उत्तराखंड में ट्रांसफर-पोस्टिंग एक्ट में बदलाव की जरूरत , सुबोध उनियाल

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देहरादून. उत्तराखंड के खाध एवं पूर्ति विभाग में ट्रांसफर को लेकर कमिश्नर और विभागीय मंत्री के बीच जो रार पैदा हुई, उसकी आंच अब ट्रांसफर एक्ट में ही संशोधन की मांग तक पहुंच गई है. दूसरे मंत्रियों की ओर से भी अब ट्रांसफर एक्ट में ही बदलाव की मांग उठने लगी है।

बता दें कि उत्तराखंड में ट्रांसफर-पोस्टिंग का विवाद कोई नया नहीं है. पैंसा और पॉवर का इतना घालमेल की सियासी गलियारों में इसे ट्रांसफर उद्योग तक का भी नाम दे दिया गया है. लिहाजा वर्ष 2017 में ट्रांसफर एक्ट अस्तित्व में आया. अखिल भारतीय सेवा, राज्य सिविल सेवा, राज्य पुलिस सेवा को छोड़कर राज्य के सभी विभागों को इसके तहत लाया गया है. ट्रांसफर का रोस्टर भी तय है. ऐसे मामले जो इस एक्ट के दायरे में न आते हों, उनके लिए चीफ सेक्रेटरी की अध्यक्षता में स्क्रीनिंग कमेटी की भी व्यवस्था है, लेकिन मंत्री इसमें भी अब संशोधन चाहते हैं।

कैबिनेट मंत्री सौरभ बहुगुणा भी ट्रांसफर एक्ट में शिथलिता बरते जाने की मांग कर रहे हैं. सौरभ बहुगुणा का कहना है कि ट्रांसफर एक्ट मूलत: शिक्षा विभाग के लिए बनाया गया था, लेकिन इसे सभी विभागों पर लागू कर दिया गया।

दरअसल, ट्रांसफर एक्ट में कमी जो भी हो, विवाद की असली जड़ लोकशाही के हाथ से ट्रांसफर की पॉवर खिसक जाना है. लोकशाही को लगता है कि ट्रांसफर की ताकत एक्ट के कारण उनके हाथ से निकल कर ब्यूरोक्रेसी को चली गई. मंत्री और सचिव के बीच शुरू हुई रार के बीच अब एक्ट में संशोधन की मांग को इसी छटपटाहट के रूप में देखा जा रहा है.

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