उत्तराखंड सरकार आजादी के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के परिजनों की सुध नहीं ले रहा है
देहरादून । महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और पेशावर कांड के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के वंशज वर्तमान में कोटद्वार भाबर के हल्दूखाता में यूपी सरकार की ओर से लीज पर दी गई जमीन पर रह रहे हैं। उनकी सबसे बड़ी परेशानी यह है कि उनके सभी सरोकार तो उत्तराखंड से जुड़े हैं, लेकिन उनकी लीज की जमीन यूपी क्षेत्र में पड़ती है। इस जमीन के अलावा उनके पास कुछ नहीं है, जिसे वह अपने नाम पर कराने के लिए उत्तराखंड से लेकर यूपी सरकार के चक्कर काट रहे हैं लेकिन किसी ने भी सुध नहीं ली ।
वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के निधन के बाद दोनों के परिवार कोटद्वार भाबर के हल्दूखाता में उत्तराखंड बार्डर से सटे यूपी के साहनपुर रेंज में दी गई लीज की जमीन पर रहते आ रहे हैं। दोनों बेटों के असामयिक निधन के बाद उनकी विधवा बहुओं कपोत्री देवी और विमला देवी के ऊपर परिवार की जिम्मेदारी आ गई। आज भी दोनों परिवार जैसे-तैसे अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
गढ़वाली की छोटी पुत्रवधू विमला देवी का कहना है कि उनके पति की मौत के बाद परिवार की आर्थिक हालत अच्छी नहीं है। लीज का नवीनीकरण न होने के कारण उत्तर प्रदेश वन विभाग पूर्व में उन्हें अतिक्रमणकारी घोषित करते हुए जमीन खाली करने का नोटिस थमा चुका है। उत्तराखंड के जनप्रतिनिधियों के हस्तक्षेप और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के संज्ञान में आने के बाद मामला रुक गया, लेकिन परिजन अब उक्त जमीन को अपने नाम पर कराने और उत्तराखंड में जमीन दिलाने की मांग कर रहे हैं।
गढ़वाली के पोते देशबंधु गढ़वाली का कहना है कि उत्तराखंड सरकार भी आजादी के नायक के परिजनों की सुध नहीं ले रहा है। 21 जनवरी, 1975 को अविभाजित यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवतीनंदन बहुगुणा ने कोटद्वार भाबर के हल्दूखाता गांव से सटी बिजनौर जिले के साहनपुर रेंज में दस एकड़ जमीन 90 साल की लीज पर उन्हें दी है, जिसमें गढ़वाली के बड़े बेटे स्व. आनंद गढ़वाली के परिवार में उनकी विधवा कपोत्री देवी और दो बेटे आलोक और रुपेश गढ़वाली का परिवार रहता है। उनकी दो बेटियों बसंती और सरिता का विवाह हो चुका है। छोटे बेटे स्व. कुशल चंद्र गढ़वाली के परिवार में उनकी विधवा विमला देवी के साथ चार बेटे रवींद्र, संजय, राहुल और देशबंधु गढ़वाली का परिवार रहता है। बेटी ममता का विवाह हो चुका है। लीज पर मिली जमीन पर दोनों परिवार खेती-बाड़ी और बागवानी कर जीवनयापन कर रहे हैं।
प्रथम विश्व युद्ध में दरबान सिंह और गबर सिंह जैसे वीर सैनिकों ने जहां अपनी वीरता का परिचय दिया था वहीं द्वितीय राइफल गढ़वाल के हवलदार चंद्र सिंह भंडारी (गढ़वाली) ने वर्ष 1930 में पेशावर में निहत्थे देशभक्त पठानों पर गोली चलाने से इनकार कर साम्राज्यवादी अंग्रेजों की नींव हिलाकर रख दी थीं। इसी दिन उन्होंने अंग्रेजों को संदेश दे दिया था कि वे अब अधिक दिनों तक भारत पर अपना शासन नहीं कर सकेंगे।
पेशावर कांड के नायक वीर चंद्रसिंह गढ़वाली सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल थे। पठानों पर हिंदू सैनिकों की ओर से फायर करवाकर अंग्रेज भारत में हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच फूट डालकर आजादी के आंदोलन को भटकाना चाहते थे, लेकिन वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने अंग्रेजों की इस चाल को न सिर्फ भांप लिया, बल्कि उस रणनीति को विफल कर वह इतिहास के महान नायक बन गए।