तनाव, देर से विवाह, नशा तथा भाग-दौड़ भरी जीवनशैली से हो रही है शुक्राणुओं में कमी
जब भी किसी दंपत्ति के संतान नहीं होती है तो सबसे पहले पत्नी को दोषी ठहराया जाता है और उसे बांझ कहकर ताने दिये जाते हैं। तमाम छोटे शहरों में तो पुरुषों की जांच तक नहीं करवाते और सारा दोष महिला पर मढ़ दिया जाता है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक दशक में महिलाओं की तुलना में पुरुषों में निरूसंतानता के मामले बढ़े हैं। इसके पीछे तेजी से हो रहे शहरीकरण, मिलावट की वजह से तमाम रासायनों का शरीर में जाना, तनाव, जरूरत से ज्यादा काम, तेज लाइफस्टाइल और देर से शादी होना बड़े कारण हैं
दिल्ली के निःसंतानता विशेषज्ञ डॉक्टर अरविन्द वैद के अनुसार पुरुषों में शुक्राणु कम होने के प्रमुख कारण –
गर्मी भी है हानिकारकरू ऐसे व्यक्ति जो सीधे गरम वातावरण के सम्पर्क में रहते हैं तथा काम करते हैं- जैसे हलवाई, सुनार जहां भट्टी की गर्मी से अण्डकोष में शुक्राणु की संख्या में गिरावट देखी गई है।बचपन में दें- ध्यान बच्चों में देखें दोनों अण्डकोष थैली में हैं या नहीं अन्यथा कभी-कभी अण्डकोष एक अथवा दोनों थैली में नीचे नहीं आते हैं तथा शरीर की गर्मी से अंडकोष खराब हो जाते हैं वो बच्चे भी बड़े होकर निःसंतानता के शिकार होते हैं।जंक फूड से रहें दूर- जंक फूड, रसायन मिश्रित खाद्य पदार्थों, फास्ट फूड का ज्यादा सेवन करने से विटामिन की कमी हो जाती है जिससे शुक्राणुओं की मोटिलिटी में कमी आ जाती है।
नशे से रहें दूर– व्यसन-शराब धूम्रपान एवं अन्य कोई नशा करने पर भी स्पर्म कम हो जाते हैं। जरूरत से ज्यादा शराब पीने से स्पर्म की संख्या में कमी आ जाती है।
शादी को दें प्राथमिकता– कॅरियर के चलते शादी की उम्र बढ़ जाने से स्पर्म की संख्या व गुणवत्ता में कमी आ जाती है।
मोटापे से बचें – पुरुषों की प्रजनन क्षमता महिलाओं के मुकाबले 20 फीसदी कम होती है। ज्यादा वजन से हार्माेनल असंतुलन होता है। इससे स्पर्म बनने में दिक्कत आती है।
शुक्राणु की जांच में क्या है जरूरी
स्पर्म काउंट, स्पर्म मोटीलिटी, स्पर्म मोर्फाेलोजी, स्पर्म वाईटेलिटी, शुक्राणु की मात्रा व गतिशीलता के अलावा यह जानना भी जरूरी है कि उसकी गुणवत्ता क्या है। वीर्य की उच्च स्तरीय जांच विशेषज्ञ द्वारा, संक्रमण होने पर कल्चर की जांच, पुरुष हारमोन्स के स्तर की जांच, एंटीबॉडीज के स्तर की जांच, डीएनए फ्रेगमेंटेशन टेस्ट, केरियोटाइप जांच।
शून्य शुक्राणु – जननांगों की सोनोग्राफी एवं कलर डॉपलर की जांच, हार्माेन की जांच (टेस्टोस्टेरोन, एफएसएच), वाई-क्रोमोसोम माइक्रो डिलीशन, जरूरत होने पर अंडकोश की बॉयप्सी।
चिकित्सकीय कारण–
1-सूजन-अंडकोष की नस में सूजन होना, 2-संक्रमण-अंडकोष में किसी तरह का संक्रमण होना, 3-हार्माेन असंतुलन-पुरुष में टेस्टोस्टीरोन हार्माेन की कमी के कारण स्पर्म की संख्या में कमी आती है, 4-दवा-स्टीरॉयड, कीमोथैरेपी एंटीफंगल आदि कुछ दवाओं का अधिक उपयोग से भी स्पर्म की संख्या में कमी आती है, 5-यौन संक्रमित बीमारियां- सिर्फ एड्स ही नहीं बल्कि दर्जनों बीमारियां हैं जो असुरक्षित यौन संबंध स्थापित करने से हो जाती हैं तथा यह इनफर्टिलिटी का बड़ा कारण हैं।कुछ अन्य बीमारियां जैसे मम्स, टीबी, ब्रूसिलोसिस, गोनोरिया, टाइफाइड, इंफ्लुएंजा, स्मॉलपॉक्स आदि के कारण भी स्पर्म काउंट कम हो जाते हैं।
इन्दिरा आईवीएफ दिल्ली की आईवीएफ स्पेशलिस्ट डॉक्टर सागरिका अग्रवाल ने बताया शुक्राणु में अनेकों तरह के विकार पाए जाते हैं जिसके चलते सामान्य से अधिक शुक्राणु होने पर भी पुरुषों को संतान प्राप्ति में कठिनाई आती है। शुक्राणु की जांच एक अत्याधुनिक लेब व प्रशिक्षित विशेषज्ञ की निगरानी में कराना अत्यन्त जरूरी इसलिए है क्योंकि यह जांच ही निःसंतान दम्पति के सम्भावित इलाज को तय करती है।