उत्तराखंड का सर्वाधिक आपदाग्रस्त जिला है पिथौरागढ़, मालपा आपदा में हो गई थी 260 लोगों की मौत

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कुमांऊ मंडल का सबसे आपदा प्रभावित जिला है। 1977 के बाद से अब तक जिले में कई भयावह आपदाओं का शिकार हुआ है ,सैकड़ों लोगों को अपनी अल्प आयु में जान गंवानी पड़ी है। जिसमें 1977 का तवाघाट 1998 का मालपा और 2009 में ला झेकला में आई आपदा को पहाड़ के लोग कभी नहीं भूलेंगे। सरकार ने कभी भी गंभीरता से नहीं लिया कि आखिर इस तरह की भयावह तबाही के क्या कारण हो सकते है। पिथौरागढ़ जिले के जोन फाइव में आने के बावजूद निर्माण कार्यों में विस्फोटकों का प्रयोग किया जा रहा है। सीमांत जिले की धरती कभी भूकंप तो कभी विस्फोटकों से हिलती रहती है। ऐसे में भविष्य में यदि बड़ा भूकंप आया तो पहले से ही कमजोर पड़े मकानों और पहाड़ियों से बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। पलायन का यह एक मुख्य कारण भी है।

पिथौरागढ़। पिथौरागढ़ कुमांऊ सबसे संवेदनशील व आपदा प्रभावित जिला है।यह जिला अंतराष्ट्रीय सीमाओं से लगा हुआ है। 1977 के बाद से अब तक जिले में आई आपदा के कारण सैकड़ों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। जिसमें 1977 का तवाघाट, 1998 का मालपा और 2009 में ला, झेकला में आई आपदा को पहाड़ के लोग कभी नहीं भूलेंगे। इन तीन आपदाओं में 347 लोगों की मौत हो गई थी। जिनमें सर्वाधिक 260 मौतें मालपा में बादल फटने के कारण हुई थीं। इस आपदा में हताहत होने वालों में बड़ी तादाद में कैलास मानसरोवर यात्री में शामिल थे।यह जोन भूर्गभीय मामले में अतिसंवेदनशील है।
आपको बता दे कि सीमांत जनपद में 1977 में तवाघाट में आई आपदा में 44 लोग, 1983 में धामीगांव में आई आपदा में 10 लोग, 1996 में रैतोली, बेलकोट में 18 लोग, 1998 में मालपा में 260 लोग 1998 में रांयाबजेता में पांच लोग, 2000 में हुड़की 19 लोग, 2002 में खेत में पांच लोग, 2007 में बरम में 15, 2009 में ला, झेकला में 43 लोग, 2013 में धारचूला/मुनस्यारी में 27 लोग, 2016 में बस्तड़ी/कुमालगौनी में 24 लोग, 2017 मदरमा में तीन लोग, 2019 में बंगापानी के टांगा गांव में आई आपदा में 11 लोगों की मौत हो गए थी। वहीं बीते साल 2020 में मुनस्यारी में बादल फटने से 3 लोगों की मौत हो गई थी और 9 लोग लापता हो गए थे।
पिथौरागढ़ जिले के जोन फाइव में आने के बावजूद निर्माण कार्यों में विस्फोटकों का प्रयोग किया जा रहा है। सीमांत जिले की धरती कभी भूकंप तो कभी विस्फोटकों से हिलती रहती है। ऐसे में भविष्य में यदि बड़ा भूकंप आया तो पहले से ही कमजोर पड़े मकानों और पहाड़ियों से बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। पिथौरागढ़-लिपुलेख सड़क में बीआरओ गुड़ौली और धारचूला के ऊपरी हिस्सों में चट्टानों को काटने के लिए भारी मात्रा में विस्फोटक और भारी भरकम मशीनों का इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे पहाड़ हिल गए हैं। लगातार जमीन के हिलने से पानी के स्रोत समाप्त हो रहे हैं। पहाड़ियों में दरारें पड़ने से पहाड़ियां कमजोर पड़ रही हैं और आपदा आने का खतरा बढ़ गया है। इसका ग्रामीण कई बार विरोध भी कर चुके हैं, लेकिन विस्फोटक का इस्तेमाल जारी है।
भूवैज्ञानिकों का कहना है कि हिमालयी क्षेत्रों में बढ़ रही आपदाओं के पीछे का मुख्य कारण अनियंत्रिक तरीके से विकास है। पहाड़ विकास की कीमत चुका रहे हैं। सड़क निर्माण का मलबा नदियों में डालने और खनन से भी नदियां रास्ता बदल रही हैं। पहाड़ियों के काटने के लिए भारी भरकम मशीनों और विस्फोटकों का प्रयोग होने से प्लेटें हिल रही हैं। इस कारण भूकंप और भूस्खलन, ग्लेशियरों के खिसकने की घटनाएं बढ़ रही हैं। बड़े पहाड़ियों में भारी विस्फोटकों का प्रयोग किया जा रहा है। पहाड़ की जड़े खोखली हो गई है। सरकार फिर भी अंधी बनी हुई है। लोगों की जानें जा रही है लोग अपने गांव छोड़कर मैदानी क्षेत्रों को पलायन कर रहे है। जिसे पहाड़ के गांव विरान होते जा रहे है। आखिर पलायन आयोग कर क्या रहा है।
इसी तरह से प्रकृति से खिलवाड़ करते रहोगें वह दिन दूर नहीं पहाड़ों में रहने वाले कोई नहीं रहेगें इसे सीघ्र ही रोका जाय ताकि पहाड़ के लोगों की जिदंगी बची रहे ।

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