विलुप्त होती पहाड़ी लोक संस्कृति
उत्तराखण्ड सरकार का इस धरोहर के प्रति कोई लेना देना नहीं
पहाड़ का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है पलायन । किसी भी समाज की पहचान उस समाज की लोक साहित्य एवं सांस्कृतिक धरोहर पर निर्भर करती है। इस बात का स्पष्ट प्रमाण कुमांऊनी लोक संस्कृति में प्रचीन काल से प्रचलित चली आ रही परम्परा झोड़ा नृत्य कुमांऊ के लोगों को प्रचीन काल से चली आ रही एक परम्परा है प्राचीन काल से ही झोड़ा ,चांचरी की परम्परा यहां के लोगों को एक सामाजिक परिवेश में संगठित किये हुए है। कुमांऊ की लोक संस्कृति में झोड़ा, चांचरी जनमानस को सहज व सुदृढ़ अभिव्यक्ति है । नवरात्री स्थानीय मेले,होली ,त्यौहारों शादी ब्याह में खुशी का इजहार करते हुए आन्नद लेते हैं। नवरात्री में मंदिरों में रातभर चांचरी गाते हैं ।धार्मिक चांचरी झोड़ों में देवी मां की आराधना से सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण हेतु प्रार्थना की जाती है।अब यह सब धीरे – धीरे नई पीडी़ में खत्म होने के कगार पर है जो कुछ बचा है वह अभी कुछ बुजुर्गो से है ,अधिकतर नई पीड़ी अपनी संस्कृति ,तीज त्यौहार के प्रति रूझान कम होते जा रहा है जिसका सबसे बड़ा अभिशाप पाश्चात्य संस्कृति, युवाओं में नशे की लत के साथ आधुनिकता ने नशे ने हमारी संस्कृति धूमिल होते जा रही है इसके अलावा पहाड़ों में भू-कानून खत्म होने से बाहरी प्रदेश के लोगों की बसावत हो गई है ।
बागेश्वर । हमारी संस्कृति ,रिति रिवाज त्यौहार व परमंपराएं आधुनिकता के दौर में आज की पीढ़ी में अपनी परमंपरा को भुलते जा रहे हैं जिसे पहाड़ी संस्कृति धीरे धीरे खतरे में पड़ रही है।देवभूमि में कई स्थान ऐसे है जहां पर देवी देवता वास करते थे व आज भी वे विशेष पर्वो में विराजमान होते है।
सनेती का कौतिक जो नन्दा देवी से जुड़ा है यह सत्य है कि जब नन्दा देवी हिमालय के लिए प्रस्थान कर रही थी तो उस वक्त सनेती में मां नन्दा ने विश्राम किया और नौले में स्नान करके हिमालय के लिए प्रस्थान किया । हर तीसरे वर्ष यह मेला लगता है । अब लोगों की विचारधाराएं बदल गई है। शराब के प्रचलन से वर्तमान मेले त्यौहारों में लोग कम आते है अपने पूजा अर्चना करके निकल लेते है। इसे बरकरार रखने के लिए सरकार ने उचित कदम सीघ्र उठाना चाहिए ताकि नई पीढ़ी में अपनी संस्कृति से प्रेम व लगाव बना रहे लोक संस्कृति को प्रत्येक विद्यालयों,संस्थानों समारोहो में हमारी लोक संस्कृति को पहली प्राथमिकता दिया जाय। हमारी नई पीढ़ी की पढ़ाई के साथ साथ में देवभूमि की संस्कृति से जुड़ी गाथाओं को विद्यालयों में लागू किया जाय ताकि वे अपनी संस्कृति से अलग न रह पायेगें। हिमाचंल प्रदेश की लांेकसंस्कृति व परम्परा से जुड़े हर पहलुवाओं को गम्भीरता से लेते हुए सभी विद्यालयों में अनिवार्य करा दिया हे ताकि नई पीढ़ी अपनी लोक संस्कृति व परम्परा से लगावा बना रहेगा व आत्मसात होगें।आज इस प्रदेश में राजनेता मौज कर रहे है उन्होनें प्रदेश की दिशा व दशा बर्बाद कर दी है। विनोद घड़ियाल एवं आन्दोलनकारीयों ने उन शहीदों को याद किया जिन्होने प्रथृक उत्तराखंड की लड़ाई में अपने प्रणों को न्यौछावर कर दिये दुर्भाग्य ही कहें कि उनको पूछने वाला आज कोई नहीं है जो अलग प्रदेश के खिलाफ चल रहे थे वे ही आज इस प्रदेश में राजकर मौज कररहे है व प्रदेश की दिशा व दशा बर्बाद कर दी है।