत्नी पार्वती दास पर ही भरोसा जताया है। चुनाव के लिए बीजेपी की तरफ से चंदन रामदास के परिजनों को मैदान में उतारने की तैयारी पहले से ही की गई थी। उपचुनाव में सहानुभूति फैक्टर को देखते हुए इस मुद्दे पर मंथन चल रहा था।