उत्तराखंड में चुनावी साल में जल्द ही उपनल कर्मियों का मानदेय बढ़ने की तैयारी
चुनावी साल में लगातार उत्तराखंड सरकार उपनल कर्मियों का मानदेय बढ़ने के लिए तैयारी कर रही है। अभी विधान सभा चुनाव नजदीक है सरकार हर किसी को खुश करने में लगी हुई है । पूरे सालभर तो काम एक ढैलाभर किया नहीं । युवाओं से लेकर सीनियर सीटीजन तक को कुछ न कुछ उपहार देने के लिए बैठी हुई है बाद में उन्हीं के तिलों का तेल निकालना है। उपनल कर्मियों की समस्याओं के समाधान के लिए गठित मंत्रिमंडलीय उपसमिति की बैठक में उनका मानदेय बढ़ाने का निर्णय लिया गया। उपनल कर्मियों का न्यूनतम मानदेय व अधिकतम तय कर रही है।
देहरादून। चुनावी साल में जल्द ही उपनल कर्मियों का मानदेय बढ़ सकता है। उपनल कर्मियों की समस्याओं के समाधान के लिए गठित मंत्रिमंडलीय उपसमिति की बैठक में उनका मानदेय बढ़ाने का निर्णय लिया गया।
सूत्रों की मानें तो उपनल कर्मियों का न्यूनतम मानदेय 15 हजार और अधिकतम 40 हजार तक किया जा सकता है। उप समिति के अध्यक्ष व कैबिनेट मंत्री डा हरक सिंह रावत ने कहा कि किसी भी उपनल कर्मी को हटाया नहीं जाएगा। जो विभिन्न विभागों से हटाए गए हैं, यदि वे अनुशासनहीनता व कदाचार के दोषी नहीं हैं, तो उन्हें उन्हीं विभागों में दोबारा तैनाती दी जाएगी। उन्हें सम्मानजनक मानदेय दिया जाएगा। उप समिति की सिफारिशें कैबिनेट के सम्मुख रखी जाएंगी।
प्रदेश सरकार ने राज्य गठन के बाद उत्तराखंड पूर्व सैनिक कल्याण निगम लिमिटेड (उपनल) को आउटसोर्सिंग एजेंसी बनाया था। पूर्व सैनिकों, उनके आश्रितों व अन्य युवाओं को उनकी योग्यता के हिसाब से विभिन्न विभागों में उपनल के जरिये नियुक्त किया जाता है। इस समय प्रदेश में 20 हजार से अधिक उपनल कर्मचारी विभिन्न विभागों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। ये लंबे समय से सरकारी सेवाओं में सेवायोजित करने और मानदेय वृद्धि की मांग कर रहे हैं। इसे लेकर ये काफी समय तक आंदोलनरत भी रहे। इनकी समस्याओं के समाधान के लिए धामी सरकार ने मंत्रिमंडलीय उपसमिति का गठन किया। शुक्रवार को विधानसभा में उपनल कर्मचारियों की समस्याओं के समाधान के लिए कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत की अध्यक्षता में गठित उपसमिति की बैठक हुई। बैठक में उपनल कर्मचारियों के प्रतिनिधमंडल को बुलाकर पहले उनका पक्ष सुना गया। इसके बाद उप समिति ने उपनल कर्मियों के संबंध में विभिन्न बिंदुओं पर विचार-विमर्श किया।
अगर निर्णय इस चुनावी साल में तो लेना ही है ताकि वोट बैंक का ग्राफ कम न हो