उत्तराखंड में फंसे पंचायत चुनाव

देहरादून। हरिद्वार को छोड़ शेष 12 जिलों में चल रही त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की प्रक्रिया में मतदाता सूचियों में दोहराव और पंचायती राज अधिनियम के प्रविधानों ने उलझन बढ़ा दी है। यही नहीं, वर्षाकाल में पंचायत चुनाव के साथ ही आपदा से जूझने की चुनौती भी तंत्र के सामने हैं, हाईकोर्ट के आदेश के क्रम में राज्य निर्वाचन आयोग क्या कदम उठाता है, इसे लेकर रविवार को तस्वीर साफ हो जाएगी। लेकिन, जैसी परिस्थितियां हैं, उसने पंचायत चुनाव में किस्मत आजमा रहे प्रत्याशियों के साथ ही मतदाताओं के बीच ऊहापोह भी बढ़ा दिया है।
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की प्रक्रिया शुरुआत से तमाम झंझावत झेलती आ रही है। पहले समय पर चुनाव न होने के कारण पंचायतों को प्रशासकों के हवाले किया गया। इस अवधि में भी चुनाव की स्थिति नहीं बन पाई तो पंचायती राज अधिनियम में प्रशासक कार्यकाल एक वर्ष करने को अध्यादेश लाने की तैयारी की गई, लेकिन यह परवान नहीं चढ़ पाई। परिणामस्वरूप त्रिस्तरीय पंचायतें लगभग दो सप्ताह तक नेतृत्व विहीन रहीं। राज्य गठन के बाद यह पहला अवसर था, जब पंचायतों ने संवैधानिक संकट झेला
।अब पंचायतों की मतदाता सूचियों में दोहराव ने पेच फंसा दिया है। कई जिलों में ऐसे ऐसे व्यक्तियों ने भी नामांकन कराने की बात सामने आई है, जिनके नाम शहरी निकायों की मतदाता सूची में भी दर्ज हैं।