भीतरघात की राजनीति से तीरथ सिंह रावत के लिए भी खतरा!

ख़बर शेयर करें

बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पद से त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाने का फैसला किया था, तो यह माना गया था कि उनका प्रर्दशन जनता के बीच ऐसी नहीं पाई गई, जिसके जरिए अगले साल के शुरुआती महीनों में होने वाले राज्य विधानसभा के चुनाव में सत्ता को बरकरार रखने की उम्मीद की जा सके। उनकी जगह उनसे अपेक्षाकृत युवा तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया ।

देहरादून । तीरथ सिंह रावत के लिए जो खतरे की घंटी है, उसमें उनके प्रर्दशन से ज्यादा भीतरघात की राजनीति को जिम्मेदार माना जा रहा हैं। राज्य के लिए मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार हैं, जिसमें कुछ दिल्ली में शीर्ष नेतृत्व के बहुत नजदीकी माने जाते हैं। वे अपनी संभावनाओं को खत्म होते नहीं देखना चाहते, इसलिए सामूहिक नेतृत्व पर ज्यादा जोर है।
आपको बता दें कि मार्च महीने में जब बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पद से त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाने का फैसला किया था, तो यह माना गया था कि उनका प्रर्दशन जनता के बीच ऐसी नहीं पाई गई, जिसके जरिए अगले साल के शुरुआती महीनों में होने वाले राज्य विधानसभा के चुनाव में सत्ता को बरकरार रखने की उम्मीद की जा सके। उनकी जगह उनसे अपेक्षाकृत युवा तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया । स्वाभाविक तौर पर उनसे यह अपेक्षा थी कि जिन वजहों से त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाना जरूरी हुआ, उनसे वह पार्टी की छवि को वापस लाएंगे। एक तरह से यह तय माना जा रहा था कि अगले चुनाव में वही सीएम पद के लिए पार्टी के चेहरा होंगे। चुनाव तक उन्हें मुख्यमंत्री बने बहुत समय नहीं हुआ होगा, इसलिए ‘एंटी इन्कम्बैंसी’ फैक्टर भी प्रभावी नहीं होगा। लेकिन दो महीने के दरमियान उनकी जो प्रर्दशन पार्टी के बड़े नेताओं को सटीक नहीं बैठा इसके अलावा पार्टी के भीतर ही भीतर कलह की ज्वाला भड़की हुई है । वह अभी बाहर नहीं निकला है। ऐसे में 2022 के चुनाव में सीएम का चेहरा बनाए जाने की उम्मीद खत्म होती दिख रही है। अब सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात होने लगी है और असम मॉडल की तर्ज पर नतीजे आने के बाद मुख्यमंत्री चुना जा सकता है। पार्टी के कई सीनियर नेता भी यह कहने लगे हैं कि पार्टी किसी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर चुनाव लड़ेगी या सामूहिक नेतृत्व पर, यह पहले से तय नहीं होता, यह चुनाव घोषित होने पर पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक में तय किया जाएगा। तीरथ सिंह रावत के लिए जो खतरे की घंटी है, उसमें उनकी तीन माह बीतने के बाद अच्छा प्रर्दशन के बजाय ज्यादा भीतरी राजनीति को जिम्मेदार माना जा रहा हैं। राज्य के लिए मुख्यमंत्री पद के कई दावेदार हैं, जिसमें कुछ दिल्ली में शीर्ष नेतृत्व के बहुत नजदीकी माने जाते हैं। वे अपनी संभावनाओं को खत्म होते नहीं देखना चाहते, इसलिए सामूहिक नेतृत्व पर ज्यादा जोर है।

You cannot copy content of this page