गांव के लोगों ने कहा कौन है अजय टम्टा, 10 साल से शक्ल नहीं देखी
गांव के लोग अपने गांव के विकास के लिए 10 साल से अजय टम्टा से गुहार लगाते रहे लेकिन अजय टम्टा ने किसी की बात नहीं सुनी ,ग्रामीणों ने कहा आज फिर वही अजय टम्टा का नाम सुन रहे है ,जो 10 साल से ग्रामीणों को ठगते आ रहा है केवल मोदी के नाम पर जीत जाते है। सांसद कोटे से एक सड़क तक नहीं बना पाए अजय टम्टा ।
बागेश्वर / अल्मोड़ा । अल्मोड़ा संसदीय सीट पर भाजपा से दो बार के सांसद अजय टम्टा फिर से चुनावी मैदान में हैं। पांच साल पहले जीत दर्ज करने के बाद उन्होंने विकास के जरिए गांव का कायाकल्प करने के दावे कर ताकुला विकासखंड के स्वतंत्रता सेनानी सोबन सिंह जीना के पैतृक गांव सुनोली को गोद लिया। वहीं बागेश्वर में खाती गांव भी गोद लिया था आजतक देखने को नहीं आए लोग मूलभत सुविधाओं से जूझ रहे है। गांव की 1450 की आबादी को उम्मीद थी कि सांसद की नजर हमारे गांव पर पड़ने के बाद यहां विकास की बयार बहेगी और उन्हें तमाम समस्याओं से मुक्ति मिलेगी।
यह बड़ी विडम्बना है कि विकास के नाम पर इन पांच सालों में डेढ़ करोड़ रुपये भी खर्च हुए, लेकिन यह गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहा है और इसकी तस्वीर पहले की तरह है। हैरानी तब होती है जब ग्रामीण कहते हैं कि गोद लेने के बाद सांसद एक बार भी गांव नहीं पहुंचे समस्याएं सुनना-और समझना तो दूर की बात है। सांसद के गोद लिए गांव की ग्राउंड रिपोर्ट…
गांव की सड़क बदहाल, खतरे के बीच हो रहा है सफर
अल्मोड़ा-बागेश्वर हाईवे से चार किमी दूर बसे सुनोली गांव को जोड़ने वाली सड़क सिस्टम की बेरुखी की कहानी बंया कर रही है। यह पूरी सड़क गड्ढों से पटी है, इस पर खतरे के बीच सफर करना ग्रामीणों की मजबूरी बना है। बीमारों और गर्भवती महिलाओं को भी खतरे के बीच अस्पताल पहुंचाना ग्रामीणों की मजबूरी है।
सूचना की डायरी में अपना मोबाईल नं0 तक लगत लिखा दिया ताकि कोई अपनी समस्या की बात नहीं पायेगा ऐसे सांसद से जनता क्या उम्मीद कर सकती है।
गांव में फार्मासिस्ट के भरोसे संचालित हो रहा है स्वास्थ्य उपकेंद्र, लग रही है 40 किमी की दौड़
सुनोली गांव के बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं, गर्भवती महिलाएं सभी स्वास्थ्य सुविधाओं से जूझ रहे हैं। गांव में सालों पहले खोले गया स्वास्थ्य उपकेंद्र फार्मासिस्ट के भरोसे संचालित हो रहा है। यहां न तो प्रसव की सुविधा है और न ही बेहतर उपचार की। ऐसे में गर्भवती महिलाएं प्रसव के लिए तो अन्य मरीज उपचार के लिए 40 किमी दूर जिला मुख्यालय की दौड़ लगा रहे हैं।
रास्तों पर खड़ंचे तक नहीं
स्वतंत्रता सेनानी और सांसद के गोद लिए गए गांव सुनोली में आंतरिक रास्तों पर खड़ंचे तक नहीं हैं, कंक्रीट तो दूर की बात है। अधिकांश रास्ते बदहाल हैं, इन पर ग्रामीण किसी तरह आवाजाही कर रहे हैं। उम्मीद थी सांसद के गोद लेने के बाद इस गांव की तस्वीर बदलेगी, लेकिन पांच साल बाद भी ऐसा नहीं हो सका है।
रोजगार के लिए हुआ पलायन, गांव में जंगली जानवरों का आतंक
सुनोली गांव गडेरी और आलू उत्पादन के लिए प्रसिद्ध था। ग्रामीणों के अनुसार पूर्व में छह माह गडेरी तो छह माह आलू उत्पादन से उनकी आजीविका चलती थी। जंगली जानवरों के आतंक से इनकी खेती चौपट हो गई तो रोजगार के लिए पलायन शुरू हुआ। बीते पांच सालों में ही यहां से 40 परिवार पलायन कर गए। जिससे गांव में आबादी अब वीरान हो गई हैं।
जीआईसी में विज्ञान विषय नहीं हुआ संचालित, लग रही है अन्य विद्यालयों की दौड़
सांसद के गोद लिए गांव में जीआईसी संचालित है। लेकिन यहां अब तक विज्ञान विषय संचालित नहीं हो सका है। मजबूर होकर विद्यार्थियों को विज्ञान का ज्ञान लेने के लिए अन्य विद्यालयों की दौड़ लगानी पड़ रही है। जल जीवन मिशन योजना के तहत कनेक्शन तो लगा दिए गए, लेकिन नई योजना न बनने से इन नलों में पानी नहीं आ रहा है। जिससे सभी परेशान है।