केदारनाथ धाम में कचरे के ढेर ,हिमालयी क्षेत्र में मानवीय हलचल से फिर सरकार दे रही तबाही का न्यौता

साल 2013 में केदारनाथ सहित चारधाम यात्रा में आसमानी आफत ने जमकर तांडव मचाया था। कई जानकार इस त्रासदी के लिए जरूरत से अधिक मानवीय हस्तक्षेप को जिम्मेदार ठहरा चुके हैं.।
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चारधाम यात्रा लाखों की संख्या में तीर्थयात्री दर्शन के लिए पहुंचे है अभी तीर्थयात्रियों का आना कम नहीं हो रहा है । सरकार हरतरफ से विफल दिखाई दे रही है । हिमालयी क्षेत्र में मानवीय हलचल से फिर से तबाही के संकेत दिखाई दे रहे है ं इसके अलावा पवित्र धाम में कचरे के ढेर लगे हुए है । कहीं – कहीं तो बदबू भी आने लगी है। जिसे हिमालयी क्षेत्र दूषित हो चुका है।

देहरादून। चारधाम यात्रा में अब तक 11 लाख 45 हजार तीर्थयात्री दर्शन किए, 22 लाख 50 हजार ने पंजीकरण कि जानकारी हैं! इस साल कोविड ब्रेक के बाद हो रही चारधाम यात्रा में जाहिर है कि भारी भीड़ कचरा उमड़ रही है। वही, केदारनाथ धाम में दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की लाइन 3-5 किलोमीटर तक लंबी है। केदारनाथ धाम तक पहुंचने वाले पैदल रास्ते को देखकर लग रहा है मानो इंसानों का ट्रैफिक जाम लग गया है। वही जिसमें हालात ये हैं कि भारी भीड़ ने व्यवस्थाओं को पटरी से उतार दिया है। लेकिन ये भारी भीड़ व्यवस्थाओं को तो बिगाड़ ही रही है।साथ ही बड़ी आपदा को भी न्यौता दे सकती है.हिमालयी इलाकों में एक जगह भारी भीड़ जमा होगी तो उसका दबाव धरती पर पड़ेगा, यही नहीं ग्लेशियर भी मानवीय हस्तक्षेप से तेजी से गल सकते हैं। इस साल दो साल के कोविड ब्रेक के बाद चार धाम यात्रा फिर से शुरू होने के कारण देश भर से तीर्थयात्रियों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी है। लेकिन बढ़ती भीड़ के कारण कचरे का जमवाड़ा लगना तो लाजमी था। और हुआ भी वही। वही उत्तराखंड प्रशासन के लिए कचरे का पहाड़ मुसीबत बन रहा है। वही इस चारधाम यात्रा के दौरान देवभूमि के तीर्थ स्थलो व रास्तो में जगह-जगह यात्रियों द्वारा प्लास्टिक के कचरे खुले आम फेके जा रहे है।

चारधाम यात्रा में अब तक 11 लाख 45 हजार तीर्थयात्री दर्शन किए, 22 लाख 50 हजार ने पंजीकरण


प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तराखंड में सबसे ज्यादा श्रद्धालु बदरीनाथ और केदारनाथ पहुंच रहे हैं। केदारनाथ पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या रिकॉर्ड में दर्ज हो रही है। यहां मंदिर के ठीक पीछे बना डंपिंग जोन केदारनाथ में कूड़ा निस्तारण की हकीकत बयां कर रहा है। केदारनाथ मंदिर से पीछे कूड़े का ढेर लगा है, जो कई सवाल खड़े करता है। वही, हैरानी की बात यह है कि जिला प्रशासन और सरकार ने केदारनाथ में कूड़ा निस्तारण को लेकर अभी तक कोई ठोस निर्णय या प्लानिंग नहीं की है। इस दौरान रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी मयूर दीक्षित से जब इस बारे में पूछा गया तो वो कहते हैं कि केदारनाथ में कूड़ा निस्तारण के लिए सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के तहत काम किया जा रहा है।

