टिहरी विधान सभा की जनता असंमजस में फंसे किसे वोट करें , क्या चुनाव आयोग ने दलबदल कानून खत्म कर दिया
मेरी 88 साल की उम्र हो गई, पहले कभी बड़े नेताओं को दल-बदल करते नहीं देखा और सुना है। क्योंकि नेता की अपनी विचारधारा होती है। छोटे कार्यकर्ता भले ही दल-बदल करते थे। अब नेता अपने स्वार्थों के लिए दल-बदल कर खुद ही लाचार हो गए हैं। लाचार लोग कैसे जनता की सेवा करेंगे। -पारेश्वर प्रसाद भट्ट, नई टिहरी
दल-बदल कर नेता धीरे-धीरे जनता का विश्वास खुद ही खोते जा रहे हैं। जन सरकारों से किसी का कोई मतलब नहीं रह गया। अपने मन की न होने पर नेताओं को पार्टी बदलना आसान हो गया है, जिससे वोटर आहत हो रहे हैं। इसलिए लोगों का अब नेताओं से विश्वास उठना स्वाभाविक है। -सत्य प्रसाद उनियाल, नई टिहरी
टिहरी। इस विधानसभा सीट पर जीत के लिए जोर आजमाइश कर रहे भाजपा और कांग्रेस को अब भीतरघात का डर सता रहा है। टिकट को लेकर पहले दोनों राष्ट्रीय पार्टियों में भगदड़ मची रही। दोनों पार्टियों ने प्रत्याशियों की अदला-बदली कर सभी को हैरान कर दिया। दल-बदल की इस राजनीति से कार्यकर्ता मायूस और वोटर आहत हैं।
दल-बदल करते वक्त प्रत्याशी और संगठन पदाधिकारी यह भूल गए अदला-बदली का कार्यकर्ताओं और मतदाताओं पर क्या असर पड़ेगा। इस स्थिति में दोनों पार्टियों के कई सक्रिय कार्यकर्ता निष्क्रिय नजर आ रहे हैं। नेताओं के दल-बदल से वोटर भी कई तरह के सवाल उठा रहे हैं। मतदाताओं का कहना है कि नेताओं का अब विचारधारा और जन सरोकारों से कोई वास्ता नहीं रह गया है। बात अब मुद्दों की नहीं अपने स्वार्थों की हो रही है।
टिकट वितरण को लेकर टिहरी विधानसभा सीट पर इस बार उलटफेर हुआ है। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और कांग्रेस के टिकट पर दो बार विधायक बने किशोर उपाध्याय को इस बार भाजपा ने प्रत्याशी बनाया है। जबकि भाजपा के विधायक डा. धन सिंह नेगी को कांग्रेस ने इसी सीट पर प्रत्याशी मैदान में उतारा है। डा. नेगी को भाजपा ने 2012 में भी प्रत्याशी बनाया था, लेकिन वह चुनाव हार गए थे। टिकट वितरण के बाद दोनों ही पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच बगावत के स्वर बुलंद हैं।
भाजपा के कुछ कार्यकर्ता कांग्रेस में और कांग्रेस के कई कार्यकर्ता भाजपा में शामिल होकर अपनी टीस बुझा रहे हैं। पूर्व मंत्री दिनेश धनै की उत्तराखंड जनएकता पार्टी भी दल-बदल की इस राजनीति को भुनाने की कोशिश में जुटी हुई है। दल-बदल की इस राजनीति से भाजपा और कांग्रेस को अब भीतरघात का डर सता रहा है। इसलिए मतदान से पहले हर हाल में रूठों को मनाने के प्रयास पार्टियों के दिग्गजों के स्तर पर चल रहा है। इसमें कितनी कामयाबी मिलेगी यह आने वाला वक्त बताएगा।