जाड़े के दिनों में इन गांवों में नहीं होती कोई शादी, बर्फ पिघलाकर पानी पीने को मजबूर लोग
उत्तराखंड के खरतोली, गुंजी, दर, कूटी, नाभी, मिलम और गर्बयांग ऐसे इलाके हैं, जहां इन दिनों पानी पूरी तरह जम जाता है. यहां तक कि प्राकृतिक जलस्रोत भी पूरी तरह जमे रहते हैं. हालात इस कदर खराब हो जाते हैं कि ग्रामीणों को बर्फ गलाकर पानी मिल पाता है. ऐसे में इन गांवों में 4 महीनों तक शादी, जनेऊ और नामकरण के साथ ही अन्य कोई भी सामूहिक आयोजन नहीं होते हैं.
पिथौरागढ़. पहाड़ों में सर्दी के सितम से निपटना इतना आसान नहीं है. शून्य डिग्री से भी नीचे पहुंचा पारा जनजीवन को खासा प्रभावित कर देता है. हालात यहां तक जा पहुंचते हैं कि दिसंबर से लेकर मार्च तक के 4 महीनों में खासकर ऊंचाई वाले इलाकों में सबकुछ जम सा जाता है. यही वजह है कि इन इलाकों में सर्दी के चार महीनों में कोई भी आयोजन नहीं होता है.
खरतोली, गुंजी, दर, कूटी, नाभी, मिलम और गर्बयांग ऐसे इलाके हैं, जहां इन दिनों पानी पूरी तरह जम जाता है. यहां तक कि प्राकृतिक जलस्रोत भी पूरी तरह जमे रहते हैं. हालात इस कदर खराब हो जाते हैं कि ग्रामीणों को बर्फ गलाकर पानी मिल पाता है.
ऐसे में इन गांवों में 4 महीनों तक शादी, जनेऊ और नामकरण के साथ ही अन्य कोई भी सामूहिक आयोजन नहीं होते हैं. सर्दी के मौसम में इन गांवों से पानी कोसों दूर रहता है. खरतोली गांव के हरीश सिंह ने बताया कि जाड़ों में उनके इलाके के प्राकृतिक जलस्रोत पूरी तरह जम जाते हैं. ऐसे में गांव में कोई बड़ा आयोजन इस सीजन में करना पड़ा तो 13 किलोमीटर का पैदल सफर तक कर पसपाड़ नामक स्थान से पानी लाना पड़ता है.
वहीं गुंजी के रहने वाले रमेश गुंजयाल बताते हैं कि सर्दियों के सीजन में साधन सम्पन्न लोग निचले इलाकों को माइग्रेट हो जाते हैं, लेकिन जिनके पास साधन नही हुए उन्हें न चाहते हुए भी ऊंचाई वाले इलाकों में ही रहना पड़ता है. ऐसे में जाड़ों के 4 महीने उनके लिए सबसे कठिन होते हैं. ठंड इस कदर बड़ जाती है कि सबकुछ जम सा जाता है. जब बर्फ गला कर पानी की जरूरत पूरी की जा रही हो तो कोई भी बड़ा आयोजन कैसे संभव हो सकता है?