वही जिसमें उत्तराखण्ड चारधाम में लाखों की संख्या में श्रद्धालु इस बार चारधाम यात्रा में पहुंच रहे हैं। ऐसे में चारधाम यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले शहरों के सामने सबसे बड़ी चुनौती कूड़ा निस्तारण की है। प्राप्त ताजा जानकारी के मुताबिक चारधाम और इनसे जुड़े यात्रा मार्गों पर इन दिनों कूड़े का अंबार लगा हुआ है। यात्रा पर पहुंच रहे। वही, श्रद्धालु बड़ी मात्रा में कूड़ा यात्रा मार्गों, जंगलों और नदियों में फेंक रहे हैं। इस दौरान रुद्रप्रयाग जिला प्रशासन की ओर से भी चारधाम यात्रा मार्गों पर कूड़ा निस्तारण के कुछ खास इंतजामात नहीं किए गए हैं।
इस दौरान बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री पहुंचने वाले श्रद्धालु बड़ी मात्रा में प्लास्टिक, चिप्स के पैकेट, बिसलरी की बोतलें और न जाने क्या-क्या लेकर यहां पहुंचते हैं, जिनका इस्तेमाल करने के बाद वे इसे ऐसे ही खुले में फेंक देते हैं। ये कोई नहीं सोचता कि इतनी भीड़ चारधाम यात्रा पर आ रही है, वो जो कूड़ा छोड़ रहे हैं वो लगभग 12 हजार फीट की ऊंचाई से आखिरकार जा कहां रहा हैं। हर दिन जमा होने वाले इस सॉलिड वेस्ट को कैसे मैनेज किया जाता है, यात्रा मार्गों पर इसे लेकर क्या व्यवस्थाएं हैं। जिला प्रशासन ने वेस्ट मैनेजमेंट के लिए क्या इंतजामात किए हैं।.
उधर सोशल डेवलपमेंट कम्युनिटीज फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल ने इसे लेकर एक सर्वे किया हैं। जिसके अनुसार चारधाम यात्रा में एक व्यक्ति लगभग 8 किलो कचरा अलग-अलग जगहों पर कूड़ेदान या फिर कहीं इधर-उधर फेंकता है। प्रदेश में 3 मई से शुरू हुई यात्रा को 15 दिन से ज्यादा हो गये हैं। इस हिसाब से अंदाजा लगाया जा सकता है कि चारों धामों में कूड़े को लेकर क्या स्थिति होगी। वही इसी के साथ विशेषज्ञों ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में ठोस कचरे के संचय ने इन तीर्थस्थलों के नाजुक परिदृश्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है जो समुद्र तल से 10,000 फीट से 12,000 फीट के बीच स्थित हैं। इस दौरान बद्रीनाथ के कार्यकारी अधिकारी सुनील पुरोहित ने कहा बद्रीनाथ में, चूंकि प्लास्टिक की अनुमति नहीं है। लेकिन बारिश से बचने के लिए यूज़ एंड थ्रो रेन कोट और प्लास्टिक की पानी की बोतलें एक बड़ी चुनौती बनी हुई हैं।
केदारनाथ मंदिर अपने क्षेत्र को केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य के साथ साझा करता है और विशेषज्ञों ने कहा कि प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले टन कचरे से न केवल स्थानीय पारिस्थितिकी दूषित हो रही है, बल्कि वन्यजीवों को भी खतरा है। वही इसी के साथ आयुष जोशी, एक पर्यावरण इंजीनियर, ने कहा “दुर्भाग्य से, उत्तराखंड में, कोई वैज्ञानिक रूप से मान्य लैंडफिल उपलब्ध नहीं है। और जो हम देखते हैं वह पवित्र नदियों के किनारे कचरे के विशाल ढेर हैं ,जो पहले से ही अनियोजित विकास गतिविधियों के कारण सूख रहे हैं।

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