वैक्सीन लगवाने के बाद बनी एंटीबॉडी ज्यादा प्रभावी, लखनऊ के केजीएमयू में हुआ शोध

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केजीएमयू में 989 स्वास्थ्यकर्मी और पांच सौ प्लाज्मा डोनर की रक्त जांच की गई। जांच से पता चला कि 88 प्रतिशत (869) में एंटीबॉडी मौजूद थी। इनमें से 73 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज लग चुकी थीं।

लखनऊ। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग द्वारा किए जा रहे शोध में पता चला है कि वैक्सीन लगने के बाद बनी एंटीबॉडी ज्यादा प्रभावी और दीर्घकालिक यानी लंबे समय तक इम्युनिटी देती है वहीं, कोरोना इंफेक्शन के बाद बनी एंटीबॉडी तीन-चार महीने के बाद खत्म हो जाती हैं। इससे यह साफ हो गया है कि कोविड-19 से निपटने के लिए हमें जो हर्ड इम्युनिटी चाहिए, वह केवल वैक्सीनेशन से ही मिल सकती है।

केजीएमयू के ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की अध्यक्ष डा. तूलिका चंद्रा ने बताया कि विभाग द्वारा 989 स्वास्थ्यकर्मी और पांच सौ प्लाज्मा डोनर की रक्त जांच की गई। इनमें डाक्टर, कर्मचारी, हेल्थ वर्कर आदि शामिल हैं। खून की जांच से पता चला कि इनमें से 88 प्रतिशत (869) में एंटीबॉडी मौजूद थी। इनमें से 73 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज लग चुकी थीं, जबकि 13 प्रतिशत को केवल एक डोज ही लगी थी। बाकी बचे लोग ऐसे थे, जिन्हें पिछले कुछ महीनों में कोरोना संक्रमण हो चुका था। इनमें से 61 हेल्थ केयर वर्कर ऐसे थे, जिनको वैक्सीन की दोनों डोज लगने के बावजूद पर्याप्त मात्रा में एंटीबॉडी नहीं बनी थी वहीं,120 लोगों में एंटीबॉडी नहीं मिली। इनमें से 14 ऐसे थे, जिनमें एक डोज लगी थी, जबकि 66 लोगों में दोनों डोज लग चुकी थी। 25 लोगों ने वैक्सीनेशन ही नहीं कराया था। इसके अलावा नौ ऐसे लोग थे, जो चार महीने के भीतर कोविड पॉजिटिव हुए थे। जबकि, 11 लोग चार महीने पहले कोविड पॉजिटिव हुए थे।
इसी प्रकार पांच सौ प्लाज्मा डोनर में भी एंटीबॉडी की जांच की गई, जो कोरोना से ठीक होने के 14 दिन से तीन महीने के बाद प्लाज्मा देने आए थे। इनमें से 50 फीसद में ही पर्याप्त एंटीबॉडी पाई गई। बाकी में या तो एंटीबॉडी खत्म हो चुकी थी या कम इम्युनिटी या हल्का संक्रमण होने के कारण एंटीबॉडी नहीं मिली। डा. चंद्रा के अनुसार कुल चार हजार लोगों पर यह अध्ययन किया जाना है। यह नतीजे प्रारंभिक हैं। अध्ययन पूरा होने पर तस्वीर साफ हो सकेगी।

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