कपकोट विधान सभा क्षेत्र में पर्यटन की अपार संभावनाएं और चुनौतियां ,आजतक सरकार ठोस नीति नहीं बना पाई


उत्तराखंड, प्रकृति की अभूतपूर्व सुंदरता से ओत प्रोत,पर्यटन की अथाह संभावनाएं लिए हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है।कुमॉंऊ क्षेत्र की दुर्गम पहाड़ियां जहां साहसिक लोगों और पर्वतारोहियों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं, सुरम्य वादियां सबको अपनी ओर बरबस खींच ले जाती हैं।देवभूमि में दुर्गम विधान सभा क्षेत्र कपकोट के कई खूबसूरत इलाके अभी भी पर्यटन की परिधि से बाहर हैं जिनका अहसास एक स्वर्गिक अनुभूति से कम नहीं।
(योगेश सिंह गढ़िया)
बागेश्वर । कपकोट विधान सभा क्षेत्र में साहसिक पर्यटन की अपार संभावनाएं है पिंण्डारी ,कफनी के शिखर है तो वहीं दूसरी सुंदरघाटी की आर्कषित करने वाली घाटी है। कई ऐसे धार्मिक स्थल है जो अभी तक अनछुवें है। अगर इनको विकसित किया जाय तो उस क्षेत्र की आर्थिक स्थ्तिि में सुधार होने के अलावा रोजगार भी बढ़ेगा साथ ही पलायन पर भी ब्रेक लगेगा ,युवा विधायक सुरेश गढ़िया ने क्षेत्र के विकास के लिए पर्यटन की नई पहल शुरू कर दी है।
पर्यटन की यहां अपार संभावनाएं है। नन्दा राजजात यात्रा,रूपकंुड से पिंडार घाटी के गांवो ,सोरांग ,वदियाकोट को जोड़ा जाय , सोराग की नन्दाराजजात भी वदियाकोट व चमोली गढ़वाल के हिमानी ,बलाण गांवों से पैदल यात्रा लगभग 70 किलोमीटर का सफर तय करती है।
उत्तराखंड के पर्यटन को चार मुख्य श्रेणियों में बांटा जा सकता है ; धार्मिक पर्यटन, प्राकृतिक पर्यटन, साहसिक पर्यटन और सांकृतिक पर्यटन। इन्हें विकसित करने के लिए भी इसी तरह श्रेणीबद्ध कर योजनाएं बनाने की जरूरत है। यहां मैं आपका ध्यान कुछ उन सुरम्य गंतव्यों की ओर ले जाना चाहूंगा जो ज्यादातर लोगों को पता नहीं है और जिन्हें पर्यटन के मानचित्र पर मुखर करने के लिए उत्तराखंड सरकार और स्थानीय लोगों को एकजुट होकर काम करना होगा।वैसे तो उत्तराखंड के किसी भी कोने में आप जाएं तो प्रकृति के खूबसूरत नज़ारे देखने को मिलेंगे लेकिन कुछ स्थान बहुत ही रमणीक और दर्शनीय हैं जिनके बारे में अभी भी लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है।
चार धामों के लिए प्रसिद्ध उत्तराखंड में कितने ऐसे धार्मिक और पौराणिक स्थल हैं जिनका वर्णन हमारे वेदों और शास्त्रों में किया गया है। ये सारे स्थल पर्यटन की दृष्टि से भी एक अनोखा आकर्षण हैं, लेकिन उन्हें अभी भी पूरी तरह से देखा समझा नहीं गया है। उनमें पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं और उन्हें उसी तरह से विकसित करने की आवश्यकता भी है। ज्यादातर ये पौराणिक स्थल दूर दराज के इलाकों में हैं जहां जाने और रहने की सुविधाएं सीमित हैं।
यहां पर पर्यटक आना चाहता है। लेकिन उसे सुविधाएं नहीं मिल पा रही है। जिसे यह क्षेत्र पर्यटन में काफि पिछड़ गया है। रास्तेभर में हर तरह की छोटे -बड़े ढाबे -दुकान व रेस्टोरेन्ट व ठहरने के लिए सुविधापूर्ण होमस्टे बन जाय तो पर्यटकों की भीड़ जुटने लग जायेगी , ऐसे में स्थानीय युवाओं को रोजगार भी मिलने लग जायेगा और पलायन पर भी ब्रेक लगेगा ।
यह क्षेत्र देवी – देवाओं और ऋषि मुनियों की तपोभूमि है। यहां मंदिरों को धार्मिक पर्यटन में भी विकसित हो सकता है। ,यहां से हिमालय की गगनचुम्बी चौंटियां सामने दिखती है। यहां की चिल्टा ,सूपी में हरिनाम ,फेणीनाग ,सनगाड़ का नौलिंग देवता ,शिखर मूल नारायण का मंदिर ,कई ऐसे धार्मिक स्थल है जो पर्यटनमानचित्र में नहीं है। इन धार्मिक स्थलों में धर्मशालाएं , होमस्टे जनसुविधाएं होने पर प्रदेश व बाहरी , धार्मिक पर्यटकों का ताता लगना श्ुारू हो जायेगा ,क्षेत्र की आर्थिकी व रोजगार भी बढ़ जायेगा ।
