हरक सिंह रावत का पत्ता साफ,न घर के न घाट के

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चौबट्टाखाल से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में केसर सिंह की घोषणा होते ही पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत तीन दशक बाद चुनावी मैदान से बाहर हो गए। उम्मीद जताई जा रही थी कि शायद कांग्रेस उन्हें चौबट्टाखाल से भाजपा प्रत्याशी सतपाल महाराज के सामने चुनावी मैदान में उतार दे। हालांकि ऐसा नहीं हुआ। अब सवाल उठ रहा है कि क्या चुनावी मैदान में उतरने के लिए हरक सिंह 2024 तक इंतजार कर पाएंगे।

हरक सिंह पिछले 20 साल से लगातार किसी न किसी रूप से सत्ता से जुड़े थे। तीन बार कैबिनेट मंत्री, तो एक बार नेता प्रतिपक्ष के रूप में वो राजनीति की मुख्य धुरी में थे। अब अचानक वे चुनावी राजनीति से बाहर हो गए हैं। हरक के स्वभाव को जानने वालों की माने तो ये समय हरक के लिए बेहद ही मुश्किल भरा है। बिना सत्ता में रहे वे कैसे अपने तमाम समर्थकों को साध पाएंगे, जो सीधे तौर पर हरक से जुड़े हैं। इन समर्थकों का भविष्य भी हरक के राजनीतिक भविष्य से जुड़ा रहता है।

सरकार किसी की भी रही हो, लेकिन हरक के महकमे में सबसे अधिक एडजस्टमेंट उनके समर्थकों का ही होता था। हरक के चुनावी राजनीति से बाहर होने के बाद इन समर्थकों को भी अपनी चिंता सताने लगी है। ऐसे में सवाल यही उठ रहा है कि क्या हरक 2024 में लोकसभा चुनाव या 2027 के विधानसभा चुनाव तक चुनावी राजनीति में उतरने का इंतजार कर पाएंगे। 2024 में भी लोकसभा का टिकट हासिल करने के लिए उन्हें 2019 के लोकसभा प्रत्याशी मनीष खंडूडी से मुकाबला करना होगा। मनीष 2019 में गढ़वाल लोकसभा सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ चुके हैं।

पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह ने 1991 में पहली बार भाजपा के टिकट पर पौड़ी सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीता। 1993 में भी वो पौड़ी से चुनाव लड़े। 1996 में उन्होंने अपनी पार्टी जनता मोर्चा बनाई। इसके टिकट पर वे पौड़ी से चुनाव हार गए। इसके बाद वे बसपा में शामिल हो गए और यूपी में खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष बने। 2002, 2007 में कांग्रेस के टिकट पर लैंसडोन से विधायक बने। 2012 में कांग्रेस के टिकट पर रुद्रप्रयाग से विधायक बने। 2016 में कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए। 2017 में भाजपा के टिकट पर कोटद्वार से विधायक बने। 2022 में फिर कांग्रेस में शामिल हो गए।

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