उत्तराखंड के सरकारी स्कूली की बदहाल शिक्षा व्यवस्था से परेशान है छात्र व अभिभावक

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सरकारी स्कूल के शिक्षक अपने बच्चों को नामी कान्वेन्ट स्कूलों में पढ़ा रहे है ,सरकार गरीब बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रही है,अगर इन शिक्षकों के बच्चें भी सरकारी स्कूल में पढ़ते तो पूरे लगन से साथ ये ही शिक्षक सभी बच्चों के भविष्य को संवारते ,दुर्गम क्षेत्र के स्कूलों में शिक्षक महिनों तक गायब नहीं रहते, साथ ही शिक्षा की गुणवता मंेे काफि सुधार आ जाता । सरकारी स्कूल में किसी भी शिक्षक के बच्चें नहीं पढ़ते है।

बागेश्वर /अल्मोड़ा। जिले में संचालित प्राथमिक विद्यालयों के अध्यापकों के बिना सूचना के विद्यालयों से अनुपस्थित रहने की प्रवृत्ति नहीं थम रही है। जिले में संचालित परिषदीय विद्यालयों के अध्यापकों के बिना सूचना के विद्यालयों से अनुपस्थित रहने की प्रवृत्ति नहीं थम रही है। हालांकि कई बार अधिकारियों के निरीक्षण में गायब मिलने पर उन पर कार्रवाई भी हुई। इसके बाद भी यह सिलसिला थमता नहीं दिख रहा है।

बीमार शिक्षकों को हर हाल में शिक्षा विभाग ने वीआरएस दे देना चाहिए जो छात्रों के हित में होगा बीमार शिक्षक क्या छात्रों को कक्षा में पढ़ा पायेगें नये व स्वस्थ शिक्षक आयेगें तो वे छात्रों को अच्छी शिक्षा दे पायेगें, प्राथमिक शिक्षा में तो अभी भी बदहाल है पर्वतीय क्षेत्र के विद्यालयों में 80 प्रतिशत शिक्षक स्कूल में जाते ही नहीं है ,तो उन्हें सरकार80 हजार रूपये वेतन क्यों दे रही है यह उत्तराखण्ड की बदहाली नहीं तो क्या है । शिक्षा मंत्री ने प्रदेश में शिक्षा में सुधार तो किया है,लेकिन पर्वतीय क्षेत्र में इसका कोई असर देखने को नहीं मिला है अधिकारी भी राजनैतिक कारणों से दबे रहते है वे किसी भी शिक्षक पर कार्यवाही नहीं कर सकते है कहीं तो स्कूलों में शिक्षक महिनों गायब रहते है कोई देखने वाला नहीं है। प्रदेश में शिक्षकों का अंतर्मडलीय तबादला नीति सरकार ने बना देनी चाहिए व माध्यमिक में प्रदेश स्तर किया जाने से शिक्षा में सुधार आ पायेगा ,जो नहीं जायेगें वे अपने आप घर में बैठ जायेगें । – विनोद घडियाल ,राज्य आन्दोलनकारी
जिले के 12 विकास खंड एवं नगर पालिका क्षेत्र में इस समय 2216 परिषदीय विद्यालय संचालित हैं। इसमें तकरीबन साढ़े सात हजार शिक्षक शिक्षण कार्य कर रहे हैं। नगर में तो व्यवस्था कुछ ठीक है लेकिन जो विद्यालय सुदूर क्षेत्र में हैं वहां पर प्राय: शिक्षक बिना किसी सूचना के अनुपस्थित हो जाते हैं या कहा जाए कि गायब हो जाते हैं। जब कोई अधिकारी पहुंचता है तो यह पोल खुल जाती है नहीं तो यह सिलसिला चलता रहता है। यदि विद्यालय में दो तीन अध्यापक हैं तो कहना ही क्या, सभी तालमेल से अवकाश ले लेते हैं और विभाग को पता ही नहीं चलता। इसमें विद्यार्थियों का नुकसान होता है।

प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति ऐसी हो गई है कि पूरी व्यवस्था चरमरा गई है। शिक्षा की गुणवत्ता तो कहीं दिखाई ही नहीं देती। सरकार शिक्षकों को मोटा वेतन देती है लेकिन उसका लाभ बच्चों को नहीं मिल पाता। ऐसा नहीं कि सारे ही शिक्षक ऐसे हैं लेकिन जो हैं उनकी वजह से सारे शिक्षकों का नाम बदनाम हो रहा है। सभी शिक्षक विद्यालय से 30 से 50 किलोमीटर दूर शहर में रहते है । आतक कोई भी शिक्षक सुबह के स्कूल में 11 बजे पहुंच रहे है थके मारे गुरूजी कया बच्चों को पढ़ा पायेगें । पूरा जंगलराज हो गया है। आज के हाईटेक जमाने में शिक्षा विभाग ने भी शिक्षकों की सुविधा के लिए कंट्रोल रूम बना रखा है। उसके बाद विभाग की ओर से व्हाट्सएप ग्रुप भी बनाया गया है ताकि जो शिक्षक किसी कारणवश अवकाश चाहते हैं अथवा किसी कारण से विद्यालय नहीं जा पा रहे हैं वे इस ग्रुप पर अपनी सूचना डाल दें। ताकि सभी को उनकी अनुपस्थिति की जानकारी मिल जाए लेकिन कतिपय शिक्षक इस सुविधा का लाभ न उठाकर गायब हो जा रहे हैं। ऐसे शिक्षकों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जा रही है। यह गंभीर अनियमितता है।

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