सरयू का उद्गम स्थल सहस्त्रधारा को विकसित किया यह पैदल मार्ग है ।इसके साथ ही बागेश्वर जिला मुख्यालय से मोटर मार्ग 12 किलोमीटर दूरी पर गौरीमैया की गुफा है जहां आदि शंकराचार्य ठहरे थे ,यह अलौकिक गुुफा है मान्यता है कि इस गुफा से पहिले दूध टपकता था ,जब एक महात्मा यहां पर रात में ठहरे तो उन्होनें टपकते हुए दूध को जमाकर खीर बनायी ,तब से अब नीचे आने तक दूध का पानी बन जाता है । यहां पर्यटन पर कोई विकास नहीं हुआ न ही आजतक इस क्षेत्र को पर्यटन मानचित्र में रखा गया ,जबकि बागेश्वर गौरीमैया गुफा तक मोटर मार्ग है।
सरकार और स्थानीय लोगों का दायित्व
उत्तराखंड सरकार पर्यटन के क्षेत्र में काफी प्रयत्नरत है और इसका प्रभाव देखने को भी मिल रहा है, लेकिन अभी भी बहुत सी और भी संभावनाएं हैं जिससे ये एक रोजगार का कारगर साधन बन सकते हैं। इससे कहीं कम सुंदरता वाले देश पर्यटन के जरिए बहुत अधिक धनार्जन करते हैं।
स्थानीय लोगों को पर्यटन से जोड़ना बहुत जरूरी है । इसके लिए शिक्षा,व्यवसाय और नीति सभी के समागम की आवश्यकता है। उत्तराखंड पर्यटन से मूल रूप से जुड़े एक वोकेशनल ट्रेनिंग मॉड्यूल और डिप्लोमा तैयार करने की जरूरत है जिससे स्थानीय युवा अपने व्यवसाय का प्रारूप तैयार कर सकें।इसके अलावा सरकारी नीतियों में स्थानीय लोगों की भागेदारी और उनके आर्थिक विकास को ध्यान में रखने की जरूरत है जिसमें पर्यटकों को रहने और खाने की सुविधा के लिए होम स्टे या पेइंग गेस्ट के तौर पर या ठ-ठ मॉडल पर रखने की सुविधा हो जिसे सरकारी पर्यटन पोर्टल से जोड़ा जा सके। इससे सांस्कृतिक पर्यटन का स्वरूप भी दिया जा सकता है जिससे सैलानी गांवों की जीवन शैली के बारे में जानें।
प्रदेश के बाहर बहुत से लोग उत्तराखंड की नैसर्गिक सुंदरता को महसूस करना चाहते हैं लेकिन उन्हें पूरी जानकारी नहीं होती। इसलिए सबसे बड़ी जरूरत है लोगों को आवश्यकतानुसार जानकारी मुहैया कराने की और उनकी अलग अलग जरूरतों को ध्यान में रख कर सरकार द्वारा निर्धारित मूल्यों पर आवश्यकतानुसार पर्यटन पैकेजेज बनाने की, जिसमें रहने, खाने और यातायात की सम्पूर्ण सुविधा और पर्यटकों की चाहत के अनुसार जगहों को सम्मिलित किया जा सके। इसमें सभी सरकारी विभागों जैसे पर्यटन और वन विभाग ,ग्राम पंचायतों और स्थानीय व्यवसायियों आदि में सामंजस्य बिठाने की खास जरूरत है। इससे सुविधा के अलावा लोगों को सांत्वना भी रहेगी कि उन्हें हर सुविधा उचित मूल्यों पर मिलेगी और कोई भी असुविधा होने पर उनका खयाल रखा जाएगा।
इसके अलावा कुछ प्रमुख ट्रेक्स को चुनकर वहां के रास्तों और अन्य सुविधाओं, जैसे कैंपिंग और खाने की व्यवस्था आदि को विकसित करने से पर्यटन की दिशा में हम प्रगति कर सकते हैं। स्थानीय लोग भी गांवों को स्वच्छ रख कर, उनके गांव के आस पास के ट्रेकिंग रूट्स को विकसित कर और सुविधाजनक होम स्टे बनाकर इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं
हमारी इस प्राकृतिक सुंदरता को फिल्मों के माध्यम से भी लोगों तक पहुंचाया जा सकता है । पिछले कुछ दिनों से उत्तरप्रदेश सरकार इस दिशा में बहुत काम कर रही है,इसी प्रकार उत्तराखंड सरकार को फिल्म उद्योग के साथ मिलकर इस तरह की योजनाएं और नीतियां बनायें जिससे अधिक से अधिक फिल्मों और सीरियल्स की शूटिंग उत्तराखंड के इन रमणीय स्थानों में हों। उत्तराखंड की संस्कृति और प्राकृतिक सुंदरता को राज्य के बाहर अन्य प्रदेशों में भी कार्यशालाओं के द्वारा प्रदर्शित करने की भू जरूरत है जिससे पर्यटन को बढ़ावा मिल सके।
अगर क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि पर्यटन विकास के लिए कार्ययोजना बनाये तो इसमें क्षेत्र की आर्थिकी ,रोजगार व एक पहचान बनेगी ।