पहाड़ की पीड़ाः 23 साल बाद भी गांवों तक नहीं पहुंची सड़क

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बागेश्वर ( महेश शाही ) । 23 साल बाद भी दूर दराज के गांव तो दूर शहरी क्षेत्रों के कई गांवों तक सड़क नहीं पहुंची है। लंबे इंतजार और जनप्रतिनिधियों के बड़े-बड़े दावों और आश्वासन के बाद भी सड़क जब गांव तक नहीं पहुंची तो लोग शहर आ गए।
उत्तरप्रदेश से अलग होकर नया राज्य बनने के बाद उत्तराखंड की सत्ता में सियासी रूप से कुमाऊं प्रभावशाली तो रहा है लेकिन इसका असर मंडल के विकास में नजर नहीं आया है। राज्य गठन के 23 साल बाद भी लोक निर्माण विभाग के आंकड़ों के मुताबिक कुमाऊं के 921 गांव सड़क से नहीं जुड़ पाए हैं। कई गांव के लिए सड़क मंजूर है, लेकिन वर्षों से वे फाइलों में ही बन और बिगड़ रही है।
मंडल के दूरस्थ गांवों के लोगों के लिए सड़क नहीं होना अभिशाप की तरह है। लोग सड़क के लिए गुहार लगाते-लगाते थक गए हैं, जो सामर्थ्यवान थे वे गांव छोड़ गए। लाचार ग्रामीण आज भी मुसीबत झेलने के लिए विवश हैं। राज्य गठन के बाद लोगों को उम्मीद थी कि उनके घर या आसपास तक सड़क पहुंच जाएगी लेकिन यह आस अब तक पूरी नहीं हुई है।
सड़क के अभाव में गंभीर रूप से बीमार परिजनों और प्रसव पीड़िता को अस्पताल ले जाने के लिए डोली ही एकमात्र सहारा है। खाली होते गांवों में अब डोली उठाने के लिए लोग नहीं मिल रहे हैं। ऐसे में महिलाएं बारी-बारी से डोली को कंधा दे रही हैं। कई बार डोली या चारपाई पर कई किलोमीटर पैदल सड़क तक फिर वाहन से अस्पताल तक समय पर नहीं पहुंच पाने पर मरीज या प्रसव पीड़िता की जान तक चली जाती है। सड़क नहीं होने की वजह से गरीब ग्रामीणों को महंगाई की मार भी झेलनी पड़ती है। गैस सिलिंडर से लेकर अन्य सामग्री तक ढुलाई की वजह से कीमत से दोगुना रुपये देकर खरीदनी पड़ती है।
चंपावत
जिले के 61 गांवों के लोग सड़क के लिए तरसे। 11 हजार से अधिक की आबादी रोजमर्रा झेलती है सड़क न होने से परेशानी।
अल्मोड़ा
2184 गांव वाले अल्मोड़ा जिले में 405 गांवों तक नहीं पहुंची सडक।04 से 10 किमी पैदल चलने के लिए मजबूर 3246 की आबादी।
89 गांव सर्वाधिक साल्ट ब्लॉक के हैं जो नहीं जुड़ पाए सड़क से। इनमें खदेरागांव, रगडगाड़, बरहलिया, बांगीधार, मयालगांव शामिल।
159 गांवों को है सड़क का इंतजार जिले के 947 गांवों में से दाबू, हड़ाप, कुंवारी, बोरबलड़ा, डांगती, हवेलियां भैड़ी समेत 159 गांव सड़क सुविधा से वंचित ।
गरुड़ के दाबू, हड़ाप और कपकोट के कुंवारी, बोरबलड़ा जाने के लिए लोगों को आठ से दस किमी पैदल चलना पड़ता है।
ब्लॉकवार सड़क विहीन गांव
ब्लॉक गांव
बागेश्वर 59
कपकोट 46
गरुड़ 44
पिथौरागढ़
698 गांवों वाले पिथौरागढ़ जिले में 200 से अधिक गांव और तोक सड़क सुविधा से वंचित।
सड़क न होने से जिले में 58 गांव जनशून्य, इनमें बेड़ीनाग के 24 और गंगोलीहाट के 13 गांव भी शामिल।
नैनीताल जिले में आठ ब्लॉकों में 198 गांव सड़क विहीन, इनमें ओखलकांडा ब्लॉक में सबसे ज्यादा 197 गांव तो हल्द्वानी का एक गांव सड़क से वंचित
250 की आबादी वाले सभी गांव सड़कों तक जुड़ गए’
राज्य बनने के बाद से सड़कों के काम में तेजी आई है। 1998 से पहले राष्ट्रीय हाइवे नहीं थे लेकिन राज्य बनने के बाद सड़कों का जाल तेजी से फैला। 1998 में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के दूसरे फेज में 250 की आबादी वाले सभी गांव आज सड़कों से जुड़ चुके हैं। जो बचे हुए हैं वह तोक हैं जिनमें जनसंख्या काफी कम है। हालांकि पलायन आयोग ने किस तरह रिपोर्ट तैयार की है यह देखने वाली बात है। अधिकतर योजनाएं कागज पर बनती हैं लेकिन धरातल पर क्या हो रहा है यह देखना होगा।- बीसी बिनवाल, सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता, हल्द्वानी।
सड़क के इंतजार में गांव हो गए खाली
राज्य गठन के बाद भी उम्मीद के मुताबिक विकास नहीं हुआ। अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं और रोजगार के लिए लोगों ने शहरों की ओर पलायन किया तो गांव के गांव खाली होते चले गए, लेकिन विडंबना यह है कि जब गांव खाली हो गए तब वहां सड़कें पहुंचने लगीं। जिस सड़क को गांव को शहर से जोड़ने का माध्यम बनना चाहिए था, वह सड़क गांव के प्राकृतिक संसाधनों के अवैज्ञानिक दोहन का साधन बन गई।

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