होम स्टे पर सिस्टम बैंको की अडियल नीति से पंख नहीं लग पा रहे है
बागेश्वर । नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण उत्तराखंड में पर्यटन यहां की आर्थिकी का सबसे अहम जरिया हो सकता है। इसे लेकर योजनाएं भी बनी हैं और बन रही हैं, लेकिन सिस्टम की धीमी चाल इसमें रोड़े अटका रही है। अब मौजूदा सरकार की होम स्टे योजना को ही ले लीजिए। इसके तहत 2022 तक प्रदेशभर में पांच हजार होम स्टे तैयार कराने की योजना है, लेकिन अभी तक इसके लिए महज 354 पंजीकरण ही हो पाए हैं। सूरतेहाल, योजना को आगे पंख कैसे लग पाएंगे, इसे लेकर चिंता सालने लगी है।
वैश्विक स्तर पर पर्यटन एक महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि के रूप में उभरा है। यह सीधे-सीधे स्थानीय रोजगार और सामाजिक-आर्थिक विकास से जुड़ा है। प्राकृतिक सौंदर्य से लवरेज उत्तराखंड में भी इसकी अपार संभावनाएं हैं। इसे देखते हुए ही राज्य गठन के वक्त से ही पर्यटन को आर्थिकी की धुरी बनाकर उत्तराखंड को पर्यटन प्रदेश के रूप में विकसित करने का ख्वाब देखा गया, लेकिन पिछले 18 सालों में यह मुहिम परवान नहीं चढ़ पाई है।
0ऐसा नहीं कि योजनाएं न बनी हों, तमाम योजनाएं बनीं और बन रही हैं, लेकिन कुछ सिस्टम की सुस्ती और कुछ जागरूकता का अभाव जैसे कारण इसकी राह में बाधा बनते आए हैं। मौजूदा सरकार ने पलायन के चलते खाली हो रहे गांवों में होम स्टे के जरिये पर्यटन पर फोकस किया है, लेकिन उसके अभी तक के कार्यकाल में महज 335 पंजीकरण ही हो पाए हैं। यानी केवल इतने लोगों ने ही अपने घरों को होम स्टे में तब्दील करने की इच्छा जताई है। ऐसे में 2022 तक पांच हजार होम स्टे कैसे बन पाएंगे, इसे लेकर अभी से संशय के बादल मंडराने लगे हैं।
असल में होम स्टे को लेकर नीति तो बना दी गई, लेकिन इसके क्रियान्वयन को लेकर रफ्तार देने की दिशा में काम होना अभी बाकी है। मसलन, लोगों को होम स्टे की अवधारणा से रूबरू कराकर उन्हें जागरूक करने की जरूरत है। यही नहीं, बैंकों की ओर से इसमें सहयोग बढ़ाना होगा, ताकि अधिक से अधिक होम स्टे अस्तित्व में आएं। होम स्टे के साथ ही नजदीकी पर्यटक स्थलों, ट्रैकिंग, धार्मिक स्थल जैसे मसले भी इससे जोडऩे होंगे। हालांकि, उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद की मानें तो इस दिशा में कवायद प्रारंभ कर दी गई है। उम्मीद है कि 2022 तक प्रदेश में पांच हजार होम स्टे न सिर्फ अस्तित्व में आएंगे, बल्कि ये लोगों की झोलियां भी भरेंगे।