कोई रोजगार तो कोई नौकरी के लिए बस गया दूसरे प्रदेश, भाई को राखी भेजते वक्त बहनों की आंखें हो जाती है नम

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आज के वक्त में, जब लोग रोज़गार या पढ़ाई के लिए अपने घरों से दूर रहते हैं, तो राखी का धागा भेजना एक सामान्य बात हो गई है. यह एक ऐसी परंपरा है जो दूरियों को मिटाकर दिलों को जोड़ती है लेकिन जहां आज जब बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधने के लिए सामने मौजूद नहीं होतीं, तो वे राखी को डाक या कूरियर के माध्यम से भेजती हैं.

हल्द्वानी । भाई-बहन के अटूट प्रेम और विश्वास के प्रतीक रक्षाबंधन के त्यौहार का बहनें सालभर इंतजार करती हैं. यह सिर्फ एक धागे का बंधन नहीं होता है बल्कि स्नेह और समर्पण की डोरी से बंधा रिश्ता होता है. बचपन से भाइयों की कलाई पर  राखियाँ सजाने वाली बहनें शादी होने के बाद मायके से दूर हो जाती हैं. घर बदलने के साथ उसके रिश्ते और त्योहार भी बदल जाते हैं. 9 अगस्त को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाएगा. उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के पोस्ट ऑफिस में भीड़भाड़ देखने के लिए मिल रही है. कहीं बहनें प्रदेश में जा बसे भाइयों को राखी भेज रहीं हैं तो कई भाई अपनी बहनों के प्यार के धागों को रिसीव करने के लिए आ रहें हैं. कहीं चेहरे पर मुस्कुराहट तो कहीं अपने भाई को याद करती बहनों की आंखें नम देखी गईं.

शादी के बाद बदल जाता है रक्षाबंधन

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून की रहने वाली सुमित्रा बिष्ट ने बताया कि वह मूल रूप से उत्तराखंड से हैं, लेकिन उनका परिवार दिल्ली में रहता था और उनकी शादी देहरादून में हुई थी. उनका मायके ज्यादा जाना नहीं हो पता है, इसलिए त्यौहार भी ऐसे ही मनाने पड़ते हैं. सुमित्रा बताती है कि वह साल 1989 से अपने भाई को डाक सेवा के माध्यम से राखी भेज रहीं हैं. उन्होंने बताया कि शादी के बाद रक्षाबंधन के त्यौहार को मनाने का तरीका भी बदल जाता है, क्योंकि हम बचपन की तरह ना ही अपने भाई की कलाई पर राखी बांध पाए हैं और ना ही अपने हाथों से उन्हें मिठाइयां खिला पाते हैं.

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