गांवों में बंदरों व लंगूरों के आंतक से ग्रामीण परेशान
वन विभाग वनीकरण क्षेत्र में पौधरोपण करके करोड़ों रूपये खपा रही है उस वनीकरण क्षेत्र का निरीक्षण किया जाय तो एक भी पौध जिंदा नहीं ,अगर उनके स्थान पर फलदार पौध लगाये जाय बड़े होने तक उनकी सुरक्षा की जाय तो आने वाले वक्त में बंदारों का आंतक कम हो जायेगा ं उन्हें जंगल में ही कुछ खाने के लिए मिल जायेगा । वन विभाग के अधिकारीयों की सोच अलग है वे ऐसा नहीं चाहते है।
कपकोट(बागेश्वर) । पहाड़ के गांवों में पहिले लोग कभी भी बाजार से सब्जी व फल नहीं खरीदते थे लेकिन आज खेत विरान पड़े है बंदरों व व लंगूरों ने सबकुछ उजाड़ दिया है। अब तो घरों के भीतर से खाद्य सामग्री तक उठा ले जा रहे हैं। इस सबके चलते गांवों में घरों के पास भी सब्जी आदि बोने से लोग कतरा रहे हैं तो घरों के आंगन में अनाज सुखाने आदि की समस्या भी उत्पन्न हो गई है।
यही नहीं, बड़ी संख्या में लोग अब तक बंदरों व लंगूरों के हमलों में घायल तक हो चुके हैं। न सिर्फ पहाड़, बल्कि मैदानी व घाटी वाले क्षेत्रों में भी यह समस्या दिन प्रतिदिन गहराती जा रही है। सभी जगह इन उत्पाती जानवरों ने नाक में दम किया हुआ है। इनसे पिंड छुड़ाने के सारे उपाय बेअसर साबित होते दिख रहे हैं।
इस बीच कारणों की पड़ताल हुई तो बात सामने आई कि जंगलों में कहीं न कहीं फूड चेन कुछ गड़बड़ाई है। इसके अलावा शहरों व गांवों के इर्द-गिर्द कूड़े-कचरे के ढेर में आसान भोजन की तलाश में ये वहां आ रहे हैं। विभिन्न स्थानों पर और सड़कों के किनारे इन्हें भोजन देने की परिपाटी भी भारी पड़ रही है। परिणामस्वरूप ये जंगलों में भोजन तलाशने की बजाए शहरों व गांवों की तरफ आ रहे हैं।
जानकारों का कहना है कि बंदरों और लंगूरों की समस्या के निदान के लिए इनकी संख्या पर नियंत्रण को कदम उठाने होंगे। साथ ही सबसे अहम ये कि जंगलों में इनके लिए भोजन की व्यवस्था के लिए वृहद पैमाने पर बीजू सेब, नाशपाती, अखरोट, खुबानी, आडू, पुलम, आम, शहतूत, मेहल आदि फलदार प्रजातियों के पौधों का रोपण किया जाना चाहिए। अब इस दिशा में पहल भी शुरू हो गई है।