अवैध कटान के निशान मिटाने के लिए जंगल में लगाई जाती है आग !

ख़बर शेयर करें

वन क्षेत्र अंतर्गत कहीं भी वन संपदा की तस्करी होती है तो तस्करों की वन महकमें में जिम्मेदार अ िधकारी तक सांठगांठ होती है । जब वन संपदा की तस्करी हद से ज्यादा हो जाती है तो रक्षक ही भक्षक बनकर जंगलों में आग लगा देते है। वन अ िधकारियों का कहना है कि जाड़ों में कंट्रोल बर्निग किया जाता है , जो सरासर झूठ बोलते है। जब भी कोई मामला पकड़ में आता है तो फिल्ड स्टाप को बचाने में डीएफओ स्तर तक शामिल होते है। आरोप है कि अवैध कटान के निशान मिटाने का कुचक्र रचा जाता है।

हल्द्वानी । वन विभाग की ओर से गर्मियों में दावानल की घटनाओं के नियंत्रण के लिए की जा रही कंट्रोल बर्निंग सवालों के घेरे में आ गई है। पर्यावरणविदों व पर्यावरण प्रेमियों का आरोप है कि अवैध कटान के निशान मिटाने तथा गर्मियों में आग की घटनाओं की जिम्मेदारी से बचने के लिए अधिकारियों द्वारा यह कुचक्र रचा गया है। उन्होंने उच्चाधिकारियों का दल प्रभावित क्षेत्रों में भेजकर इस मामले के जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
वन क्षेत्र अंतर्गत कहीं भी वन संपदा की तस्करी होती है तो तस्करों की वन महकमें में जिम्मेदार अधिकारी तक सांठगांठ होती है । जब वन संपदा की तस्करी हद से ज्यादा हो जाती है तो रक्षक ही भक्षक बनकर जंगलों में आग लगा देते है। वन अधिकारियों का कहना है कि जाड़ों में कंट्रोल बर्निग किया जाता है , जो सरासर झूठ बोलते है। जब भी कोई मामला पकड़ में आता है तो फिल्ड स्टाप को बचाने में डीएफओ स्तर तक शामिल होते है। उन्होंने कहा कि हर साल गर्मियों में दावानल की घटनाओं की वजह से प्राकृतिक वनस्पतियों की पैदावार खत्म हो गई है। पुनर्जन्म भी बंद हो गया है। अवांछित खरपतवार फैलते जा रहे हैं। बांज के अधिकांश जंगलों में चीड़ का अतिक्रमण फैलता जा रहा है। मास, लाइकेन व फर्न जैसी दुर्लभ प्रजातियां नष्ट हो रही हैं। शीतकाल के बाद वनों में पक्षियों व जंतुओं का प्रजनन शुरू होता है, इस बेमौसमी आग से उन्हें भी अपूरणीय क्षति पहुंचती है। उन्होंने आरोप लगाया कि बेमौसमी आग की घटनाएं नैनीताल वन प्रभाग के साथ ही पिथौरागढ़, मुनस्यारी, बागेश्वर, कपकोट, भराड़ी आदि के जंगलों में भी हुई हैं।जंगलों में आग लगाने से उच्चस्थलीय वन्य जीवों का शिकार करना आसान होता है, ऐसे में वन विभाग अवैध शिकार करने वालों की सहायता कर रहा है। उन्होंने कहा कि शीतकाल व बसंत में हिमालय चमकदार व आकर्षक दिखता है मगर इस बेमौसमी आग से हिमालय के दृश्य धुंधले हो गए हैं और पर्यटन अर्थहीन हो गया है। उन्होंने कहा कि वन विभाग के जंगल में नियंत्रित फुकान का काई प्रावधान नहीं है। उन्होंने इन क्षेत्रों में उच्चाधिकारियों का दल भेजने की मांग की है।
े वन्य जीव सलाहकार बोर्ड के सदस्य पद्मश्री अनूप साह, प्रो. शेखर पाठक, पूर्व कुलपति प्रो. एसपी सिंह, चिया के अध्यक्ष प्रो. पीपी ध्यानी, राधिका सिंह, विनोद पांडे, डा. जीएस रावत, डा. कृष्ण कुमार, मुनस्यारी के पर्यावरणविद थियोफिसिस ने कुमाऊं की मुख्य वन संरक्षक को जंगलों में कंट्रोल बर्निंग की आग में जले दुर्लभ प्रजातियों के पेड़ों के फोटो व वीडियो संलग्न कर पत्र भेजा है। अभी तक वन विभाग ने कोई भी कार्यवाही नहीं की है। उन्होंने कहा कि वन विभाग के कर्मचारी अधिकारियों के मौखिक आदेश पर निजी वनों को भी जला रहे हैं। पदमपुरी के पास पिछले दिनों घने बांज के जंगल में भी आग लगा दी गई, जिससे पेड़ों व झाडिय़ों को नुकसान पहुंचा। । इस मामले की जांच कराने की आवश्यकता उच्च अधिकारी क्यों नहीं समझते है । प्रदेश की वन संपदा को आग के हवाले करने में विभाग के ही फिल्ड स्टाप का पूरा सहयोग रहता है अगा ऐसा न करें तो कटे पेड़ के खूॅंट सबूत के तौर पर दिखाई देगंें इसी को लेकर वे आग लगाकर सबूत मिटाने का काम किया जाता है। इस कार्य में विभाग के रेंजर तक की भागीदारी होने की बात कही जा रही है। अक्सर देखा जाता है कि जब भी विभाग में बड़ा घोटाला होता है तो इसमें डिविजन स्तर के अधिकारी विभाग के अधिकारी /कर्मचारी को बचाने का जुगाड़ बताते है ताकि विभाग की बदनामी न हो जो हो मिलजुलकर खाए ऐसा देखा गया सभी लोग जानते है विभाग के कारनामों को इसी कारण ग्रामीण आग बुझाने में सहयोग नहीं करते पहिले ग्रामीण पूरा सहयोग करते थे ।

You cannot copy content of this page